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Universal Dependencies - Hindi - HDTB
Language | Hindi |
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Project | HDTB |
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Corpus Part | dev |
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Annotation | Bhat, Riyaz Ahmad; Zeman, Daniel |
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रामायण काल में भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी कुशावती को 483 ईसा पूर्व बुद्ध ने अपने अंतिम विश्राम के लिए चुना ।
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dev-s1
रामायण काल में भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी कुशावती को 483 ईसा पूर्व बुद्ध ने अपने अंतिम विश्राम के लिए चुना ।
मल्लों की राजधानी होने के कारण प्राचीनकाल में इस स्थान का अत्यंत महत्व था ।
s-2
dev-s2
मल्लों की राजधानी होने के कारण प्राचीनकाल में इस स्थान का अत्यंत महत्व था ।
बौद्ध धर्मावलंबियों के अनुसार लुंबनी, बोधगया और सारनाथ के साथ ही इस स्थान का विशद् महत्व है ।
s-3
dev-s3
बौद्ध धर्मावलंबियों के अनुसार लुंबनी, बोधगया और सारनाथ के साथ ही इस स्थान का विशद् महत्व है ।
हिंदू राजाओं के काल में चीन से ह्वेन सांग, फाह्यान और इत्सिंग ने अपने यात्रा वृत्तांत में इस स्थान के गौरव का वर्णन किया है ।
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dev-s4
हिंदू राजाओं के काल में चीन से ह्वेन सांग, फाह्यान और इत्सिंग ने अपने यात्रा वृत्तांत में इस स्थान के गौरव का वर्णन किया है ।
कुशीनगर का सबसे ज्यादा महत्व बौद्ध तीर्थ के रूप में है ।
s-5
dev-s5
कुशीनगर का सबसे ज्यादा महत्व बौद्ध तीर्थ के रूप में है ।
1876 में यह स्थान एक बार फिर प्रकाश में आया, जब तत्कालीन पुरातत्ववेत्ता लॉर्ड कर्निंघम ने महापरिनिर्वाण मूर्ति की खोज की ।
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dev-s6
1876 में यह स्थान एक बार फिर प्रकाश में आया, जब तत्कालीन पुरातत्ववेत्ता लॉर्ड कर्निंघम ने महापरिनिर्वाण मूर्ति की खोज की ।
कुशीनगर की सीमा में प्रवेश करते ही भव्य प्रवेशद्वार आपका स्वागत करता है ।
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dev-s8
कुशीनगर की सीमा में प्रवेश करते ही भव्य प्रवेशद्वार आपका स्वागत करता है ।
इसके बाद आम तौर पर पर्यटकों की निगाह महापरिनिर्वाण मंदिर की ओर पड़ती है ।
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dev-s9
इसके बाद आम तौर पर पर्यटकों की निगाह महापरिनिर्वाण मंदिर की ओर पड़ती है ।
कुशीनगर का महत्व महापरिनिर्वाण मंदिर से है ।
s-10
dev-s10
कुशीनगर का महत्व महापरिनिर्वाण मंदिर से है ।
इस मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफाओं से प्रेरित है ।
s-11
dev-s11
इस मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफाओं से प्रेरित है ।
मंदिर के डाट हूबहू अजंता की गुफाओं के डाट की तरह हैं ।
s-12
dev-s12
मंदिर के डाट हूबहू अजंता की गुफाओं के डाट की तरह हैं ।
यह मंदिर उसी स्थान पर बनाया गया है, जहाँ से यह मूर्ति निकाली गई थी ।
s-13
dev-s13
यह मंदिर उसी स्थान पर बनाया गया है, जहाँ से यह मूर्ति निकाली गई थी ।
मंदिर के पूर्व हिस्से में एक स्तूप है ।
s-14
dev-s14
मंदिर के पूर्व हिस्से में एक स्तूप है ।
यहाँ पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था ।
s-15
dev-s15
यहाँ पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था ।
मूर्ति भी अजंता के भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है ।
s-16
dev-s16
मूर्ति भी अजंता के भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है ।
वैसे मूर्ति का काल अजंता से पूर्व का है ।
s-17
dev-s17
वैसे मूर्ति का काल अजंता से पूर्व का है ।
इस मंदिर के आसपास कई विहार (जहाँ बौद्ध भिक्षु रहा करते थे) और चैत्य (जहाँ भिक्षु पूजा करते थे या ध्यान लगाते थे) भग्नावशेष और खंडहर मौजूद हैं जो अशोककालीन बताए जाते हैं ।
s-18
dev-s18
इस मंदिर के आसपास कई विहार (जहाँ बौद्ध भिक्षु रहा करते थे) और चैत्य (जहाँ भिक्षु पूजा करते थे या ध्यान लगाते थे) भग्नावशेष और खंडहर मौजूद हैं जो अशोककालीन बताए जाते हैं ।
मंदिर परिसर से लगा काफी बड़ा सा पार्क है, जहाँ पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है ।
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dev-s19
मंदिर परिसर से लगा काफी बड़ा सा पार्क है, जहाँ पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है ।
वैसे इस पूरे परिसर में अलौकिक शांति का वातावरण है ।
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dev-s20
वैसे इस पूरे परिसर में अलौकिक शांति का वातावरण है ।
महापरिनिर्वाण मंदिर से कुछ दूर आगे माथा कुँवर का मंदिर है ।
s-21
dev-s21
महापरिनिर्वाण मंदिर से कुछ दूर आगे माथा कुँवर का मंदिर है ।
इसके स्थानीय लोगों में भगवान विष्णु के अवतार होने की मान्यता भी प्रचलित है ।
s-22
dev-s22
इसके स्थानीय लोगों में भगवान विष्णु के अवतार होने की मान्यता भी प्रचलित है ।
इस मूर्ति के भी करीब पाँच सौ वर्ष पुराना होने का प्रमाण मिलता है ।
s-23
dev-s23
इस मूर्ति के भी करीब पाँच सौ वर्ष पुराना होने का प्रमाण मिलता है ।
माथा कुँवर की मूर्ति काले पत्थर से बनी है ।
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dev-s24
माथा कुँवर की मूर्ति काले पत्थर से बनी है ।
इसकी ऊँचाई करीब तीन मीटर है ।
s-25
dev-s25
इसकी ऊँचाई करीब तीन मीटर है ।
मूर्ति भगवान बुद्ध के बोधि प्राप्त करने से पूर्व की ध्यान मुद्रा में है ।
s-26
dev-s26
मूर्ति भगवान बुद्ध के बोधि प्राप्त करने से पूर्व की ध्यान मुद्रा में है ।
यहाँ बुद्ध चिरनिद्रा में हैं -
s-27
dev-s27
यहाँ बुद्ध चिरनिद्रा में हैं -
भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद 16 महाजनपदों में उनकी अस्थियों और भस्म को बाँट दिया गया ।
s-28
dev-s28
भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद 16 महाजनपदों में उनकी अस्थियों और भस्म को बाँट दिया गया ।
इन सभी स्थानों पर इन भस्मों और अस्थियों के ऊपर स्तूप बनाए गए ।
s-29
dev-s29
इन सभी स्थानों पर इन भस्मों और अस्थियों के ऊपर स्तूप बनाए गए ।
कुशीनगर में मौजूद रामाभार का स्तूप इन्हीं में से एक है ।
s-30
dev-s30
कुशीनगर में मौजूद रामाभार का स्तूप इन्हीं में से एक है ।
करीब 50 फुट ऊँचे इस स्तूप को मुकुट बंधन विहार कहा जाता है ।
s-31
dev-s31
करीब 50 फुट ऊँचे इस स्तूप को मुकुट बंधन विहार कहा जाता है ।
हालाँकि स्थानीय वाशिंदों में यह रामाभार स्तूप के नाम से ही आज भी जाना जाता है ।
s-32
dev-s32
हालाँकि स्थानीय वाशिंदों में यह रामाभार स्तूप के नाम से ही आज भी जाना जाता है ।
महापरिनिर्वाण मंदिर के उत्तर में मौजूद जापानी मंदिर अपने विशिष्ट वास्तु के लिए प्रसिद्ध है ।
s-33
dev-s33
महापरिनिर्वाण मंदिर के उत्तर में मौजूद जापानी मंदिर अपने विशिष्ट वास्तु के लिए प्रसिद्ध है ।
अर्द्धगोलाकर इस मंदिर में भगवान बुद्ध की अष्टधातु की मूर्ति है ।
s-34
dev-s34
अर्द्धगोलाकर इस मंदिर में भगवान बुद्ध की अष्टधातु की मूर्ति है ।
मंदिर सुबह 10 से शाम 4 बजे तक दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है ।
s-35
dev-s35
मंदिर सुबह 10 से शाम 4 बजे तक दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है ।
मंदिर के चार बड़े - बड़े द्वार हैं, जो सभी दिशाओं की ओर बनाए गए हैं ।
s-36
dev-s36
मंदिर के चार बड़े - बड़े द्वार हैं, जो सभी दिशाओं की ओर बनाए गए हैं ।
इस मंदिर की देखरेख जापान की एक संस्था की ओर से की जाती है ।
s-37
dev-s37
इस मंदिर की देखरेख जापान की एक संस्था की ओर से की जाती है ।
जापानी मंदिर के ठीक सामने संग्रहालय है ।
s-38
dev-s38
जापानी मंदिर के ठीक सामने संग्रहालय है ।
इसमें बुद्धकालीन वस्तुएं, धातुएं, कुशीनगर में खुदाई के दौरान पाई गई मूर्ति, सिक्के, बर्तन आदि रखे गए हैं ।
s-39
dev-s39
इसमें बुद्धकालीन वस्तुएं, धातुएं, कुशीनगर में खुदाई के दौरान पाई गई मूर्ति, सिक्के, बर्तन आदि रखे गए हैं ।
इसके साथ ही मथुरा और गांधार शैली की दुर्लभ मूर्तियाँ भी यहाँ देखने को मिलेंगी ।
s-40
dev-s40
इसके साथ ही मथुरा और गांधार शैली की दुर्लभ मूर्तियाँ भी यहाँ देखने को मिलेंगी ।
मंदिर में थाई शैली की भगवान बुद्ध की अष्टधातु की मूर्ति है ।
s-41
dev-s41
मंदिर में थाई शैली की भगवान बुद्ध की अष्टधातु की मूर्ति है ।
मंदिर का वास्तु थाईलैंड के मंदिरों जैसा ही है ।
s-42
dev-s42
मंदिर का वास्तु थाईलैंड के मंदिरों जैसा ही है ।
इसकी संरक्षिका थाईलैंड की राजकुमारी हैं ।
s-43
dev-s43
इसकी संरक्षिका थाईलैंड की राजकुमारी हैं ।
मंदिर के शीर्ष पर सोने की परत लगाई गई है ।
s-44
dev-s44
मंदिर के शीर्ष पर सोने की परत लगाई गई है ।
वाट थाई मंदिर -
s-45
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वाट थाई मंदिर -
वर्तमान में सबसे आकर्षण का केंद्र यहाँ पर हाल ही में निर्मित वाट थाई मंदिर है ।
s-46
dev-s46
वर्तमान में सबसे आकर्षण का केंद्र यहाँ पर हाल ही में निर्मित वाट थाई मंदिर है ।
मंदिर का निर्माण थाईलैंड सरकार के सौजन्य से किया गया है ।
s-47
dev-s47
मंदिर का निर्माण थाईलैंड सरकार के सौजन्य से किया गया है ।
सफेद पत्थरों से बने इस मंदिर के दो तल हैं ।
s-48
dev-s48
सफेद पत्थरों से बने इस मंदिर के दो तल हैं ।
इस मंदिर में थाई शैली की भगवान बुद्ध की अष्टधातु की मूर्ति है ।
s-49
dev-s49
इस मंदिर में थाई शैली की भगवान बुद्ध की अष्टधातु की मूर्ति है ।
मंदिर का वास्तु थाईलैंड के मंदिरों जैसा ही है ।
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dev-s50
मंदिर का वास्तु थाईलैंड के मंदिरों जैसा ही है ।
इसकी संरक्षिका थाईलैंड की राजकुमारी हैं ।
s-51
dev-s51
इसकी संरक्षिका थाईलैंड की राजकुमारी हैं ।
मंदिर के शीर्ष पर सोने की परत लगाई गई है ।
s-52
dev-s52
मंदिर के शीर्ष पर सोने की परत लगाई गई है ।
पौधों का विशेष आकार भी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है ।
s-53
dev-s53
पौधों का विशेष आकार भी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है ।
मंदिर परिसर में मौजूद चैत्य सभी के आकर्षण का केंद्र बन जाता है ।
s-54
dev-s54
मंदिर परिसर में मौजूद चैत्य सभी के आकर्षण का केंद्र बन जाता है ।
लोग बरबस इस सोने की परत चढ़े चैत्य के साथ फोटो खींचना चाहते हैं ।
s-55
dev-s55
लोग बरबस इस सोने की परत चढ़े चैत्य के साथ फोटो खींचना चाहते हैं ।
कुशीनगर के विस्तार के साथ ही यहाँ पर सबसे अधिक बनाए गए मंदिरों में से एक चीनी मंदिर है ।
s-56
dev-s56
कुशीनगर के विस्तार के साथ ही यहाँ पर सबसे अधिक बनाए गए मंदिरों में से एक चीनी मंदिर है ।
मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्ति अपने पूरे स्वरूप में चीनी लगती है ।
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dev-s57
मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्ति अपने पूरे स्वरूप में चीनी लगती है ।
इसकी दीवारों पर जातक कथाओं से संबंधित पेंटिंग अत्यंत ही आकर्षक है ।
s-58
dev-s58
इसकी दीवारों पर जातक कथाओं से संबंधित पेंटिंग अत्यंत ही आकर्षक है ।
मंदिर के बाहर सुंदर फव्वारा है ।
s-59
dev-s59
मंदिर के बाहर सुंदर फव्वारा है ।
महापरिनिर्वाण मंदिर से पहले बीच तालाब में बना भगवान बुद्ध का मंदिर और इसके सामने बना विशाल पगोडा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है ।
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dev-s60
महापरिनिर्वाण मंदिर से पहले बीच तालाब में बना भगवान बुद्ध का मंदिर और इसके सामने बना विशाल पगोडा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है ।
जल मंदिर तक जाने के लिए तालाब के ऊपर पुल का निर्माण किया गया है ।
s-61
dev-s61
जल मंदिर तक जाने के लिए तालाब के ऊपर पुल का निर्माण किया गया है ।
इसमें कछुओं और बतख के साथ ही मछलियों को अठखेलियाँ करते देखना बहुत अच्छा लगता है ।
s-62
dev-s62
इसमें कछुओं और बतख के साथ ही मछलियों को अठखेलियाँ करते देखना बहुत अच्छा लगता है ।
ठीक सामने मौजूद पगोडा के ऊपर बँधी घंटियाँ सुरम्य और शांत वातावरण में जब बजती हैं तो लगता है कि ये सभी दिशाओं में अहिंसा और प्रेम का संदेश दे रहीं हों ।
s-63
dev-s63
ठीक सामने मौजूद पगोडा के ऊपर बँधी घंटियाँ सुरम्य और शांत वातावरण में जब बजती हैं तो लगता है कि ये सभी दिशाओं में अहिंसा और प्रेम का संदेश दे रहीं हों ।
जलमंदिर के सामने भगवान शिव को समर्पित बिरला मंदिर मौजूद है ।
s-64
dev-s64
जलमंदिर के सामने भगवान शिव को समर्पित बिरला मंदिर मौजूद है ।
दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर में शिव की ध्यान मुद्रा में सफेद संगमरमर की मूर्ति है ।
s-65
dev-s65
दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर में शिव की ध्यान मुद्रा में सफेद संगमरमर की मूर्ति है ।
इसके बगल में ही बिरला धर्मशाला है ।
s-66
dev-s66
इसके बगल में ही बिरला धर्मशाला है ।
कुशीनगर गोरखपुर से 52 किलोमीटर की दूरी पर नेशनल हाईवे नं 28 पर स्थित है ।
s-68
dev-s68
कुशीनगर गोरखपुर से 52 किलोमीटर की दूरी पर नेशनल हाईवे नं 28 पर स्थित है ।
यहाँ पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन गोरखपुर रेलवे जंक्शन है ।
s-69
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यहाँ पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन गोरखपुर रेलवे जंक्शन है ।
गोरखपुर से हर घंटे कुशीनगर (कसया) के लिए बसें मिलती रहती हैं ।
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dev-s70
गोरखपुर से हर घंटे कुशीनगर (कसया) के लिए बसें मिलती रहती हैं ।
गोरखपुर से देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों के लिए ट्रेन की सुविधा उपलब्ध है ।
s-71
dev-s71
गोरखपुर से देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों के लिए ट्रेन की सुविधा उपलब्ध है ।
इसके साथ ही गोरखपुर से दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के लिए हवाई सुविधा भी उपलब्ध है ।
s-72
dev-s72
इसके साथ ही गोरखपुर से दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के लिए हवाई सुविधा भी उपलब्ध है ।
दिल्ली और लखनऊ से पर्यटन विभाग की ओर से भी विदेशी और घरेलू पर्यटकों के लिए वाहन और रहने की व्यवस्था की जाती है ।
s-73
dev-s73
दिल्ली और लखनऊ से पर्यटन विभाग की ओर से भी विदेशी और घरेलू पर्यटकों के लिए वाहन और रहने की व्यवस्था की जाती है ।
कुशीनगर में सैलानियों के ठहरने के लिए हर श्रेणी के आरामदायक होटल मौजूद हैं ।
s-75
dev-s75
कुशीनगर में सैलानियों के ठहरने के लिए हर श्रेणी के आरामदायक होटल मौजूद हैं ।
यहाँ लोटस, निक्को होटल, होटल रेसीडेंसी और पथिक निवास में ठहरने के लिए बेहतर होगा कि पहले से बुकिंग करवा ली जाए ।
s-76
dev-s76
यहाँ लोटस, निक्को होटल, होटल रेसीडेंसी और पथिक निवास में ठहरने के लिए बेहतर होगा कि पहले से बुकिंग करवा ली जाए ।
इनमें से पथिक निवास उत्तरप्रदेश पर्यटन विकास निगम की ओर से संचालित होता है ।
s-77
dev-s77
इनमें से पथिक निवास उत्तरप्रदेश पर्यटन विकास निगम की ओर से संचालित होता है ।
वहीं धर्मशालाओं में भी साल भर भीड़ रहती है ।
s-78
dev-s78
वहीं धर्मशालाओं में भी साल भर भीड़ रहती है ।
इसमें बिरला धर्मशाला और बुद्ध धर्मशाला प्रमुख हैं ।
s-79
dev-s79
इसमें बिरला धर्मशाला और बुद्ध धर्मशाला प्रमुख हैं ।
इसके अलावा अलग - अलग देशों के मंदिरों की धर्मशाला भी हैं ।
s-80
dev-s80
इसके अलावा अलग - अलग देशों के मंदिरों की धर्मशाला भी हैं ।
बौद्ध भिक्षुओं के लिए कुछ मंदिरों में विहार की व्यवस्था है ।
s-81
dev-s81
बौद्ध भिक्षुओं के लिए कुछ मंदिरों में विहार की व्यवस्था है ।
युग - युगांतर से उत्तराखंड भारतीयों के लिए आध्यात्मिक शरणस्थल और शांति प्रदाता रहा है ।
s-82
dev-s82
युग - युगांतर से उत्तराखंड भारतीयों के लिए आध्यात्मिक शरणस्थल और शांति प्रदाता रहा है ।
प्रागैतिहासिक काल से ऋषि - मुनियों और साधक, परिव्राजकों को यह आकर्षित करता आ रहा है ।
s-83
dev-s83
प्रागैतिहासिक काल से ऋषि - मुनियों और साधक, परिव्राजकों को यह आकर्षित करता आ रहा है ।
हिमालय प्रकृति का महामंदिर है ।
s-84
dev-s84
हिमालय प्रकृति का महामंदिर है ।
यहाँ केदारनाथ तीर्थ उत्तराखंड का महत्वपूर्ण स्थल है ।
s-85
dev-s85
यहाँ केदारनाथ तीर्थ उत्तराखंड का महत्वपूर्ण स्थल है ।
यहाँ जाते समय पैरों के नीचे यत्र - तत्र हिम राशि खिसकती दिखाई पड़ती है ।
s-86
dev-s86
यहाँ जाते समय पैरों के नीचे यत्र - तत्र हिम राशि खिसकती दिखाई पड़ती है ।
बर्फ के पास ही अत्यंत मादक सुगंध वाले सिरंगा पुष्पकुंज मिलने लगते हैं ।
s-87
dev-s87
बर्फ के पास ही अत्यंत मादक सुगंध वाले सिरंगा पुष्पकुंज मिलने लगते हैं ।
इनके समाप्त होने पर हरी बुग्याल 'दूब' मिलती है ।
s-88
dev-s88
इनके समाप्त होने पर हरी बुग्याल 'दूब' मिलती है ।
इसके पश्चात केदारनाथ का हिमनद और उससे निकलने वाली मंदाकिनी अपने में असंख्य पाषाण खंडों को फोड़कर निकले झरनों और फव्वारों के जल को समेटे उद्दाम गति से प्रवाहित होती दिखाई देती है ।
s-89
dev-s89
इसके पश्चात केदारनाथ का हिमनद और उससे निकलने वाली मंदाकिनी अपने में असंख्य पाषाण खंडों को फोड़कर निकले झरनों और फव्वारों के जल को समेटे उद्दाम गति से प्रवाहित होती दिखाई देती है ।
इन सबके ऊपर केदारनाथ का 6 हजार 940 मीटर ऊँचा हिमशिखर ऐसा दिखाई देता है, मानो स्वर्ग में रहने वाले देवताओं का मृत्युलोक को झाँकने का यह झरोखा हो ।
s-90
dev-s90
इन सबके ऊपर केदारनाथ का 6 हजार 940 मीटर ऊँचा हिमशिखर ऐसा दिखाई देता है, मानो स्वर्ग में रहने वाले देवताओं का मृत्युलोक को झाँकने का यह झरोखा हो ।
ऋषिकेश से केदारनाथ की दूरी 223 किमी है, जिसमें अंतिम दस किमी का अंश जो गौरीकुंड से केदारनाथ है वह पैदल, घोड़े या पालकी से जाना पड़ता है ।
s-91
dev-s91
ऋषिकेश से केदारनाथ की दूरी 223 किमी है, जिसमें अंतिम दस किमी का अंश जो गौरीकुंड से केदारनाथ है वह पैदल, घोड़े या पालकी से जाना पड़ता है ।
यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवाँ पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है ।
s-92
dev-s92
यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवाँ पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है ।
ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं ।
s-93
dev-s93
ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं ।
मंदिर लगभग 6 फुट ऊँचे चबूतरे पर बना है ।
s-94
dev-s94
मंदिर लगभग 6 फुट ऊँचे चबूतरे पर बना है ।
मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं, जहाँ से होकर प्रदक्षिणा होती है ।
s-95
dev-s95
मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं, जहाँ से होकर प्रदक्षिणा होती है ।
अर्धा, जो चौकोर है, अंदर से पोली है और अपेक्षाकृत नवीन बनी है ।
s-96
dev-s96
अर्धा, जो चौकोर है, अंदर से पोली है और अपेक्षाकृत नवीन बनी है ।
सभा मंडप विशाल एवं भव्य है ।
s-97
dev-s97
सभा मंडप विशाल एवं भव्य है ।
उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है ।
s-98
dev-s98
उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है ।
गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियाँ हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं ।
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dev-s99
गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियाँ हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं ।
मंदिर के पीछे पत्थरों के ढेर के पास भगवान ईशान का मंदिर है ।
s-100
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मंदिर के पीछे पत्थरों के ढेर के पास भगवान ईशान का मंदिर है ।
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