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कल उमेश जी का ऑफ़िस से लौटते समय विधु के पास फोन आया -
गरीब वह है , जो हमेशा से संघर्ष करता आ रहा है . जिन्हें आतंकवादी कहा जा रहा है . संघर्ष के अंत में ऐसी स्थिति बन गई कि किसी को हथियार उठाना पड़ा . लेकिन हमने पूरी स्थिति को नजरअंदाज करते हुए इस स्थिति को उलझा दिया और सीधे आतंकवाद का मुद्दा सामने खड़ा कर दिया . ये जो पूरी प्रक्रिया है , उन्हें हाशिये पर डाल देने की , उसे भूल गये और सीधा आतंकवाद , ' वो बनाम हम ' की प्रक्रिया को सामने खड़ा कर दिया गया . ये जो पूरी प्रक्रिया है , उसे हमें समझना होगा . इस देश में जो आंदोलन थे , जो अहिंसक आंदोलन थे , उनकी क्या हालत हमने बना कर रखी है ? हमने ऐसे आंदोलन को मजाक बना कर रख दिया है . इसीलिए तो लोगों ने हथियार उठाया है न ? से की बातचीत . रीडर में पढें या ई मेल से पाएं :
मिहिरभोज के सुझाव पर भी ध्यान दीजिये : )
धन्यवाद मेरे कम्प्यूटर में तो फॉन्ट साइज ठीक दिखायी दे रहा है बिना जूम करे भी । क्या Ctr + भी सहायता नहीं दे पा रहा ?
यदि आप पहले से ही इनकम सपोट॔ अथवा फै़मिली क्रेडिट प्राप्त कर रहे / रही हैं , तो आप स्वयमेव सहायता पाने के / की अधिकारी हो जाते / जाती हैं । आपको एन एस के ठेकेदारों को ऑर्डर बुक या अधिकारी होने का कोई और प्रमाण दिखाना चाहिए ।
गुगल चैट पर लाल बत्ती जला कर बैठे हैं . कुछ जरुरी काम निपटाना है साथ ही किसी से कुछ जरुरी बात करनी है तो इन्तजार भी है उनके गुगल चैट पर आने का . इसी लिये व्यस्त का बोर्ड टांग दिया है .
जमशेदपुर संसदीय उपचुनाव में भाजपा की करारी हार से हतोत्साहित पार्टी कार्यकताओं ने रविवार को प्रदेश प्रभारी हरेंद्र प्रताप , अध्यक्ष डॉ . दिनेशानंद गोस्वामी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष जमकर हंगामा काटा । युवा कार्यकर्ताओं ने प्रदेश पदाधिकारियों से हार के 12 बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा । भाजपा के रांची स्थित प्रदेश कार्यालय में सोमवार को जमशेदपुर संसदीय उपचुनाव की हार की समीक्षा के लिए बैठक बुलाई गई थी । पार्टी के प्रभारी हरेंद्र प्रताप , प्रदेश अध्यक्ष डॉ . दिनेशानंद गोस्वामी और अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों की बैठक शुरू होते ही तमाम युवा कार्यकर्ता अंदर घुस आए और नारे लगाने लगे । उन्होंने पदाधिकारियों से कहा , संगठन बताए कि उपचुनाव के नतीजे का दोषी कौन है । क्या जमशेदपुर के चुनाव अचानक आए , जमशेदपुर के संगठन को ठीक करने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए , जिलाध्यक्ष क्यों नहीं बना , किस मजबूरी में प्रदेश अध्यक्ष को चुनाव लड़ाया गया , चुनाव में गठबंधन नहीं हुआ तो इसका दोषी कौन है , सरकार चलाना जरूरी है या संगठन को मजबूत बनाना , क्या जमशेदपुर के नेता महंगे होटलों में पिकनिक मना रहे थे , जमशेदपुर के बाद क्या हटिया में हार की बारी है , पार्टी की उपचुनाव में शर्मनाक हार का जिम्मेदार कौन है , समीक्षा के नाम पर अब खानापूर्ति नहीं चलेगी , कब तक पार्टी के समर्पित व पुराने कार्यकर्ता पार्टी छोड़ते रहेंगे , पार्टी में गुटबाजी कब बंद होगी ? कार्यकर्ताओं के रवैये से खिन्न प्रदेश प्रभारी हरेंद्र प्रताप ने निष्कासन की चेतावनी देते हुए भीड़ को बाहर निकल वाया । इसके बाद बैठक शुरू हुई । भितरघात को पराजय का मुख्य कारण बताने के साथ ही संबंधित लोगों से सख्ती से निपटने का फैसला किया गया ।
छठ पूजा के इतिहास की ओर दृष्टि डालें तो इसका प्रारंभ महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की आराधना व पुत्र कर्ण के जन्म के समय से माना जाता है । मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए , इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा - यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है । प्राचीन काल में इसे बिहार और उत्तर प्रदेश में ही मनाया जाता था । लेकिन आज इस प्रान्त के लोग विश्व में जहाँ भी रहते हैं वहाँ इस पर्व को उसी श्रद्धा और भक्ति से मनाते हैं ।
कोलकाता शहर में सड़कों की हालत दयनीय है , हालाँकि यातायात का दबाव बहुत अधिक है । जन यातायात व्यवस्था मुख्य रूप में बसों और महानगरीय रेलवे ( मेट्रो ) पर निर्भर है । बसें सरकार और निजी कम्पनियों के द्वारा चलाई जाती हैं । देश की पहली भूमिगत रेलवे प्रणाली , मेट्रो की शुरूआत 1986 में हुई थी , और अब यह नगर में यातायात का प्रमुख साधन है , जिससे लगभग 20 लाख यात्री प्रतिदिन यात्रा करते हैं ।
मैं बीबीसी हिंदी विजेट कैसे इंस्टॉल कर सकता हूँ ?
उन्हें इन बच्चों की प्रगति को मापने के लिए अतिरिक्त लक्षों का निर्धारण करना चाहिए |
आने का सबब याद न जाने की ख़बर है , वो दिल में रहा और उसे तोड़ गया भी ,
अपनी होम प्रोडक्शन फिल्म आयशा को समीक्षकों के द्वारा नकार दिए जाने से नाराज़ अनिल कपूर ने कहा कि समीक्षक क्या सोचते हैं इससे उनको कोई फर्क नहीं पडता . उन्होने कहा कि - फिल्म की लागत वसूली जा चुकी है और बॉक्स - ऑफिस कलेक्शन भी अच्छा है . फिल्म ने रिलीज के पहले दो दिनों में ही अपनी लागत लगभग निकाल ली है . फिल्म सुपरहिट है . समीक्षकों को जो कहना है कहें इससे हमें फर्क नहीं पड़ता . इस फिल्म में सोनम कपूर और अभय देओल पहली बार साथ नजर आ रहे हैं . यह फिल्म दिल्ली की हाई सोसाइटी और एक लडकी के सपनों पर आधारित है .
परमाणु , खनिज निदेशालय के खोज प्रयासों से झारखंड राज्य के सिंहंभूम ( पूर्व ) में भटीन , जादुगुड़ा़ , तुरामडीह और नरवापहाड़ में चार यूरेनियम खानों की शुरूआत हुई । सन् 2007 में सिंहभूमि में बंदुहुरंग में भी एक नई खुली खान शुरू की गई है । इन खानों का संचालन सार्वजनिक उपक्रम , भारतीय यूरेनियम निगम लिमिटेड ( यू . सी . आई . एल . ) द्वारा किया जा रहा है जो कि देश की परमाणु ऊर्जा की सभी जरूरतों को पूरा करता है ।
यह भुगतान पेपाल , वायर ट्रांसफर , या फिर सीधे आपके ट्रेडिंग खाते में किया जा सकता है .
. . तुम क्यूँ मर रहे हो ? " प्रदीप ( नाम परिवर्तित ) से कुछ ऐसा सुनने को मैं काफ़ी देर से इंतज़ार कर रहा था , पर अभी तक वो ही मेरी सुने जा रहा था । दरअसल " वो " मरा नहीं , मार डाला गया । उसका नाम ललित मेहता था , आई आई टी रुड़की से इंजीनियरिंग की थी और विदेश जा कर मोटे वेतन पर काम करने के बजाये , वापिस बिहार के पलामू जिले में जा कर ग्राम स्वराज अभियान नाम की एक सामाजिक संस्था के साथ काम करने लगा । पलामू में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और जांच की मांग की । जांच से एक दिन पहले छतरपुर में उसको सदा के लिए शांत कर दिया गया ! कोई और नाम याद आए क्या ? कोई सत्येन्द्र दुबे या मंजुनाथ जैसे नाम ? और मैं क्यूँ मर रहा था ? दरअसल में कोशिश कर रहा था कि किसी तरह से यह ख़बर राष्ट्रीय मुद्दा बने । राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना में कितना ज़बरदस्त भ्रष्टाचार है , यह किसी से छुपा नहीं है । इसीलिए में एन डी टी वी और सी एन एन - आई बी एन तक यह ख़बर पहुँचाने की कोशिश कर रहा था । एन डी टी वी के संजय अहिरवाल ने बताया कि यह ख़बर उनका चैनल एन डी टी वी इंडिया दिखा चुका है । सी एन एन - आई बी एन के राजदीप सरदेसाई ने कहा कि ख़बर मैं उनके चैनल के विनय तिवारी को भेज दूँ । खैर यह सब तो हो गया । और यही सब मैं प्रदीप को बता रहा था , कि अब इसको फ़ोन किया , अब इसको एस एम् एस भेजा जब उसने कहा " अरे भाई वो मर गया है , तुम क्यूँ मर रहे हो ? " बात सही भी थी ।
पितामह क्या तुम्हें कुछ मिल सका है ? मिला है श्राप - सा वरदान क्या है ?
सारे शेर एक से बढ़कर एक हैं ! ! बहुत बहुत बधाई ! !
वे नहीं हैं । उनके गये एक दशक से ऊपर हो गया । पर ये वृक्ष उनके हरे भरे हस्ताक्षर हैं ! क्या वे पर्यावरणवादी थे ? हां , अपनी तरह के !
भारतीय अमेरिकी पूंजीपति विनोद खोसला और उनकी पत्नी नीरू उन अरबपतियों में शामिल हो गए हैं जिन्होंने अ
फीर पेपर खत्म होने के बाद मैने फील्म की सीडी ले कर देख लीया ।
इम्प्रेसिव । आगे और सोचा जायेगा ! और शायद पैराडाइम शिफ्ट हो ही जाये ।
प्यार को पंचनामा , 404 और कशमकश में से किसी भी फिल्म को पिछले हफ्ते उल्लेखनीय ओपनिंग नहीं मिली । रितुपर्णो घोष की कशमकश बंगाली से हिंदी में डब की गई थी । सीमित संख्या में केवल महानगरों में इसे रिलीज किया गया था । लगता है निर्माता - निर्देशक जानते थे कि उन्हें दर्शक नहीं मिलेंगे । 404 को मिली सराहना के अनुपात में उसे दर्शक नहीं मिल पाए । प्यार का पंचनामा में कोई ऐसा आकर्षण नहीं था कि दर्शक सिनेमाघरों में जाते । नए एक्टरों को लेकर बनी यह फिल्म ढंग से प्रचारित भी नहीं हो पाई थी । पिछला हफ्ता नई फिल्मों के लिए बुरा रहा । वैसे विक्रम भट्ट की हांटेड अभी तक दर्शकों की पसंद बनी हुई है ।
आज पहली बार आपका ये दोस्त अपनी पोस्ट पर यू ट्यूब का विडियो लेकर हाजिर हुआ है . वैसे मैं गानों को देखने से ज्यादा सुनना पसंद करता हूँ पर आज जिस विडियो क्लिप को मैं आपके लिए लेकर आया हूँ वो सचमुच बेजोड़ है . हुआ यूँ कि मैंने अपने पीसी के ऑपरेटिंग सिस्टम विन्डोज़ XP प्रोफेशनल के लुक को बिल्कुल विन्डोज़ विस्टा की तरह कर दिया है और उसी सिलसिले में नेट पर कुछ खोजबीन कर रहा था तो मुझे ये विडियो क्लिप मिली . तो दिमाग में एक बात आयी कि क्यूं न एक पोस्ट ही लिख दी जाए . तो लीजिये हाजिर है . . . .
किसी भी धर्म को पालने वाले जब अच्छे काम करते हैँ तब सारी दुनिया उन्हेँ याद कर माथा झुकाती है श्रध्धाँजली देती है - जैसा मेरी पोस्ट मेँ राजकुमारी नुर के लिये साफ साफ दीक रहा है अन्यथा , ऐसे ही लोग मिलते हैँ जिनके लिये . . कहेँगेँ . . " यूँ ही कोई मिल गया था सरे राह , चाभी फेँकते " ; - ) - लावण्या
> > क्या ' श ' के स्थान पर ' ष ' और ' ष ' के स्थान पर ' श ' बन जाता है ? ( या श के स्थान > > पर ' ष ' बन जाता है और जहाँ ' ष ' होना चाहिये वहाँ भी ' ष ' है ? )
शहीदों के मामले में इसप्रकार का कृत्य शर्मनाक है
समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध जो तटस्थ हैं समय देखेगा उनके भी अपराध
खुदा न करे हो कोई ज़ालिम तिरा गिरेबान पकड़ने वाला मेरे लहु तु दमन से धो , हुआ सो हुआ
जहां तक चीन और भारत में महंगाई दर की बात है , तो एडीबी के अनुमान के अनुसार भारत की महंगाई दर 2011 और 2012 में लगातार घटेगी , लेकिन चीन में साल 2010 के आंकड़े के मुकाबले महंगाई दर में बढ़त देखने को मिलेगी .
कहिये तो आसमान को ज़मीन पर उतार लाये मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये
वीडियो - वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से मुक्त गिर , 11 सितंबर , 2001
पर अगर हृतिक - राकेश रोशन की पिछली फ़िल्मो की बात की जाए तो , ' काइट्स ' मे ना तो ' कहो ना प्यार है ' की प्रेम कहानी जैसी मिठास है , नही ' कोई मिल गया ' की तरह धरती पर एलीयन आने की जादू भारी दास्तान है और ना ही ' क्रिश ' की तरह हृतिक सूपरहीरो के अंदाज़ मे नज़र आते है |
दाएं या बाएं फिल्म हिमालय के अंचल में स्थित गांव के एक स्कूल टीचर की कहानी है । रमेश मजीला टीवी गेम शो में एक शानदार कार जीत जाते हैं । इस जीत के साथ ही वे गांव में चर्चा का विषय बन जाते हैं । . . .
@ स्वप्नदर्शी - आपने स्त्री विमर्श का मसाले पर अपनी राय दी , शुक्रिया . इतना ही कहूँगा कि सबकी अपनी अपनी राय होती है और होनी ही चाहिए . मेरी राय आलोक जी की कविताओं से बनी है , मेरा उनसे परिचय है पर उनकी निजी ज़िन्दगी के बारे में अधिक जानने का दावा नहीं कर सकता . कथनी मैं जानता हूँ और करनी भी किसी हद तक . आपकी राय ज़रूर असीमा ( क्रांति ) भट्ट का संस्मरण पढ़ा कर बनी होगी . मैं कहूँगा कि वैसी कविताएँ कभी झूट नहीं बोलती , जैसी आलोक जी ने स्त्रियों पर लिखी हैं और कोई झूट कहे तो तुरत कविता में ही पकड़ा जाता है .
मौन है इन्सानियत के क़त्ल पर इन्साफ़ घर
अमेरिका का अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन के खिलाफ चलाया गया ' ऑपरेशन जेरीनेमो ' की सारे संसार में तारीफ हो रही है कि किस प्रकार उसके नेवी सील के जांबाज कमांडोज ने एबटाबाद में पाकिस्तानी सैन्य अकादमी की नाक के नीचे मात्र 40 मिनट में पाकिस्तानी सरकार , सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई को खबर हुए बगैर दुनिया के सबसे वांटेड आतंकवादी को न सिर्फ मार गिराया बल्कि उसका शव और कम्प्यूटर आदि सुबूत लेकर स्टील्थ टेक्नॉलॉजी से निर्मित हेलीकाप्टरों में उड़कर अपने ठिकाने पर लौट भी आये । दुनिया को इसकी सूचना तभी लगी जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने व्हाइट हाउस से यह सम्बोधन किया कि लादेन मारा जा चुका है । अब सारी बहस इस पर हो रही है कि लादेन के शव के फोटो क्यों नहीं जारी किये गये , उसे समुद्र को क्यों दफना दिया गया , सारे आपरेशन की खबर पाकिस्तान सरकार को क्यों नहीं दी गयी , क्या पाकिस्तान को ओसामा के ठिकाने की जानकारी थी , अमेरिकी हमले के दौरान पाकिस्तानी सेना की नाकामी पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं ।
वह योग शिक्षक था लेकिन कारपोरेट जगत का एक जाना माना नाम बनता जा रहा था । उसके सहयोगी भी इसमें पूर्ण रूप से उसके साथ थे । वह आदरणीय माना जाता । देश में उसकी कहीं भी उपस्थिति उस स्थान विशेष को चर्चा में ला खड़ा कर देती । लेकिन अब यह शुरुआत थी उसके निर्विवादित से विवादग्रस्त होने की । उसने सत्तासीनों को खुले आम चुनौती दी । उसने ललकारा तथा घोषणा की कि अगले चुनावों में वह सभी पांच सौ तैंतालीस सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करेगा । उसके यह घोषणा करते ही मीडिया में वह एक दूसरे व्यक्तित्व के साथ छा गया । वह अब योगगुरू और कारपोरेट होने के साथ साथ राजनैतिक व्यक्तित्व का भी स्वामी होता दिखा । उसने आरटीआई के सहारे तथ्यों का अंबार लगाया । देश की जनता को बताया कि किस प्रकार देश को खोखला किया जा रहा है । उसने बताया कि देश के बाहर कितना काला धन पड़ा है जो कि वापस आना चाहिये । यह बात दूसरी है कि वास्तव में यह जानने लायक बात है कि बाहर कितना धन है । इस बारे में तथ्य अलग - अलग थे । उसने बताया कि देश में कितनी संपदा भूगर्भ में है और इसका आर्थिक मूल्य क्या व कितना है । उसे लगा कि यह सारी संपदा लूट कर इससे प्राप्त धन बाहर भेजा जा सकता है । उसकी आशंकाओं को निराधार कहना मूर्खता होगी क्योंकि यह देश वास्तव में अतुलित संपदा का स्वामी रहा है और लंबे समय से लुटता आ रहा है । सोने की चिड़िया जैसे देश में आज अस्सी प्रतिशत लोगों के प्रतिदिन बीस रूपये पर गुजारा किये जाने की बातों से हम अक्सर रूबरू होते हैं । उसने सोचा कि वह सब कुछ बदल देगा । यह खुशी की बात थी । कोई सामने आ रहा था कुछ परिवर्तन करने को । उसने इसे एक आंदोलन का स्वरूप देना शुरू किया ।
मैं भी बहुत दिनो से ' आजादी बचाओ आन्दोलन ' का साहित्य पढ़ता रहा हूं और उनकी गतिविधियों को देखता रहा हूं । मुझे उनका चिन्तन बहुत गहन मालूम पडता है ।
शरीफ लोग एक सुन्दर शरीफ स्त्री , निपट अकेली बीच बाजार में भूल - भूलैया में पड़े चूहे सी भटकती , हर रास्ते और मोड़ पर बैठे शोहदे उसे दबोचने की फिराक में पीछा कर रहे थे । उनकी तत्परता देखने लायक थी । ' चूहिया अंतत : दबोच ली जायेगी ' उस सुन्दर स्त्री ने सोचा , और मन ही मन कुछ निर्णय किया । देखा एक शरीफ अधेड़ आदमी बाजार से कुछ खरीद कर घर की ओर जा रहा था । वह उसके गले पड़ गई - आप कहाँ चले गये थे मुझे छोड़कर , कब से ढूँढ रही हूँ ' अधेड़ आदमी अवाक देखता रहा - मैं इतनी गई बीती तो नहीं , कसम खाती हूँ तुम्हारी दासी बनकर रहूँगी । शोहदे ठिठक गए - जैसे हाथ से शिकार निकल गया हो शरीफ आदमी ने , बीच बाजार में , लोगों को तमाशे का मजा लेते देख , कहा - यहाँ तमाशा मत बनाओ घर चल कर बात करेंगे । गर्मी अप्रत्याशित ही मध्यावधि चुनाव का एलान हुआ जनवरी का महीना कड़ाके की ठण्ड हाथ - पाँव ठंडे हो गये । ' वोट तो देना ही है , भाई किसे दें ? क्यों दें ? और फिर ठंड में हाड कँपाने क्यों जाएँ ? ' आप उसकी फिक्र न करें , कार्यकर्ता ने आश्वस्त करना चाहा ' तो भई गरम कोट का इन्तजाम हो जाये । ' हो जायेगा , तुम चलो तो सही , पिछ्ली बार कम्बल बाँटे थे कि नहीं । ' सो तो ठीक है , मगर ' अच्छा - अच्छा चलो , कार्यकर्ता परेशान होकर बोला ' ' वे जीप में बैठ गये । लाईन में खड़े , कोट पहने काँप रहे थे , हाथों को रगड़कर गर्मी लाने का उपक्रम कर रहे थे ' कार्यकर्ता से बोले भाई हाथ गरम करो , बड़ी ठंड पड़ रही है , कार्यकर्ता ने झुँझलाकर कुछ नोट रखे उसके हाथ पर , और हिदायत दी - ध्यान रखना । यह भी कोई कहने की बात है । उन्होंने दाँत निपोरते हुए कहा । अब वे पूरी तरह गरम हो चुके थे । दबाव शासक पार्टी टूट रही थी राजधानियों मे भगदड़ मची हुई थी । दिल्ली में ब्रेक - अवे ग्रुप की बैठक चल रही थी । कुछ विधायक भोपाल से भी गए थे । मुख्यमंत्री पर दबाव डालने का इससे सुनहरा अवसर कौनसा हो सकता था । मुख्यमंत्री भी चौकन्ने थे , दिल्ली की बैठक से लौटे तो मुख्यमंत्री ने खबर ली । ' तो आप हमारे घटक के मजबूत कार्यकर्ता हैं ? वे बगलें झाँकने लगे । मंत्रीपद का आश्वासन मिला है ' ' नहीं ऐसी बात नहीं है , … ' ठीक है एडजस्ट कर लेगें अगले महीने मंत्रीमण्डल का विस्तार कर रहे हैं । तब तक ये लो हवाई टिकट , अगले सप्ताह डेलीगेशन टोक्यो जायेगा घूम - फिर कर आइये । दर्द उठे तो हमे कहिए , क्यों सीधे दिल्ली भाग जाते हैं ? जी - अच्छा , और लौटते समय वे आश्व्स्त और सतुष्ट थे । खदेड़ना गांव के छोर पर , जहाँ नदी बहती है तथा जहाँ से जंगल आरंभ होता है , वहाँ सियार हूक रहे थे । एक पहर से ज्यादा रात निकल चुकी थी , सर्दी के दिन थे और लोग बिस्तरों में घुसने का इन्तजाम कर रहे थे , किंतु सियारों की हुँआ - हुँआ उन्हें नींद नहीं लेने दे रही थी । जैसे ही सियारों की हुँआ - हुँआ तेज हुई , गाँव की गलियों में रहने वाले कुत्ते भी भौंकने लगे । अब तो सोना मुश्किल हो गया गांव का एक कर्रा जवान उठा , लोहा जड़ी लाठी उठाई और कुत्तों के पास जाकर बोला क्यों भौंक रहे हो ? - हम सियारों को खदेड़ रहे हैं , कुत्ते बोले । - अच्छा ! उसने अपनी लाठी उठाई और कसकर मारी , कुत्ते बैं - बैं कर दुम दबाये भागने लगे । वह चीखा - इसे कहते हैं खदेड़ना कुत्तों ।
अगले दशकों में कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन काफ़ी मात्रा में बढ़ जाएगा क्योंकि जर्मनी की तरह ही तमाम देश बिजली के लिए कोयले का इस्तेमाल करने लगेगें और ये जलवायु परिवर्तन के लिए बुरा है .
न्यूज एक्सप्रेस से मनीष कुमार ने इस्तीफा दे दिया है . वे यहां पर प्रोड्यूसर थे . इन्होंने अपनी नई पारी इंडिया टीवी के साथ शुरू की है . इन्हें यहां भी प्रोड्यूसर बनाया गया है . इसके पूर्व मनीष न्यूज24 , एमएचवन और केटीएन न्यूज को भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं .
महत्वपूर्ण आपका इंटरनेट सेवा प्रदाता ( ISP ) ( ISP : एक व्यवसाय जो इलेक्ट्रॉनिक मेल , चैट रूम्स , या वर्ल्ड वाइड वेब के उपयोग के लिए इंटरनेट तक पहुँच उपलब्ध करवाता है . कुछ ISPs बहुराष्ट्रीय होते हैं , जो कई स्थानों पर पहुँच उपलब्ध करवाते हैं जबकि अन्य केवल किसी विशेष स्थान तक सीमित रहते हैं . ) Microsoft , या आपके ई - मेल व्यवस्थापक को न तो आपके पासवर्ड तक पहुँच प्राप्त होती है , न ही वे आपके पासवर्ड भूल जाने पर . pst फ़ाइल की सामग्री को पुनर्प्राप्त करने में आपकी सहायता कर सकते हैं .
इसके ठीक बाद जो दूसरा टेप है , वो भी अमर सिंह और अनिल अंबानी के बीच बातचीत का है . इसमें कुछ मजेदार बातें हो रही हैं . . . . जैसे . . . उनकी बेटी तो आपकी पाकेट में है . पाकेट में तो आजकल कोई नहीं होता सिवाय आपके कि हम आपके हैं और आप हमारे . हम आपके हैं कौन . . . . हा हा . बिहार चुनाव में क्या हो रहा है . अर्जुन सिंह . दिल को खुश रखने को ग़ालिब ये खयाल अच्छा है . आज आए थे विनय और . . . . कुछ पांच सौ आठ सौ हजार करोड़ का आर्डर मिलेगा उनको आज . मैंने कहा कि बिना अमर सिंह के एप्रूवल के कुछ भी आपको नहीं मिलेगा . अभी दूं या न दूं उसको . वो जानते हैं कि रिलायंस इंफोकाम और रिलायंस एनर्जी का मालिक मैं ही हूं . ये खाली ट्रेडिंग है बास , चाइना से इंपोर्ट करके देने का . इस हाथ दे उस हाथ ले . दूसरा टाटा ने बेच दिया उस प्रोजेक्ट का . मेरे पास आ गया मेल . मुबारक हो . इतना हाई कास्ट है प्रोजेक्ट . संजय रेडी है . टैरिफ में आई नहीं सकता . टेंडर करेंगे , आपका भाव क्या होगा , देखेंगे . एसईजेड वाला देख लीजिए आप . और सब सुख शांति है सर . . . . सुख शांति क्या , उसको जल्दी से कराकर भिजवा दीजिए .
आप विषय को बहुत अलग तरह से देखते हैं । आपका यह अवलोकन भी अच्छा लगा ।
समिखजी , आप हिन्दी युग्म के वफादार मेंबर हो . जो हमने कहा है १०० % सच है . हर नियम और नीति हर जगह नहीं लागू होती है . शिव खेर के बात छोडो , कबीर ने कहा है की बहुरूपियों से बचो . कुछ महीने में जान जाओगे , , , , , सादर सुमित दिल्ली
@ Sunil Kumar बहुत धन्यवाद आपका । @ सतीश सक्सेना उत्साह के परिवेश में लिखी रचना का प्रभाव जो चाहा था , प्राप्त हो गया । @ ashish जीवन बाधाओं से परे जब दौड़ने लगती है तो उत्साह छा जाता है । @ Arvind Mishra रहे खिलखिलाती वह चुलबुल दुपहरी . . @ OM KASHYAP बही चले इसी मगन में ।
1915 से 1947 तक कांग्रेस का इतिहास आजादी के आंदोलन के एकमात्र राजनीतिक दल का इतिहास है . लेकिन 1947 के बाद अखिल भारतीय कांग्रेस का इतिहास मात्र एक राजनीतिक दल का इतिहास हो जानेवाला था . संभवत : महात्मा गांधी ने इसीलिए कांग्रेस को विसर्जित करने का भी सुझाव दिया था . ऐसा नहीं है कि 1907 से कांग्रेस में अलग अलग विचारधाराओं का जो टकराव शुरू हुआ वह 1915 के बाद बंद हो गया . फिर भी कांग्रेस बिना किसी संदेह के सबके लिए एक प्रतिनिधि दल था . ब्रिटिश साम्राज्य ने जिस राजनीतिक चेतना को डिफ्यूज करने के लिए कांग्रेस को औजार की तरह चलाया था वही अब अपनी पूरी मारक क्षमता के साथ ब्रिटिश साम्राज्य पर ही प्रहार कर रहा था . 1947 में ब्रिटिश उपनिवेशवाद से छुटकारा मिलने के बाद कांग्रेस एक राजनीतिक दल के रूप में देश के सामने था . उपनिवेशवाद से मुक्ति के बाद भारत को विरासत में जो कांग्रेस मिली लंबे समय तक लोगों का उसके प्रति जुड़ाव पूरी तरह से भावनात्मक बना रहा . बीसवीं सदी के उत्तरार्ध तक गांव - घर के बड़े बुजुर्ग कांग्रेस को महात्मा गांधी की कांग्रेस ही समझते रहे और दुहाई देते रहे कि जिस पार्टी ने देश को आजाद करवाया आज उसे ही लोग सम्मान नहीं दे रहे हैं . लेकिन इक्कीसवी सदी में अब न वे लोग बचे हैं जो आजादी के आंदोलन से कांग्रेस को जोड़कर खुद भावनात्मक रूप से जुड़े रह सकें और न ही वह झूठ बचा है कि जो उस कांग्रेस और इस कांग्रेस के बीच एक महीन धागे के रूप में जुड़ा हुआ बताया जाता था .
आप वेब डिज़ाइन प्रोग्राम के उपयोग से नया मुख्य पेज बना सकते हैं जो कि Microsoft Windows SharePoint Services के साथ संगत है , जैसे कि Microsoft Office SharePoint Designer . आप किसी मौजूदा मुख्य पेज का डुप्लिकेट बना सकते हैं , जिसमें आप तब तत्व बदलने के लिए संपादित कर सकें जिसे आप भिन्न करना चाहते हैं .
इस महान अभिनेता का 13 अप्रैल 1973 को 59 साल की उम्र में निधन हो गया ।
बहुत बधाई . मुन्ना भाई ब्लाग चर्चा मे आपका इंतजार कर रयेले हैं . जल्दीईच पधारने का और आपकी राय भी देने का . मैं आपका इंतजार कर रयेला है . आप आयेंगे तो बहुत अच्छा लगेगा ना .
ये पुस्तक ऐस्ट्रिड ने अपनी बीमार बेटी को कहानियाँ सुनाने के लिये लिखी । किताब से न केवल पुराने स्वीडन की संस्कृति का पता चलता है बल्कि ये भी कि पिप्पी बच्ची होने पर भी कितनी स्वतंत्र है । साठ साल पहले लिखी ये किताब आज भी बड़ी सार्थक है , भले ही भारतीय पाठक कई बातों को पचा ना पायें । 50 रुपये की इस किताब में 102 पेज हैं और अनेक सुंदर रेखांकन हैं ( ISBN क्रं 81 - 86895 - 91 - 4 ) ।
' जागरण ' द्वारा इस बारे में पूछे जाने पर डा . सरन ने कहा कि इससे अपच और एसिडिटी पैदा हो जाती है जो विभिन्न प्रकार के घातक उदर रोगों को जन्म देती है । इसका सेवन करते ही सीने में असहनीय जलन होती है । दूध में इसकी मिलावट जनस्वास्थ्य के साथ क्रूर करतूत है ।
मैं नए प्रकार के शो करने के लिए तैयार हूं , लेकिन क्या करूं ? मेरे पास कॉमेडी शो के प्रस्ताव ही आते हैं , लेकिन मैं खुश हूं । मेरे लिए सबसे अधिक जरूरी काम है ।
मैने ये नही कहा की सुभाषचन्द्र बोस , भगत सिह , चन्द्रशेखर ऑतकवादी थे . उनको भी वही सम्मान प्राप्त है जो गॉधी जी को है . सबकी मन्जिल एक ही थी . वैसे आपने कहा है की आप गॉधीजी के आहिसॉ का विरोध करते है , कृप्या आप बतायेगें आप जानते क्या है , गॉधीजी के आहिसॉ के बारे में . और जहॉ तक कॉग्रेस की बात है . . . . आप जो भी कहे कोई फर्क नही पडता है . गॉधीजी को अगर जानना है तो , सन १९४७ से पहले अपने देश का क्या हाल था उस पर जरा गौर किजियेगा . हॉ आज के सर्न्दभ मे गॉधीजी एकदम सही नही है . . . . पर १९४७ के पहले गॉधीजी बिल्कुल सही थे . और नेताजी माफी मॉगते हुये आपसे कहना चाहुगॉ की " अगर आप गोड्से को अपना IDLE मानते है तो मुझे आप की मानसिकता पर हँसी आती है " हत्यारा हमेशा हत्यारा ही रहता है . चाहे उसने हत्या एक पापी की की हो या किसी सज्जन की . . . . . अब आप ये मत कहना की आपको अपने देश के संविधान पर भी भरोसा नही है .
फिर एक बार बढ़िया मुद्दे पर आपकी दिमागी हलचल अटकी । वैसे सुब्बो सुब्बो ये सब फोटो लेते हुए आपके इन्ट्रोवर्ट मनवा को झिझक नही हुई क्या । कल वाकई ज्यादा स्पैम आए , यही सब आपने जो बताया । मुझे लगता है कि जीमेल स्पैम फ़िल्टर स्ट्रॉंग होने की बात क्यों करता है , जितने याहू में आते हैं तकरीबन उतने ही जी मेल में भी आते हैं ।
न बने जब बात प्यारे टूट कर बिखरे नजारे मैं चलूँगा हमसफर बन छोड़ दे जब साथ सारे
मैंने इससे पहले अध्याय में उल्लेख किया है कि राजीव गांधी को उस समय आरक्षण के बारे में बोलना पड़ा था , जब पक्षपातपूर्ण राजनीति तथा चुनावी लाभ की दृष्टि से आरक्षण पर विचार किया जा रहा था । मंडल आयोग की सिफारिशों पर हुई बहस में सितंबर 1990 के लंबे - चौड़े भाषणों में इस विपक्षी नेता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी . पी . सिंह पर आरोप लगाया कि ' इस प्रकार के आरक्षण से भारत की एकता और अखंडता को खतरा है । आपने पूरे देश में जातिवादी हिंसा भड़का दी है । ' राजीव गांधी उस समय गरजकर बोले थे । विशेष तौर पर उन्होंने समाज के विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों , तथाकथित संपन्न वर्ग को आरक्षण का लाभ देने के औचित्य पर प्रश्न उठाया था ।
आज पूरी दुनिया मे जो आर्थिक युद्ध छिडा है … कही न कही इसकी सबसे बडी जिम्मेदार ये रोटी ही तो है । इंसान उत्थान से पतन की ओर चला गया इस रोटी के चक्कर मे । रोटी ने जब चाहा शिकयत करवा दिया … तो रोटी ने जब चाहा प्रशंसा भी करवा दी । ये रोटी बडी जिद्दी है . . आज तो हर इंसान इसके आगे पिद्दी है । रोटी अपने पर आ जाये तो क्या नही कर सकती . . कहते है साहित्य इंसान को ज्ञान देता है , इंसान साहित्य से लाख ज्ञानवान हो जाये , पर रोटी एक क्षण मे उसे अज्ञानी बना देने का माद्दा रखती है ।
मुझे लिखे हुए दो महीने हो गए हैं । इस के लिए मैं माफी मांगती हूँ । मेरी ज़िंदगी मे बहुत कुछ हुआ हैं । जैसे छुटीयों मे मैं माँ , बाप , और बहन के साथ ताऊजी और दीदी के पास गयी थी । इन दो महीनों मे बहुत कुछ हुआ है । कल मे ही मार्केट बहुत गिरा है । लेकिन मेरे बाप ने इस के बारे मे कुछ अच्छा कहा , इस से नीचे तो जा नही सकता , अब तो ऊपर ही जा सकता है , तो अभी स्टॉक खारीदना चाहिए । समाचारपत्रों मे भी इस पे बहुत विचार हुआ हे कि ऐसे व्यवस्था मे क्या करना चाहिए । एक सलाह जो सी . एन . एन ने दी थी वो मे आप सब को भी देना चाहूंगी - - घबरा के कोइ कदम ना उठाएं । अगर आपके पास जीविका चलाने के लिए काफी पैसे हैं तो आप इन्वेस्ट किये हुए पैसे को आज छूएँ ही न । लेकिन मुझे कम जानकारी है तो मैं बस वही दोहरा रहीं हूँ जो मैंने सुना । एक जगह जहाँ मेरी जानकारी ज़्यादा है - राजनीती । अमरीका का चुनाव है वह अभी से ही बहुत लड़ाई भरा लग रहा है । देमोक्रटिक पार्टी के दो प्रमुख अभीलाशी ओबामा और क्लिंटन के बीच क्रोध - भरा जंग हो रहा है । मुझे यह बहुत दुखित करता है क्योंकि यह पार्टी के लिए अछा नहीं है । और मे चाहती थी की क्लिंटन राष्ट्रपती बने और ओबामा उपराष्ट्रपति । लेकिन रेगन और जोर्ज एह . डबल यूं बुश के बीच भी बहुत लड़ाई हुई थी फिर बुश रेगन का उपराष्ट्रपति बना । तो अभी भी यह हो सकता है । लेकिन मुझे एक बात का अव्सोस है । पहले क्लिंटन समस्याओं और सुझावों के बारे मे बात कर रही थी । फिर जब पहली चुनाव मे उसकी हार हुई , सब ने कहा वह उस के वाजे से हुई । तब से उसने लड़ाई छेड़ ना शुरू किया । क्या अभ भी अमरीकी वोट डालते हुए सुझावों को प्रथम नहीं मानेंगे । जब तक जनता यह नही कहेगी कि हम सुझाव देखके वूतें डालेंगे तब तक मंत्रियों और अभीलाशीयों उनको प्रथम नहीं मानेंगे और अभियान मे खूब लड़ाई होगी ।
और यहाँ शाह हनुमानुद्दीन की प्रतीक्षा हो रही है ! कौन कहता है कि ब्लागिंग फालतू का काम नहीं है ? निराश न हों , शाह हनुमानुद्दीन से मिलवाऊँगा अवश्य , यह लाला की ज़ुबान है । बस . . . . जरा उसे तेल लेकर लौटने तो दें । नमस्कार !
हालांकि पुलिस के सामने दिये गए बयान की कोई अहमियत नहीं फिर भी अगर इसे सच मान भी लें तो ये हैदराबाद पुलिस के मुंह पर एक ज़ोरदार तमाचा होगा . आखिर यासिर सिमी का पूर्व सदस्य था , उसके पिता और एक भाई आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद हैं . उसके पिता की जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट तक से खारिज हो चुकी है . ये जानते हुए कि उसके भाई और बाप खतरनाक आतंकवादी हैं हैदराबाद पुलिस को हर वक्त उसकी निगरानी करनी चाहिए थी , और जैसे ही वो आतंकियों के संपर्क में आया उसे गिरफ्तार करना चाहिए था .
वैसे पूंछ का सही इस्तेमाल चाहे पहले कांग्रेसियों ने ही शुरू किया हो लेकिन इसका प्रचार - प्रसार बहुत व्यापक रहा है , और पूंछ हिलाने वालों को इसका काफ़ी फ़ायदा भी मिला है . बाक़ी दल भी अब इस कला में निपुण होते जा रहे हैं लेकिन कांग्रेसी तो अब और ' परफ़ेक्शन ' की तलाश में हैं .
विवाह नामक संस्था में वर और वधू की शादी करवाने से पहले कई तरह के कर्म - कांड और कुण्डली मिलान आदि किए जाते हैं . साथ ही विवाह के समय इस बात का भी ख्याल रखा जाता है कि वर , वधू से बड़ा हो यानि लड़का , लड़की से बड़ा हो फिर वह चाहे कुछ महीने या साल ही क्यूं ना हो . लड़के और लड़की की उम्र में यह फासला उनके भावी भविष्य को ध्यान में रखकर ही किया जाता है .
which equals १० ५३ , यह अंक बुध्ध बतलाते हैं और जीत जाते हैं !
यह सामाजिक उन्नति तो नहीं , सामाजिक अवनति है । कोई भी नशा उन्नति की ओर नहीं ले जा सकता यह तो तय है । हमारे प्रयासों से हिमाचल के तमाम जिलों में जागरूकता फैली है । चिपको आंदोलन के कारण वनों की कटाई पूर्णतः बन्द है । पाँच जिलों में संपूर्ण मद्यनिषेध अपनाया गया है । ये बातें कम महत्वपूर्ण नहीं हैं ।
अब तक आपने ' पिंक चड्ढी कैम्पेन ' के बारे में तो सुना / पढ़ा होगा ही , कईयों ने तो कुछ पिंक न सही लाल पीली भेज भी दी होंगी । आज पता चला कि श्री राम सेना चड्डियों के बदले साड़ियाँ भेज रही है । मैं तो कहता हूँ कि इस साल ५ - ६ बार वैलेंटाइन डे मना लेते हैं , देश का ज़बरदस्त तरीके से भला होगा ! कैसे ? अब देखो देश भर में राम सेना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदे जाएंगे , हजारों की संख्या में । राम सेना साड़ियाँ खरीदेगी , फ़िर से हजारों की संख्या में । टेक्सटाइल और कपड़ा उद्योग के हुए न वारे न्यारे ! अब ये सब सामान भेजा जाना है तो उसके लिए कुरियर कंपनियों की ज़रूरत पड़ेगी । इतना सामान , सोचो कितना पैसा ! ये तो हुआ डाइरेक्ट वाला फायदा , इनडाइरेक्ट वाला और भी लंबे समय तक चलने वाला है । श्री राम सेना ने कहा कि अगर जोड़ों को पकड़ा गया तो शादी करा देंगे । शादी तो इस देश का सबसे बड़ा रिसेशन प्रूफ़ धंधा है । २ लोग शादी करते हैं , २००० लोगों की रोजी चलती है ! ( वैसे कहीं ये शादी वाला एंगल शादी बिजनेस वालों के कहे पर तो नहीं लाया गया है ? देखना पड़ेगा । ) लेकिन मैरेज ब्यूरो और शादी वाली वेबसाइट्स के पेट पर तो लात पड़ेगी । वैसे एक ज़बरदस्त आईडिया । अगर आपका परिवार आपकी प्रेमिका या प्रेमी को पसंद नहीं करता और आपके ' बाबूजी ' ने कह दिया है कि " उस घर में तेरी डोली ( या तेरी घोड़ी ! ) उनकी लाश पर ही चल कर जाएगी " तो इस दिन बिंदास अपने प्रेमी / प्रेमिका के साथ निकल जाइए और पूरी कोशिश कीजिये कि आप इन बंदरों , मेरा मतलब है राम सैनिकों ( अब राम की सेना में तो बन्दर ही थे न ) की नज़र में आ जाइए । बस बाबूजी की लाश का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं ! ( वैसे प्रमोद मुतालिक और उनके बन्दर किसी जंगल में ही रहें तो बेहतर है । न तो हमारे शहरों में इनके लिए जगह हो और न ही हमारे मन में ! ) पढ़ें मंगलौर घटना के असली हीरो के बारे में । क्या आप पवन शेट्टी को जानते हैं ?
रही बात मेरे घुमंतू - संदेश की तो ये बात सही है . मैंने तो कई बार ज्ञान भैया से कहा है कि अपना यूजर आईडी और पासवर्ड दे दें और ये मेरे एसएम्एस करने का झमेला ही खत्म हो जायेगा . मैं पोस्ट के लिए सबसे पहले ज्ञान भैया का कमेंट लिख लूंगा और पोस्ट बाद में पब्लिश करूंगा . बाल किशन , संजीत , काकेश जी से मैंने इन लोगों का यूजर आई डी ले लिया है और पोस्ट पब्लिश करने के बाद इन लोगों के नाम से टिपण्णी ख़ुद ही दे डालता हूँ . आख़िर सबकुछ अपने हाथ में रहना चाहिए .
चलिए पहले कनिमोझी को जान लें , बेहद खूबसूरत करूणानिधि की बेटी का स्वप्नपुरुष कभी कोई अरबपति नहीं रहा । एक वक्त " द हिन्दू " की रिपोर्टर रह चुकी कनिमोझी ने जब शिवकाशी के अतिभान बोस से १९८९ में शादी की तो उसे पैसे की नहीं उसके कवि मन को समझने वाले साथी की जरुरत थी , जिसमे अतिभान असफल रहा । नतीजा तलाक के रूप में सामने आया । कनिमोझी ने १९९७ में एक बार फिर शादी की । इस बार उसे जाने माने तमिल लेखक जी . अरविन्दन मिले । ये आँखों - आँखों का प्रेम था जो विवाह में तब्दील हो गया । लेकिन विवाह के बाद कनिमोझी एक बार फिर अकेले हो गयी । अरविन्दन को सिंगापुर ज्यादा पसंद था । वो चाहता था कि कनोमोझी साथ चले मगर कनिमोझी धीमे धीमे राजनीति में अपने पाँव आगे बढ़ाना शुरू कर चुकी थी । अरविन्दन को ये पसंद नहीं आया । कनिमोझी की लाख कोशिशों के बावजूद अरविन्दन ने उसे फिर से अकेला कर दिया ।
क्या भाई , अपने ऐसे मज़ाक उडाने के लिए एक आप ही रह गए थे ?
सुबह उठते ही कोसी का पानी बर्तन , डिब्बो , बाल्टी में भरना । फिर कोसी के पानी को ही छान कर पीना । कोसी के पानी में ही नहाना - धोना । कोसी के पानी से ही सब्जी - दाल - चावल धोना और बनाना । और कोसी के किनारे रात गुजार कर फिर सुबह उठ कर जिन्दगी का अगला दिन काटना । कोसी के तटबंध पर यह जीवन सौ - दो सौ परिवारों का नहीं करीब चार से पांच हजार लोगों का जीवन है । वह भी साल भर से । यानी जिस कोसी ने जिन्दगी बर्बाद कर दी , वही कोसी ही हजारों हजार परिवार को आश्रय दिये हुये है । और इस दौर में कभी कोई राजनीतिक व्यवस्था या सरकारी व्यवस्था ने उनके झोपड़ की कुंडी पर दस्तक नहीं दी । ऐसे में एकाएक कोई भी राजनीतिक दल अगर भोजन , पानी , कपड़े और घर दिलाने का वायदा करें तो कौन किस पर भरोसा करेगा ? नीतिश कुमार कोसी इलाके का कायाकल्प करने का भरोसा दिला रहे हैं । तो भाजपा कोसी बाढ़ से प्रभावितों को एक बेहतर जीवन देने का वायदा कर रही है । वहीं लालू यादव कोसी के तटबंधो पर आश्रय लिये परिवारों को भोजन , पीने का पानी , इलाज की सुविधा और घर देना का भरोसा दिला रहे हैं । लेकिन कांग्रेस यह कहने से बच रही है कि उसने कोसी बाढ़ पीडितों के लिये कितनी मदद दी । कांग्रेस यह जरुर कह रही है कोसी को राष्ट्रीय विपदा मनमोहन सरकार ने ही माना । मगर उसकी एवज में तटबंधों पर टिके हजारों परिवारों को क्या राहत मिली इस पर कांग्रेस खामोश है । भाजपा भी यह बोलने से कतरा रही है कि नीतीश कुमार ने कोसी बाढ़ राहत के लिये नरेन्द्र मोदी के पांच करोड़ रुपये क्यों लौटा दिये । जबकि कोसी के तटबंध पर टिके परिवारों के लिये पांच रुपया भी दिनभर के जीने का जरिया बन जाता है । तटबंध पर टिके पांच हजार परिवारों को जाति और इलाकों में बांटना मुश्किल है । महादलित से लेकर मैथली ब्राह्मण परिवार भी सबकुछ डूब जाने के बाद एकसाथ एक कतार में तटबंध पर जी रहे हैं , और कुछ मुस्लिम परिवार भी इसी कतार में रह रहे हैं । और इलाके तो कई जिलों को यहां एक किये हुये हैं । बारा पंचायत , कोनापट्टी , घमदट्टा , चौसा से लेकर पसराहा तक के क्षेत्रों में रहने वाले तटबंधों पर टिके हुये हैं । तटबंधो पर टिका कुशवाहा परिवार हो या रामजनम का परिवार या फिर अंसारी परिवार । सभी की जरुरत एक सी है और राजनीतिक दलों के जातीय खांचे में बंटे लुभावने वायदों में इन्हे बांटा भी नहीं जा सकता । पांच साल पहले किसी के इलाके में नीतीश कुमार का तीर चला था तो किसी के इलाके में लालू यादव की लालटेन जली थी । लेकिन पांच साल पहले यह तमाम इलाके किसी राजनीतिक दल के लिये मायने नहीं रखते थे मगर पांच साल बाद आज की तारीख में हर राजनीतिक दल के लिये यह इलाके इतने मायने रखते हैं कि हर के चुनावी घोषणापत्र में इन्हे जगह मिली है । मगर चुनाव को लेकर हो रहे दावों - प्रतिदावों से दूर यह पूरा इलाके में नीतीश कुमार का बीते पांच बरस का विकास मायने नहीं रखता । क्योंकि यहा सिर्फ पगडंडी है । सड़क नहीं । कानून व्यवस्था का सुधार मायने नहीं रखता । क्योंकि अपराध है नहीं । कभी पुलिस वाला या कोई नेतानुमा जरुर दो से पांच रुपये प्रति घर वसूली कर ले जाता है । लेकिन यह अपराध नहीं भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है । और नीतीश कुमार ने चुनाव प्रचार के दौरान यहा वायदा किया है कि वह सत्ता में लौटे तो अगली लड़ाई भ्रष्टाचार को लेकर शुरु करेंगे । यहां राहुल गांधी प्रचार में नीतीश कुमार को नरेन्द्र मोदी और आरएसएस का साथी बता कर उनकी घर्मनिरपेक्ष छवि पर हमला करते हैं । लेकिन यह प्रचार भी यहां मायने नहीं रखता । क्योंकि हिन्दु - मुस्लिम दोनों ही तटबंध पर घर - परिवार के साथ न्यूनतम जरुरतो के जुगाड़ की बराबर की लडाई एकसाथ लड रहे है । लालू यादव यहा नीतीश के विकास को फर्जी करार देते हुये कोसी पीड़ितो को सबकुछ दिलाने का चुनावी प्रचार करते हैं । लेकिन यहां यह भी मायने नहीं रखता । क्योंकि हर दिन खाना - पानी जुगाड़ने से लेकर रोजगार की तलाश में व्यवस्था का फर्जीवाडा उन्हें हर रोज भोगना पड़ता है । राशन कार्ड होने पर भी सस्ता गेहूं चावल नहीं मिलता । नरेगा का रोजगार कार्ड होने पर भी रोजगार नहीं मिलता । और तटबंध के किनारे टिके लोगों को रिहायशी इलाके में पीने का पानी तक चंपाकल से भरने नहीं दिया जाता । तटबंध पर टिके बडे बूढ़ों को चुनावी राजनीति से ज्यादा अतीत याद आ रहा है । कैसे चार दशक पहले बाढ़ के कहर से बचाने में संघ के स्वयंसेवक लगे । कैसे सरकार ने सालो साल तक पूड़ी - सब्जी की व्यवस्था करायी थी । कैसे उस वक्त पीने का पानी टैंकर में भर कर आता था । कैसे इलाज के लिये कैंप लगे थे और डाक्टर रात में भी डिबरी की रोशनी में उलाज करने से नहीं कतराते थे । और कैसे कुछ जगहो पर बच्चों को पढ़ाने के लिये कुछ स्वंयसेवी संगठनों ने ब्लैक बोर्ड लटकाया था । लेकिन तटबंध पर टिके हजारों परिवारों का साथ छोड़ते ही महज एक किलोमीटर चलने के बाद ही नीतिश , लालू और राहुल की गूंज साफ सुनायी देने लगती है । चूंकि वोटिंग का आगाज कोसी के इलाके से ही होना है । और 21 अक्टूबर को सहरसा , अररिया , किशनगंज , पूर्णिया , कटिहार , मधेपुरा और मधुबनी की 47 सीटो के लिये वोट डाले जायेंगे तो जिन रिहायशी इलाको में तटबंध पर टिके लोगों को पानी भरने नहीं दिया जाता , उन जगहों पर चुनाव को लेकर अभी से असली चिल्लम - पौ इसी बात को लेकर है कि कोसी के इलाके में पांच साल पहले नीतीश कुमार को वोट मिले थे . . . क्या वह इस बार भी मिलेंगे या बंट जायेंगे । और मुस्लिम वोट किधर जायेंगे या वह किस नेता का दामन थामेंगे ।
यही एक ऐसा सवाल है जहां अभी भी भारतीय समाज के एक बड़े वर्ग की सोच संकीर्ण हो जाती है । भले ही यह वर्ग महिला सशक्तिकरण और आधुनिकता का ढोंग रचे लेकिन जाति से बाहर प्रेम करने और वह भी अगर प्रेम किसी लड़की ने किया हो तो यह वर्ग अपने आपे से बाहर हो जाता है । ऐसी स्थिति में इस वर्ग के लोग अपनी तथाकथित प्रतिष्ठा को बचाने के लिए कुछ भी कर गुजरने से बाज नहीं आते । निरुपमा के साथ भी ऐसा ही हुआ ।
@ राजीव जी - यह तो सिर्फ़ एक झलक है
दादा आप महान खिलाड़ी हो . टेंशन नहीं लेने का . शर्म आनी चाहिए कोलकाता नाइट राइडर्स को .
बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना राणावत को फिल्म फैशन के लिए सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है । कंगना इस बारे में कहती है , मेरे घर में इसे सेलिबे्रट किया गया मेरे माता - पिता की आंखों से खुशी की वजह से आंसू निकल आए । 23 वर्ष की उम्र में ही मैने देश का सबसे प्रतिष्टित पुरस्कार हासिल कर लिया । मुझे समझ में नहीं आ रहा है क्या करूं । दिल कर रहा है कि बैग पैक करूं और अपने माता - पिता के पास हिमाचल चली जाऊं ।
[ लेखन संबंधी अर्नस्ट हेमिंग्वे के इन विचार बिन्दुओं का कलन उनकी मरणोपरांत छपी पुस्तक ' ' ऑन रायटिंग ' ' से किया गया है . इस स्तंभ के अन्य लेखक यहाँ . ]
इतने दिनों में आज पहले बार पता चला की सिगरेट पीने का एक साईड , इफ्फेक्ट , वो भे अच्छे . . . कमाल के हैं विल्स कार्ड . . मैं तो पिछले वाले भी पढ़ गया . . . वैसे बाबूजी वाला और एक आध और को छोड़ कर अन्य सभी आपकी उस शोक शभा ( जिसका इन्वीटेशन नहीं मिला ) में भी चल जाता . . . क्या वाह वाह होती . . . , मगर दिवंगत शरीर भी उठ कर खादी हो सकती थी . . आपको . . . अरे नहीं आपके रूम मेट को धन्यवाद . . थोडा विल्स कंपनी को भी . अब समझा . . बीडी जलायीले . . . की महान रचना जरूर गुलज़ार साहब ने बीडी की पुडिया पर ही रची होगी . . लगे रहिये . . .
लंदन । खेल की दुनिया के दो महान खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर और रोजर फेडरर जब शनिवार को विम्बलडन - 2011 चैम्पियनशिप के दौरान विम्बलडन रॉयल बॉक्स की बाल्कनी में मिले उस समय वहां का नजारा देखने लायक था । विश्व के तीसरी वरीयता प्राप्त टेनिस खिलाड़ी फेडरर के अर्जेटीना के खिलाड़ी डेविड नलबैंडियन पर जीत दर्ज करने के बाद इन दोनों खिलाडियों को विम्बलडन रॉयल बॉक्स की बाल्कनी में गुफ्तगू करते देखा गया । तेंदुलकर को हाल के कुछ वर्षो में इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता का आनंद उठाते हुए देखा गया है । छह बार के विम्बलडन चैम्पियन फेडरर से मिलने के बाद तेंदुलकर ने टि्वटर पर ट्वीट किया , " स्विस . . .
दिनांक 2 सितंबर 1997 को रणवीर सेना के दरिंदों ने जहानाबाद के करपी प्रखंड के खडासिन नामक गांव में 8 और दिनांक 23 नवंबर 1997 को इसी प्रखंड के कटेसर नाला गांव में 6 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई । इसके बाद दिनांक 31 दिसंबर 1997 को ब्रहमेश्वर मुखिया की उपस्थिति में रणवीर सेना ने जहानाबाद के लक्ष्मणपुर - बाथे नामक गांव में एक साथ 59लोगों की निर्मम हत्या कर दी । यह बिहार में हुए अबतक का सबसे बड़ा सामूहिक नरसंहार है । पाठकों को बता दें कि इस नरसंहार के मामले में कुल 18लोगों को आजीवन उम्रकैद की सजा दी गई है । जबकि मुख्य अभियुक्त ब्रहमेश्वर मुखिया को इस मामले में बरी कर दिया गया और इसका श्रेय भी रणवीर सेना के दलाल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही जाता है ।
क्या आपने कभी गौर किया है कि पुरूष महिलाओं की अपेक्षा कम आयुष्य भोगते हैं . क्या वजह है कि महिलाएँ अधिक समय तक जीवित रह पाती हैं जबकि पुरूष उनसे कम अवधि तक ही जीवित रह पाते हैं ?
स्थिति प्रजातियों कि बहुत छोटे अंडे की जर्दी और एक छोटी थैली है में अलग है . वहां आम तौर पर माँ और भ्रूण के बीच एक बहुत करीबी रिश्ता है . गर्भाशय बढ़ रही है और लंबे समय से विशेष filaments छोटी शार्क के गलफड़े की श्लेष्मा झिल्ली घुसना . वे एक दूधिया पोषक पदार्थ की आपूर्ति के साथ कर रहे हैं , " ऊर्जा " पीने का एक प्रकार . इस रास्ते में , उदाहरण के लिए , बाघ शार्क ( Galeocerdo कुवियर ) 82 ( ! ) 51 - 76 सेमी चौड़ा ! ( ) भालू शावक ! गर्भाशय कई युवा पशुओं में कई अलग कक्षों में विभाजित है , प्रत्येक कक्ष एक भ्रूण के कब्जे में है .
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो तोह जिंदा हो तुम नज़र में ख़्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो तोह जिंदा हो तुम हवा के झोंकों के जैसे आजाद रहना सीखो तुम एक दरिया के जैसे लहरों में बहना सीखो हर एक लम्हे से तुम मिलो खोले अपनी बाहें हर एक पल इक नया समां देखें येह निगाहें जो अपनी आँखों में हैरानियाँ लेके चल रहे हो तोह जिंदा हो तुम दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो तोह जिंदा हो तुम
आपका शुक्रिया किस तरह अदा करू . . बहुत अनमोल पोस्ट है ये
शायद रास न आया हो हमारा पथ अब एकबार आ जाना मेरी मजार में
छोटे राज्य भला किसे पसंद नहीं आएंगे ? पर आज वे जिस बड़े ढांचे में से तोड़कर बनाए जा रहे हैं , उसके सारे दोष वे अपनी कुंडली में लेकर ही जन्म लेते हैं . केंद्रीयकरण उस सरकारीकरण का ऐसा कुंभकरण है जिसकी नींद विकेंद्रीयकरण की मांग के बड़े से बड़े आंदोलनों के ढोल - नगाड़ों से भी नहीं खुलती . इसलिए होता तो यही है कि विकेंद्रीयकरण के नाम पर केंद्रीयकरण के टुकड़े होते जाते हैं . विनोबा ने कई बरस पहले पंचायती राज के संदर्भ में उस एक बड़े पत्थर की याद दिलाई थी जिसके यदि आप सौ छोटे - छोटे टुकड़े भी कर दें तो उन छोटे पत्थरों का स्वभाव भी बड़े पत्थर की तरह ही कठोर रहेगा . वह मृदु , नरम या मक्खन तो होने से रहा .
हम भी यही समझे थे कि स्वामीजी के दर्शन हुये । लेकिन लगता है अभी साधना में कमी है ।
भारत को जो देना था मनमोहन सिंह को बुलाकर वहीं दे देते या जो लेना था हुक्म कर देते !
पिछले अंक : 1 . खोया पानी - 1 : क़िबला का परिचय 2 . ख़ोया पानी 2 : चारपाई का चकल्लस 3 . खोया पानी - 3 : कनमैलिये की पिटाई 4 . कांसे की लुटिया , बाली उमरिया और चुग्गी दाढ़ी़ 5 . हवेली की पीड़ा कराची में 6 . हवेली की हवाबाजी 7 . वो तिरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है 8 . इम्पोर्टेड बुज़ुर्ग और यूनानी नाक 9 . कटखने बिलाव के गले में घंटी 10 . हूँ तो सज़ा का पात्र , पर इल्ज़ाम ग़लत है 11 . अंतिम समय और जूं का ब्लड टैस्ट 12 . टार्जन की वापसी 13 . माशूक के होंठ 14 . मीर तकी मीर कराची में 15 . दौड़ता हुआ पेड़ 16 . क़िबला का रेडियो ऊंचा सुनता था 17 . बीबी ! मिट्टी सदा सुहागन है . 18 . खरबूजा खुद को गोल कर ले तब भी तरबूज नहीं बन सकता
' वेरी वेल सर ! ' बड़े बाबू ने मुस्करा कर कहा । तो अफसरों की टीम आनन - फानन सिर पर पांव रख कर भाग गई । ' ' अच्छा ! ' राम सिंगार भाई ने मुसकुरा कर पूछा । ' इतना ही नहीं चाचा जी ! ' वह नौजवान बोला , ' बड़े बाबू ने फिर जन सूचना अधिकार के तहत गांव के विकास के बारे में पूरी सूचना मांगी । योजना , बजट , समय सीमा वग़ैरह । फिर तो वही अफसर बड़े बाबू बाबा के आगे पीछे घूम कर सारे काम करवाने लगे और देखिए न ! बड़े बाबू के एक इंगलिश जानने भर से समूचा गांव विकास में नहा गया । कहीं कोई घपला नहीं हो पाया ! ' नौजवान बोला , ' आज भले देश अन्ना हजारे को जानता हो पर हमारे गांव में तो बड़े बाबू पहले ही उन का काम अपने गांव में कर बैठे हैं । ' ' अरे तो वइसे ही थोड़े न ! ' कंपाउंडर बोला , ' बड़े बाबू अंगरेजों के जमाने के मैट्रिक पास हैं । फुल इंगलिश जानते हैं । इन के इंगलिश के आगे बड़े - बड़े हाकिम - अफसर पानी भरें ! '
आप लोग ऐसा कीजीये इस वक्त हमे आपकी और आपके अखबार या चैनल को सरकारी सहायता की जरूरत है . हर दस मिनिट बाद ये एड हर दस मिनिट मे आपके चैनल पर दिखाई देगे , लेकिन अगर अभी भी आप महंगाई का रोना जारी रखते है तो विज्ञापन को भूल ही जाईये ,
तू अपने दिल की जवान धडकनों को गिन के बता मेरी तरह तेरा दिल बेक़रार है की नहीं
बहुत उम्दा ! बीबीजी अपने दुश्मन से भी इतने अदब से बात करती हैं कि बेचारा अदब की मौत मर जाये - - पर्चे हल कर के प्यारी का मापन सही मज़ेदार किस्सा है । आप्के विनोदी स्वभावऔर लेखनी का चुटीलापन भा गया । जब लिखते है तभी सिक्सर लगाते है । धन्य है ं : )
किसी भी जालस्थल की आर . एस . एस फीड होने का मतलब है कि लोग आपकी साईट बिना वहाँ आये पढ़ सकते हैं , भला कौन जालस्थल संचालक ये चाहेगा । इसे रोकने का एक तरीका तो यह हो सकता है कि आप संपूर्ण सामग्री न देकर फीड में कड़ी के साथ केवल सामग्री का सारांश प्रकाशित करें । इससे पाठक को पूरी सामग्री पढ़ने के लिये आपकी साईट पर आना ही पढ़ेगा । समाचार साईटों के लिये ये आला उपाय है जो सिर्फ समाचार शीर्षक ही प्रकाशित करें । हालांकि कालक्रम में यह पाठकों को उबा भी सकता है । दूसरा तरीका यह कि फीड में सामग्री थोड़ी ज्यादा या पूर्णतः रखी जाये पर हर प्रविष्टि के साथ विज्ञापन हों । यह तकनीक अभी इतनी परिष्कृत नहीं हुई है हालांकि गूगल एडसेंस के फीड के मैदान में उतरने के बाद माज़रा ज़रूर बदलेगा ( इसी अंक के हलचल में संबंधित समाचार " फीड के लिये गूगल एडसेन्स बनी हकीकत " पढ़ें ) । एडसेंस की मूल भावना की तर्ज़ पर ही विज्ञापनों को टेक्स्ट या चित्र के रूप में फीड में प्रकाशित कर दिया जायेगा । तकनीक ये सुनिश्चित करेगी कि विज्ञापन का मसौदा जब पाठक फ़ीड पढ़ रहे हों तभी आनन फानन तैयार हो , बजाय इसके कि जब इसका अभिधारण हो रहा हो । सब्सक्रिप्शन आधारित सामग्री के प्रकाशन के लिये ये नये युग का सूत्रपात करेगा । इसके अलावा भी लोग दिमाग पर ज़ोर लगा रहे हैं । आर . एस . एस फीड किसी भी साइट को बिना वहाँ जाये पढ़ना तो बायें हाथ का खेल बना देता है पर पारस्परिक व्यवहार या बातचीत का तत्व हटा देता है , संवाद दो तरफा नहीं रहता । अक्सर प्रविष्टि के साथ टिप्पणी की कड़ी तो रहती है पर टिप्पणी करनी हो तो अंततः जाना आपको साईट पर पड़ेगा ही । अब लोगों ने फीड में HTML फार्म का समावेश कर संवाद का पुट जोड़ने की कोशिश की है । स्कॉट ने अपनी फीड में यह प्रयोग किया ताकि लोग गुमनाम रहकर भी उनकी किसी भी प्रविष्टि को " टैग " कर सकें । याहू में कार्यरत रस्सेल एक कदम और आगे निकले , हाल ही में अपनी फीड में उन्होंने टिप्पणी करने का नन्हा सा HTML फार्म ही जोड़ दिया ।
आपदा से बेघर सैकड़ों परिवार खानाबदोश की जिंदगी जीने को विवश हैं विवश हैं
आनंदम ही आनंदम . . . सभी रचनाएँ अच्छी लगीं . . . जब भी दिल्ली आऊंगा आनंदम से मिलने की कोशिश होगी .
यह सब कैसे होता है इसे समझने के लिये आईये देसी तथा विदेशी निवेश ( Investment ) , मुद्रा के विस्तार ( Inflation ) , ब्याज की दर ( Rate of Interest ) और मंहगाई के आपस में रिश्ते को जरा आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं । जब अर्थव्यवस्था ( Economy ) का विकास ( Growth ) तेजी से होता है तो अर्थव्यवस्था में मुद्रा का विस्तार भी होने लगता है क्योंकि अर्थव्यवस्था का विस्तार होता है उद्योगों ( Industry ) , सेवाओं ( Services ) , नौकरियों ( Jobs ) और उत्पादों ( Products ) में विस्तार से । इस विस्तार से लोगों को अधिक धन मिलता है जो कि मांग ( Demand ) को बढ़ाता है और फिर पूर्ती ( Supply ) बढ़ाने के लिये और विस्तार होता है । इस विस्तार में सहयोगी होते है निवेश ( Investments ) और ऋण ( Loans ) । यहां ध्यान दें कि यह निवेश और ऋण देसी और विदेशी दोनो तरह के हो सकते हैं । इस सब के कारण अर्थव्यवस्था में जयादा लिक्विडिटी ( Liquidity तरलता ) आ जाती है यानी मुद्रा का विस्तार अर्थात मुद्रास्फीति ।
3 . कमिटमेन्ट टू दी सोसायटी ( समाज के प्रतिबध्दता ) - भारत का एक प्रतिनिधि मण्डल अमेरिका के प्रवास में गया था । प्रवास की पूर्णता के समय तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति केनेडी से भेंट करते हुए प्रश्न पूछा कि अमेरिका इतना आगे कैसे बढ़ा । केनेडी का उत्तार था , हमारा हर शिक्षक पढ़ाते समय सोचता है कि मेरे सामने बैठ हुए छात्र भविष्य में अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले हैं । कोठारी आयोग के रिपोर्ट में भी कहा है कि हमारा विश्वविद्यालय समाज का एक टापू नहीं होना चाहिए बल्कि सामाजिक चेतना का केन्द्र होना चाहिए । हमारे विद्यालय , महाविद्यालय , विश्वविद्यालय छात्रों में सामाजिक जागरूकता - चेतना - संवेदना जगाने एवं उसमें राष्ट्रभक्ति के संस्कार देने के केन्द्र होने चाहिए ।
बहुत ही सुंदर पोस्ट , लेकिन असल जिन्दगी मै तो ऎसा नही होता होगा , मुझे लगता है यह सिर्फ़ मजाक के लिये गीतो मै ही होगा , धन्यवाद
तदन्तर वे सब लोग वालि की राजधानी किष्किन्धापुरी में गये । वहाँ पहुँच कर राम एक गहन वन में ठहर गये और सुग्रीव से कहा , " तुम वालि को युद्ध के लिये ललकारो और निर्भय हो कर युद्ध करो । " राम के वचनों से उत्साहित हो कर सुग्रीव ने वालि को युद्ध करने के लिये ललकारा । सुग्रीव के इस सिंहनाद को सुन कर वालि को अत्यन्त क्रोध आया । क्रोधित वालि आँधी के वेग से बाहर आया और सुग्रीव पर टूट पड़ा । वालि और सुग्रीव में भयंकर युद्ध छिड़ गया । उन्मत्त हुये दोनों भाई एक दूसरे पर घूंसों और लातों से प्रहार करने लगे । श्री रामचन्द्र जी ने वालि को मारने कि लिये अपना धनुष सँभाला परन्तु दोनों का आकार एवं आकृति एक समान होने के कारण वे सुग्रीव और वालि में भेद न कर सके । इसलिये उन्होंने बाण छोड़ना स्थगित कर दिया । वालि की मार न सह सकने के कारण सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत की ओर भागा । राम लक्ष्मण तथा अन्य वानरों के साथ सुग्रीव के पास पहुँचे । राम को सम्मुख पा कर उसने उलाहना देते हुये कहा , " मुझे युद्ध के लिये भेज कर आप पिटने का तमाशा देखते रहे । बताइये आपने ऐसा क्यों किया ? यदि आपको मेरी सहायता नहीं करनी थी तो मुझसे पहले ही स्पष्ट कह देना चाहिये था कि मैं वालि को नहीं मारूँगा , मैं उसके पास जाता ही नहीं । " सुग्रीव के क्रुद्ध शब्द सुन कर रामचन्द्र ने बड़ी नम्रता से कहा , " सुग्रीव ! क्रोध त्यागो और मेरी बात सुनो । तुम दोनों भाई रंग - रूप , आकार , गति और आकृतियों में एक समान हो अतः मैं तुम दोनों में अन्तर नहीं कर सका और मैंने बाण नहीं छोड़ा । यदि मेरा बाण वालि को लगने के स्थान पर तुम्हें लग जाता तो मैं जीवन भर किसी को मुख दिखाने लायक नहीं रहता । वानरेश्वर ! अपनी पहचान के लिये तुम कोई चिह्न धारण कर लो जिससे मैं तुम्हें पहचान लूँ और फिर से युद्ध के लिये जाओ । " इतना कहकर वे लक्ष्मण से बोले , " हे लक्ष्मण ! यह उत्तम लक्षणों से युक्त गजपुष्पी लता फूल रहे है । इसे उखाड़ कर महामना सुग्रीव के गले में पहना दो । " लक्ष्मण ने वैसा ही किया और सुग्रीव फिर से युद्ध करने चला । इस बार सुग्रीव ने दूने उत्साह से सिंहनाद करते हुये घोर गर्जना की जिसे सुन कर वालि आँधी के वेग से बाहर की ओर दौड़ने को उद्यत हुआ । किन्तु उसकी पत्नी तारा ने भयभीत होकर वालि को रोकते हुये कहा , " हे वीरश्रेष्ठ ! अभी आप का युद्ध के लिये जाना श्रेयस्कर नहीं है । सुग्रीव एक बार मार खा कर भाग जाने के पश्चात् फिर युद्ध करने के लिये लौटा है । इससे मेरे मन में शंका उत्पन्न हो रही है । ऐसा प्रतीत होता है कि उसे कोई प्रबल सहायक मिल गया है और वह ऊसीके बल पर आपको ललकार रहा है । मुझे कुमार अंगद से सूचना मिल चुकी है कि अयोध्या के अजेय राजकुमारों राम और लक्ष्मण के साथ उसकी मैत्री हो गई है । सम्भव है वे ही उसकी सहायता कर रहे हों । राम के पराक्रम के विषय में तो मैंने भी सुना है । वे शत्रुओं को देखते - देखते धराशायी कर देते हैं । यदि वे स्वयं सुग्रीव की सहायता कर रहे हैं तो उनसे लड़ कर आपका जीवित रहना कठिन है । इसलिये उचित यही है कि इस अवसर पर आप बैर छोड़ कर सुग्रीव से मित्रता कर लीजिये । उसे युवराज पद दे दीजिये । वह आपका छोटा भाई है और इस संसार में भाई के समान हितू कोई दूसरा नहीं होता । उससे इस समय मैत्री करने में ही आपका कल्याण है । " तारा के इस प्रकार समझाने वालि ने कहा , " वरानने ! मैं सुग्रीव की ललकार को सुन कर कायरों की भाँति घर में छिप कर नहीं बैठ सकता और न ललकारने वाले से भयभीत हो कर उसके सम्मुख मैत्री का हाथ ही बढ़ा सकता हूँ । श्री रामचन्द्र जी के विषय में मैं भी जानता हूँ । वे धर्मात्मा हैं और कर्तव्याकर्तव्य को समझने वाले हैं । वे पापकर्म नहीं कर सकते । तुमने मेरे प्रति अपने स्नेह एवं भक्ति का प्रदर्शन कर दिया । अब मुझे मत रोको । मैं सुग्रीव का सामना अवश्य करूँगा और उसके घमण्ड को चूर चूर कर डालूँगा । युद्ध में मैं उससे विजय प्राप्त करूँगा मगर उसके प्राण नहीं लूँगा । " यह कह कर वालि सुग्रीव के पास पहुँच कर उससे युद्ध करने लगा । दोनों एक दूसरे पर घूंसों और लातों से प्रहार करने लगे । जब राम ने देखा कि सुग्रीव की शक्ति क्षीण होते जा रही है तो उन्होंने एक विषधर सर्प की भाँति बाण को धनुष पर चढ़ा कर वालि को लक्ष्य करके छोड़ दिया । टंकारध्वनि के साथ वह बाण वालि के वक्ष में जाकर लगा जिससे वह बेसुध हो कर पृथ्वी पर गिर पड़ा ।
24 जून 2011 . टाटा और रिलायंस सहित निजी क्षेत्र के बिजली उत्पादकों ने आयातित कोयले के मूल्य में संभावित वृद्धि के मामले में सरकार से मदद की अपील की है । कंपनियों का कहना है कि आयातित कोयले के दाम बढ़ने की सूरत में बिजली भी महंगी होगी । निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों ने सरकार से यह अपील ऐसे समय की है जब भारत को कोयले के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता इंडोनेशिया ने कानून यह व्यवस्था की है कि कोयले के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार की दरों के अनुरुप होंगे ।
कैसा लगेगा अगर AM PM के साथ साथ आपका नाम भी System Clock में दिखने लगे , कैसे करेंगे वो हम बता देते हैं । वैसे अगर देखा जाये तो इस ट्रिक का कोई और यूज नही है सिवाय दूसरों को इंप्रेस … Continue reading →
बड़ा होनहार बच्चा है ! जन्मदिन की बधाई और उज्जवल भविष्य की ढेर सारी शुभकामनायें .
एक महीने बाद 29 जून को हलीम ने गुजरात के पुलिस महानिदेशक और अहमदाबाद के पुलिस आयुक्त को एक टेलीग्राम भेजा . उनका कहना था कि उसी दिन पुलिस जबर्दस्ती उनके घर में घुस गई थी और उनकी गैरमौजूदगी में उनकी पत्नी और बच्चों को तंग किया गया . हिंदी में लिखे गए इस टेलीग्राम के शब्द थे , " हम शांतिप्रिय और कानून का पालन करने वाले नागरिक हैं और किसी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं रहे हैं . पुलिस गैरकानूनी तरीके से बेवजह मुझे और मेरे बीवी - बच्चों को तंग कर रही है . ये हमारे नागरिक अधिकारों का उल्लंघन है . "
16 जनवरी 2011 , सवेरे अचानक फिर शरद श्रीवास्तव का फोन आया . . बगैर भूमिका के बोले - अभी दिल्ली चलना है , जल्दी से कपडे़ अटैची में डालो . शरीर में एकदम बिजली सी कौंध गयी . रात को ही बात हुई थी और तय हुआ था 21 को चलेंगे . . अचानक क्या हुआ ? एकदम मुंह से निकला - क्या भाई साहब की तबीयत बिगड़ गयी है . . . जबाब हाँ में था . . . मात्र एक घंटे में हम लोग दिल्ली रवाना हो गए .
डिजाइन के अंत परिणाम सभी वर्णित तत्व भी शामिल है इस प्रकार है ( हम इंटरैक्टिव मोड में निष्पादन देखें ) .
आधुनिक युग में जनमत निर्माण में जनसंचार माध्यमों की सर्वाधिक प्रभावशाली भूमिका है । मीडिया जनता की मानसिकता को प्रभावित करने का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है । ऐसे में जनसंचार माध्यमों की महत्ता अत्यधिक प्रभावशाली हो जाती है । मीडिया समाज को नई दिशा दे सकता है । उनमें रचनात्मकता की वृद्धि कर सकता है । उनकी समस्याओं को सरकार तक पहुंचा सकता है । लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में जनसंचार माध्यमों की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है । इसलिए उन्हें अपनी महत्ता को ध्यान में रखकर ही काम करना चाहिए । लेकिन पिछले दिनों दो बार ऐसे मौके आए जब इलेक्ट्रानिक मीडिया की भूमिका पर अंगुली उठी । पहली बार तब जब महाप्रयोग की घटना हुई । तब कुछ चैनलों ने महाप्रयोग को इस तरह प्रस्तुत किया मानो इसके बाद अब दुनिया का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा । कुछ चैनलों ने घोषणा कर दी कि अब दुनिया मिट जाएगी । इससे कुछ बच्चों के मस्तिष्क पर इतना विपरीत प्रभाव पड़ा कि उन्हें मनोचिकित्सक के पास ले जाना पड़ा । महज लोकप्रियता हासिल करने के लिए ऐसी सनसनीखेज खबरों का प्रसारण किया गया । हकीकत में सभी लोगों ने देखा वह एक प्रयोग से ज्यादा कुछ नहीं था । इसी तरह मुंबई हमले की घटना का जिस तरह लाइव प्रसारण इलेक्ट्रानिक मीडिया ने किया वह भी ठीक नहीं था । इस प्रसारण ने लोगों में दहशत भी पैदा कर दी । मुंबई की घटना से भी आतंकवादी दहशत फैलाना ही चाहते थे । मुंबई हमले के लगातार प्रसारण ने लोगों में दहशत पैदा करके उनकी रातों की नींद उडा दी । केंद्र सरकार ने भी इस लाइव रिपोर्टिंग पर नाराजगी जताई है । कई चैनलों को नोटिस भी जारी किए है ं । सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने यह भी कहा है कि संवेदनशील स्थिति में चैनलों को टीआरपी के दायरे से बाहर निकलकर जिम्मेदारी निभानी चाहिए । ऐसी स्थिति में जरूरी है कि जनसंचार माध्यमों को अपनी जिम्मेदारी और महत्ता को समझते हुए इस तरह काम करना चाहिए कि कोई अंगुली न उठाने पाए । यह एक पवित्र और जिम्मेदारी का व्यवसाय है और इसकी पवित्रता बनाए रखने की जिम्मेदारी समस्त जनसंचार माध्यमों की है ।
10 लाख रूपये लेकर स्वैच्छिक रूप से रियलिटी शो बिग बॉस का घर छोडकर बाहर आए बख्तियार ईरानी ने कहा , मुझे लगता है कि विंदु यह शो जीतेगा । वह घर में एक खानाबदोश की तरह है । वह अपने आप में एक किरदार है । आप उनसे प्रेम कर सकते हैं , उनसे घृणा कर सकते हैं , लेकिन आप उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते है । बिग बॉस के विजेता की घोषणा 26 दिसंबर को होगी । विजेता को एक करोड रूपये का पुरस्कार दिया जाएगा । बख्तियार नच बलिए और हंस बलिए रियलिटी कार्यक्रमों में भी हिस्सा ले चुके हैं । वह कहते है कि उन्हें बिग बॉस के घर में रहने वाली अदिति गोवित्रीकर का व्यवहार पसंद आया था । अदिति बिग बॉस के घर में जिस तरह से रहती थीं और वह जिस तरह से खुद को प्रस्तुत करती थीं वह तरीका मुझे बहुत अच्छा लगता था । वह सभी का सम्मान करती थीं । उन्होंने कहा , वह मुश्किल से ही कभी रोई होगी । उन्होंने एक सच्चाी मित्र की तरह व्यवहार किया । जब तनाज बाहर हुई , तो मैंने देखा था कि वह कितनी परेशान थीं । मुझे उनके साथ अधिक समय बिताने का अवसर मिला और मैंने जाना कि वह एक बहुत अच्छी दोस्त हो सकती हैं ।
ब्रिटेन में प्रेस , पॉलिटिक्स और पुलिस के संबंधों पर चर्चा में ये तय हो गया कि हम्माम में सब नंगे हैं लेकिन नंगों के लिए नियम होने चाहिए .
राहुल को अपने मादक स्वप्न में गाँधी का इस तरह से प्रवेश पसंद नहीं आ रहा था , लिहाज़ा उन्होंने उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहा - ये बताइए कि स्वर्ग की गलियाँ छोड़कर इधर कैसे चले आए . . . . . . गाँधीजी के माथे पर सलवटें उभर आईं . . . . उन्होंने कहा - ये ठीक है कि मैं स्वर्ग में रहकर थोड़ा सुविधाभोगी हो गया हूँ मगर देश की चिंता मुझे सताती रहती है और आज भी मैं उसी चिंता से परेशान होकर तुम्हारे पास चला आया हूँ ।
रही बात योग्यता की तो मसिजीवी की तमाम भाषाई चौंचलेबाज़ी और अजीबोगरीब शीर्षकों के चटखपन के बावजूद भाषा उनसे सधती नहीं है . बड़े वाक्य उनसे संभलते नहीं हैं . खेत से चलते हैं और खलिहान में पहुंच जाते हैं . जेंडर से उनके संबंध वैसे ही कुछ ठीक नहीं हैं . सीखना वे चाहते नहीं .
निशंक : जितना परेशान करना हो कर लो , पर एक आंधी आएगी और तेरा सब कुछ उड़ा ले जाएगी : उत्तराखंड की भ्रष्ट सरकार जवाब दे कि . . .
सबद पर प्रकाशित रचनाओं के इस्तेमाल से पहले लेखक और संपादक को विश्वास में लेने की अपेक्षा की जाती है .
आशीष भाई बहुत धन्यवाद . कामना में अर्तनिहित आदेश का पालन होगा . रचना जी धन्यवाद , घोर इंतजार और शुभकामनाओं के लिये भी आभार . पंकज जगदीश भाई की सुनना मत , ब्लाग लिखना मत , कविता कह कर सुनाना मत , तो करुँ क्या . हरिद्वार चले जाऊँ , सन्यास ले लूँ , क्यूँ ? अरे भईये , रिटायरमेन्ट की उम्र आने में अभी समय है , तब तो और खुल कर दिन भर लिखेंगे . अभी तो ऑफिस का भी टंटा रहता है . स्माईली आपके लिये . अनूप भाई आपकी शुभकामनाओं के लिये बहुत धन्यवाद . आदेशानुसार हर शतक पर बल्ला लहरा जायेगा . विचार में लगा हूँ सागर जी की बात पर मगर साथ ही उनसे रहम की गुहार भी की गई है . आप भी थोड़ा अपने जुगाड़ का इस्तेमाल कर कुछ तो रहम करवायें .
- आजकल एनजीओ के लोग गरीबी - अशिक्षा दूर करने में लगे हैं . क्या इससे कोई सफलता मिलेगी ?
5 . बहुत लिख लिया भैया , भुख भी लगी है । अपने को तो सैंडबीच के ममेरे भाई ' पावबीच ' से काम तो चलता नहीं सो कुछ पराठे के लिए एस एम एस बगल के होटल वाले को करता हूँ । वैसे ' पावबीच ' के बारे में क्या बोलुँ मैं - दरअसल आजकल सुबह में मेरी मिनी दो पाँवरोटी - उफ्फ् , दो पावरोटी के बीच में टमाटर - हरा धनिया डालकर खाती है । कहती है कैलोरी कम होता है उसमें । अपने को तो सत्तु घोलकर मिलता नहीं सो हम भी हेल्थ ड्रिंक में सत्तु फ्लेवर डालकर पीते हैं । जब मुझे मन होता है खीर खाने का तो उसे सुपर मार्केट से खरीद लाता हूँ - नानीजी का , पैकेट में बिकता है । आई मिन नानीजी खीर बेचती नहीं । डब्बे पर कंपनी का नाम लिखा रहता है - नानीजी ।
धर्मराज ने उस व्यक्ति से पूछा , कृपया मुझे बताएँ कि आप कौन हैं ताकि मैं जान सकूँ कि आपको स्वर्ग के द्वार से अंदर जाने दूँ या नहीं .
ऐसे भयाक्रांत हो जीने से तो बेहतर है कि मूल खेमे में ही रहते हुए जीवन गुजारे भले ही कुछ कम सक्रियता रहे . सक्रियता तो यूँ भी एलीट दिखने के चक्कर में खत्म सी हो ही चुकी है .
पुलिस ने बाद में डाक्टर सचान को परिवार कल्याण विभाग के सीएमओ डाक्टर बीपी सिंह और डाक्टर विनोद आर्य की हत्या के षड्यंत्र में भी अभियुक्त बना दिया गया था .
• प्लिनी एक प्रमुख रोमन भूगोलवेत्ता था । • प्रथम शताब्दी के रोमन विद्वान , वैज्ञानिक , दार्शनिक व इतिहासकार गुइस प्लिनस जो कि ' प्लिनी द एल्डर ' के रूप में अधिक विख्यात हैं , ने यमुना को जोमेनस कहा है जो मेथोरा और क्लीसोबोरा के मध्य बहती थी । • विश्वकोशीय ग्रंथों में प्राचीन रोमवासी प्लिनी की कृति " नैचुरल हिस्ट्री " हमारी विश्वकोश की आधुनिक अवधारणा के अधिक निकट है । यह मध्य युग का उच्च आधिकाधिक ग्रंथ है । • यह 37 खंडों एवं 2493 अध्यायों में विभक्त है जिसमें ग्रीकों के विश्वकोश के सभी विषयों का सन्निवेश है । प्लिनी के अनुसार इसमें 100 लेखकों के 2000 ग्रंथों से संगृहीत 20 , 000 तथ्यों का समावेश है । • सन् 1536 से पूर्व इसके 43 संस्करण प्रकाशित हो चुके थे । इस युग की एक प्रसिद्ध कृति फ्रांसीसी भाषा में 19 खंडों में प्रणीत ( सन् 1360 ) बार्थोलोमिव द ग्लैंविल का ग्रंथ " डी प्रॉप्रिएटैटिबस रेरम " था । • सन् 1495 में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित हुआ तथा सन् 1500 तक इसके 15 संस्करण निकल चुके थे । • प्लिनी के ' नेचुरल हिस्ट्री ' ( प्राकृतिक इतिहास ) नामक ग्रन्थ में प्रथम शताब्दी ईस्वी सन के भारत के बारे में काफ़ी सूचनाएँ प्राप्त होती हैं । • विश्वास किया जाता है कि उसका यह ग्रन्थ 77 ई . में प्रकाशित हुआ था ।
मुझे माफ़ करने की कोशिश करना मेरे भगवान अगर तुम्हारा मन करे तो ना मन करे तो नहीं भी करने की ख़्वाहिश तुम ज़ाहिर कर सकते हो मैंने जो भी लिखा तुम्हारे ख़िलाफ़
चित्र के लिये धन्यवाद लेकिन इसे ऐसे पोस्ट में ना लगा कर वैसे लगाओ जैसे हमने लगाया है ,
रैली में केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री सलमान खुर्शीद के व्याख्यान सुनने के लिए कृपया क्लिक करें
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र तिवारी ने उ0प्र0 की बसपा सरकार की नीति नियत पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि इस सरकार को लोकतंत्र विरोधी तथा आम आदमी के हितों की अनदेखी करने वाली बताया । श्री राजेन्द्र तिवारी ने कहा कि बसपा सरकार की कार्यशैली ने एक तरफ आम आदमी का जीना दुश्वार कर दिया है । चैतरफ अपनी ही हठधर्मिता पूर्ण कार्यशैली से शर्मशार होती उ0प्र0 की सरकार लोकतांत्रिक शासन पद्धति के सामने भी एक बड़ी चुनौती खड़ी कर रही है ।
' होटेल में , इस समय हो अच्छे कमरे खाली हैं । आप जब वापस जाएं तो अपने मित्रों को इस होटल के बारे में बताये और उन्हें यह ठहरने के लिये कहें । '
प्रतापगढ़ : स्थानीय थाना क्षेत्र के दिलीप नगर में चोरों ने दीवार फांदकर तिजोरी का ताला तोड़कर अंदर रखा लाखों रुपये के आभूषण पर हाथ साफ कर दिया । सूचना पर पहुंची पुलिस ने मामले की छानबीन की । पीडि़त ने अज्ञात चोरों के खिलाफ तहरीर दी है ।
मरते हैं बिस्मिल , रोशन , लाहिड़ी , अशफाक अत्याचार से । होंगे पैदा सैंकड़ों , उनके रूधिर की धार से । । उनके प्रबल उद्योग से , उद्धार होगा देश का । तब नाश होगा सर्वदा , दुख शोक के लव लेश का । ।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ । - - - पुरूषों के श्रेष्ठता के जींस - शंकाएं और जवाब । साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित ।
बहुत बढ़िया तरकीब है , वाह ! जानकारी देने का बहुत - बहुत धन्यबाद . ऐसे ही सुन्दर ऑडियो / विडियो के ट्यूटोरियल अपलोड करते रहे है . . जय हिंद
मुंबई से पांचवीं बार सांसद बने 57 वर्षीय कामत ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा है कि वह मंत्रीपद के दायित्व से मुक्त होना चाहते हैं । उन्हें आज ही राज्यमंत्री से प्रोन्नत कर स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया था ।
बहुत अच्छा लिखतीं हैं , आनंद आ रहा है । चुटीली रचनाओं के लिए धन्यवाद । आगे पढ़ने को आतुर हैं ।
आज भी स्कूलों व कॉलेजों में सेक्स शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है । किसी - किसी स्कूल में सेक्स शिक्षा को लागू किया गया है । किंतु उसको अमलीजामा अभी तक कागजों पर पहनाया जा रहा है । आमतौर पर सेक्स को घर में गुनाह के तौर पर देखा जाता है । माता - पिता अपने बच्चों को यौन संबंधित जानकारी देने से परहेज करते हैं । हालांकि इंसान की फितरत वर्जित माने जाने वाले विषयों के बारे में जानकारी हासिल करने की जिज्ञासा सबसे उत्कट होती है । मानसिक स्तर पर वैचारिक मतांतर की वजह से बच्चा अश्लील साहित्य पढ़ने का या साइबर सेक्स का आदी हो जाता है । इस क्रम में कुछ बच्चे मनोविकृति के शिकार हो जाते हैं । मनोविकार से ग्रसित बच्चे बाद में जाकर बलात्कार जैसे क्रूर व घिनौने जुर्म को अंजाम देते हैं । दरअसल सामाजिक सोच में टकराव के कारण युवक व युवतियों के बीच सेक्स के लिए आपसी सहमति बन ही नहीं पाती है । वैसे अब दूसरी वजहों से सहमति के इक्का - दुक्का मामले हमारे सामने आ रहे हैं । गाँवों में हालत और भी खराब हैं । वहाँ गाली या अपशब्द के आदान - प्रदान के दरम्यान पूरे कामसूत्र की झांकी आपको मिल सकती है । परन्तु उस कामसूत्र में मनोविकृति ज्यादा होती है । इसका दूसरा पहलू यह है कि गाँवों में नारी को महज वस्तु माना जाता है । आपसी दुश्मनी निकालने के लिए भी औरत को निशाना बनाया जाता है ।
बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी की आलीशान शादी के बाद मंगलवार रात हुई रिसेप्शन पार्टी में उन्हें आर्शीवाद देने के लिए सितारों का जमावडा देखा गया । इसमें सदी के महानायक अमिताभ बच्चन , शाहरूख खान और ऋतिक रोशन आदि प्रमुख रूप से मौजूद रहे । रविवार को चुनिंदा लोगों की उपस्थिति में हुए शादी समारोह के बाद मंगलवार [ . . . ]
अपने अपनी अन्य कहानियों के लिंक देकर अच्छा किया है और हम लित्तू भाई की रहस्यमयी मुस्कराहट पे अटके हैं : ) रोचक . . . . आगे क्या हुआ ? - लावण्या
23 : 45 बजे आलोक द्वारा । 1 छींटाकसी इस लेख के हवाले
फिल्म " ट्रांस्फॉर्मर " में अपने अभिनय से प्रसिद्ध हुई हॉलीवुड अभिनेत्री मेगन फॉक्स को लगता है कि उसके पास सुपरनैचुरल सेक्स पॉवर है जो उसे दुनिया में सबसे सेक्सी वुमैन बनाता है ।
सबसे पहले तो आपको टिपणीयो का रिकार्ड ध्वस्त करने के लिए हार्दिक बधाई और अभिनन्दन ! बचपन से से अभी तक थारे जी का जंजाल हो रया सै यो बालक तो ! भाई घणा खोटा माणस दिखै सै यो ! इब थारे भायेला ( दोस्त ) का छोरा सै तो झेलो उमर भर ! मुन्नू बेटा अंकल का पीछा मत छोड़ना !
बाल सुलभ नही जी खाल सुलभ कमेंट्स करते है नेता अब इत्ती मोटी खाल के लिये कमेंट्स भि तो मोटा ही चाहिये ना आप तो तुरंत इन्हे शर्ड्ढांजली दे डालिये अगर कुछ टुच्चे घटिया सेकुलर संप्रदाय के लोगो का दिल जले तो जले
उस दिन अचानक धर्म पर कुण्डली मारकर बैठे पण्डित सियाराम मिसिर की गर्दन न जाने कैसे ऐंठ गयी और उन्हें महसूस हुआ कि उनकी गर्दन में ' हूल ' पैदा हो गया है । पार साल लखमी ठाकुर के भी ' हूल ' उठा था । अगर रमोली चमार उसके हूल पर जूता न छुआता तो … कैसा तड़पा था । यह सोचकर उन्हें झुरझुरी लगने लगी , तो क्या उन्हें भी रमोली चमार से अपनी गर्दन पर जूता छुवाना होगा । हुँ ! वह खुद से बोले , ' ' उस चमार की यह मजाल ! " तभी उनकी गर्दन में असहनीय झटका सा लगा और वे कराह उठे । " अरे क्या है - बस जरा जूता ही तो छुवाना है । उसके बाद तो गंगा जल से स्नान कर लेंगे । जब शरीर ही न रहेगा चंगा तो काहे का धर्म पुण्य ? " रमोली को देखते ही मिसिरजी ने उसे करीब बुलाकर कहा , " अरे रमोलिया , ले तू हमारा गरदनियाँ में तनिक जूता छुवा हूल भर गइलबा । " " ग्यारह रुपया लूँगा मिसिरजी । " " का कहले ? हरामखोर , तोरा बापो कमाइल रहलन ग्यारह रुपल्ली ? " " मिसिरजी , इस जूते को कोई खरीदेगा नहीं न ! और में झूठ बोल कर बेचूँगा नहीं ! " " खैर , चल लगा जूता , आज तोर दिन है । देख , धीरे छुआना तनिक , समझे ! " जब रमोली जूता लेकर टोटका दूर करने उठा तो उसकी आखों के आगे सृष्टि से लेकर इस पल तक निरन्तर सहे गये जुल्मोसितम और अपमान के दृश्य साकार हो उठे । उसने अपनी पूरी ताकत से मिसिरजी की गर्दन पर जूता जड़ दिया । मिसिरजी के मुख से एक प्रकार की डकराहट पैदा हुई , ठीक वैसी ही जब मिसिरजी ने उसके पिता पर झूठा चोरी का इल्जाम लगाया था और मिसिरजी के गुण्डे लाठी से उसे धुन रहे थे । तब बाप की दुहाई वाली डकराहट क्या वह भूल पायेगा ? " अरे मिसिर देख , तोरा हूल हमार जुतवा मा बैठ गैइल । " और मिसिर की गर्दन तथा चाँद पर लाठियों के समान जूते पड़ने लगे । गाँव वाले हैरान थे , किन्तु विचित्र उत्साह से इस दृश्य को देख रहे थे ।
[ . . . ] लो जी हम बेकार ही रश्क़ कर रहे थे कि क़ाश पीटर हमारी पाठशाला में होता । अभी मालूम पड़ा पीटर जैसे कई ' मेधावी ' छात्र मेरे चेले हैं । आजकल हरियाणा के विद्यालयों में प्री - बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं । अब इस बार से हमारे शिक्षा बोर्ड ने सेमेस्टर प्रणाली लागू की है । प्रथम सेमेस्टर की परीक्षाएं अभी सितम्बर में हुई थीं जिस कारण द्वितीय सेमेस्टर का सिलेबस अभी पूरा नहीं हो पाया । लेकिन इन प्री - बोर्ड परीक्षाओं में पूरा ही सिलेबस आना था तो जो सिलेबस अभी नहीं हुआ था उसके प्रश्न बच्चों ने अपनी बुद्धि से दिए । उनकी ' इनोवेटिव थिंकिंग ' देखकर एक ही बात समझ आती है - ' यथा गुरु तथा चेला ' । लीजिए आप भी कुछ नमूने देखिए । मेरे पास स्कैनर नहीं है इसलिए टाइप कर के पोस्ट कर रहा हूँ वरना ज्यादा अच्छा रहता । [ . . . ]
माइक्रोसॉफ्ट ले कर आया है भारतीय भाषाओं के लिये ऑफलाईन टाईपिंग टूल । इसमें हिंदी के अलावा बंगाली , मलयालम , कन्नड़ , तमिल और तेलुगु में टाईपिंग की सुविधा होगी । इसे जल्द ही डाउनलोड के लिये फ्री में उपलब्ध कराया जायेगा ।
2 युद्ध की कला : स्टेलिनग्राद सर्दियों सर्दी में गिर गया है , लेकिन आप ठंडा और नाजियों को स्टेलिनग्राद के शानदार शहर को पुनः प्राप्त लड़ना चाहिए .
पूरे जीवन का सार ही समेट दिया इन पंक्तियों में . . . जारी रहे ये प्रयोग . . .
प्रिय देशवासियों ! इस जन जागरण अभियान की शुरूआत स्वतंत्र भारत के इतिहास के एक निर्णायक मोड़ पर हो रही है । कांग्रेस नेतृत्व वाले संप्रग सरकार के साम्यवादी समर्थन से मई 2004 में हुई संस्थापना से ही हमारे देश के आधारभूत राजनीतिक मूल्यों में क्षय होता दिखाई पड़ रहा है । सरकार ने एक ओर संजोए गए लोकतंत्रीय आदर्शों पर प्रहार प्रारंभ कर दिया है , लोकतांत्रिक संस्थाओं की पवित्रता को क्षयित किया है , केन्द्रीय सरकार में अपराधियों और घोटालेबाजों को शामिल कर लिया है तथा ' ' आम आदमी ' ' , गरीब और किसान की दशा को सुधारने के लिए किए गए वायदों के साथ छल किया है । वहीं दूसरी ओर , सरकार ने विघटनकारी राजनीति का खेल खेलना शुरू कर दिया है जिससे एक भारतवासी दूसरे भारतवासी के विरोध में खड़ा हो गया है । इससे राष्ट्र की अखण्डता तथा एकता कमजोर हुई है । मई 2004 में संप्रग गठबन्धन को सत्ता सौंपे जाने की भूल को जब तक सुधारा नहीं जाता है तब तक हमारे देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती ही रहेगी ।
क्या पाप , क्या पुण्य , कैसा मुक्ति मार्ग ? सब अब रात में सोचेंगे जब दिन भर की थकन के बाद भी मन कचोटेगा और नींद आने से मना करेगी . ऐसे विचार आना कह्तरनाक है इस उम्र में . " ताऊ अवसाद नाशक टेबलेट " का सेवन क्युं नही कार्ते आप ? चकाचक नींद आयेगी .
हमारी बताई हुई यह बातें इस सुसमाचार के विषेश सन्देश की गहराई तक पहुचने के लिए विधी और गवाही हैं . वह सन्देश यह है की यीशु ख्रिस्त परमेश्वर के बेटे हैं . आप के इस धर्ती पर के जीवन में आपका अनंत जीवन , आपकी मानवता में आपकी दिव्यता और आपकी कमजोरी मेंन आपका अधिकार दिखाई देता है . इस तरह यीशु में परमेश्वर लोगों के बीच में था ,
सरकार एक ऐसा ढाँचा स्थापित कर रही है जो मुक्त तथा उचित प्रतिस्पर्धा जगाता है , पर प्रतिस्पर्धा की प्रक्रिया को हानि पहुँचाने वालों के साथ सख्ती से पेश आता है ।
दिल के मेरे तुम पास हो कितनी फिर भी को कितनी दूर तुम मुझ से मैं दिल से परेशान दोनों हैं मजबूर ऐसे में किसको कौन मनाये
मैं भी उसे चाहता हूँ , वो भी मुझे चाहती है प्यार का सबूत है ये , और कैसा चाहिये शादी ब्याह बात कुछ , प्यार से अलग है जी बाबू जी की हाँ के लिए , थोड़ा पैसा चाहिये . शादी हुई बाद में ये , घर भी उसी का है जी मोटर जो दे दोगे तो उसमें ही घुमाऊँगा उसकी तो बात छोड़ो , वो तो मेरी बीबी होगी . मैं तो इतना सीधा हूँ , साली को भी चाहूँगा .
सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने लिखा है कि उन्हें आमिर खान के साथ काम करने में खुशी होगी , खासकर तब जब वह फिल्म का निर्देशन करें . उन्होनें लिखा कि उन्होनें आमिर खान को लंडन में डिनर के दौरान सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर से जुड़ने के लिए राजी किया . हालाँकि उन्होनें यह भी लिखा कि इस दौरान उन्होनें किसी प्रोजेक्ट के विषय में कोई बात नही की . उन्होने लिखा कि ऐसा क्यों लगता है कि जब दो अभिनेता मिलते हैं और साथ में डिनर लेते हैं , तो इसका मतलब है कि वह किसी फिल्म में साथ काम करेंगे ? यह केवल एक प्रकार की सामाजिक मुलाकात थी . उन्होनें अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय की फिल्म रावण को मिल रही खराब प्रतिक्रिया के बारे में लिखा कि लोग फिल्म देखने के लिए पैसा देते हैं . यदि उन्हें कुछ पसंद नहीं आता है , तो उन्हें उसकी आलोचना करने की स्वतंत्रता है .
भाई आप जैसी किस्मत सबकी कहा . माँ तो माँ अब बेटा लोग भी कापी किताब लेकर सर पे सवार रहता है और मन ही मन बका जाता है कि बाप के साथ बेटा लोग भी बिगड़ेगा . मगर आप को बधाई हो .
में तैनात इलेक्ट्रोनिक , गैजेट्स | कोई टिप्पणी नहीं »
दोनों कडियॉं एक साथ पढीं । रोचकता और जिज्ञासा बनाए रखना तो आपकी विशेषता है । किन्तु कहना पड रहा है कि जिस मोड से कहानी शुरु होनेवाली थी , वहीं समाप्त कर दी गई । कहानी तो अब शुरु हुई है ।
डॉ . कयूम विकलांग है I वह गुरूवार घर से क्लीनिक जाने की बात कह कर निकले थे । पर वापस नहीं आये । घर वालों ने काफी जगह उनकी तलाश की पर कुछ पता नहीं चला । शुक्रवार को उनके ससुर मो . शमशेर ने पुलिस को एक तहरीर दी , जिस पर डा . कयूम की गुमशुदगी दर्ज कर मामले की जॉच की जा रही है । पुलिस ने बताया के डा . कयूम की मोबाइल की काल डीटेल निकलवाई जा रही है ।
नशा क्रिकेट के खेल कासट्टाबाजार की मानें तो क्रिक्रेट का विश्वकप जीतने के सबसे ज्यादा आसार भारत के हैं । लेकिन विश्वकप जीत की खुमारी में कोई भी तस्वीर भारत के माथे पर चस्पा है तो वह 1983 की कपिलदेव की टीम इंडिया है , जो सिर्फ एक लाख रुपये के खर्चे पर इंग्लैंड रवाना हुई थी । उसके पास उस वक्त जीतने के लिये वाकई दुनिया थी और गंवाने के लिये सिर्फ टीम इंडिया का कैप । जिसके एवज में दस हजार से ज्यादा की कमाई किसी खिलाड़ी की नहीं थी । लेकिन 2011 में जब टीम इंडिया रवाना हुई तो हर खिलाडी के पैरो तले दुनिया है और जीत - हार का मतलब उसके लिये सिर्फ खेल है । 1983 में समूचा विश्वकप महज चालीस लाख में निपटा दिया गया था और दुनिया कपिलदेव के वह आतिशी 175 रन भी नहीं देख पायी थी क्योकि उस दिन बीबीसी की हड़ताल थी । लेकिन 2011 में क्रिक्रेट दिखाने वाले टीवी चैनल में एक दिन की हडताल का मतलब है 500 करोड़ का चूना लगना । और इस बार विश्वकप का खर्चा है पचास करोड़ रुपये । 1983 में हर भारतीय खिलाड़ी के पीछे देश का बीस हजार रुपये लगा था । और खिलाडियो के जरीये प्रचार करने वाली कंपनियो से खिलाड़ियों को कुल कमाई महज पचास हजार थी । लेकिन आज की तारीख में खिलाड़ियों के जरीये प्रचार करने वाली कंपनियों से खिलाड़ियों की कमाई सिर्फ पैंतीस हजार करोड़ की है । जी , यह आंकडा सिर्फ भारतीय खिलाडियों का है । जिसका असर यही है कि विश्वकप की टीम में नौ खिलाड़ी अरबपति हैं और बाकी करोड़पति । लेकिन सवाल यह नहीं है कि देश में क्रिक्रेट की खुमारी सिर्फ पैसों पर रेंगती है । सवाल यह है कि जिस दौर में क्रिकेट बाजार में बदला उसी दौर में बाजार के जरीये देश को चूना लगाने वाले कॉरपोरेट के लिये खिलाड़ी ही बाजार बन गया । जिस दौर में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की आंच में प्रधानमंत्री भी आये हैं और सीबीआई कारपोरेट घरानों की परेड करा रही है , उसी दौर में टीवी पर उन्हीं दागदार कारपोरेट के प्रोडक्ट का प्रचार करते वही क्रिक्रेटर भी नजर आ रहे हैं , जिनके माथे पर टीम इंडिया का कैप है और जर्सी पर दागदार कंपनियों का स्टीकर । असल में दागदार टेलीकॉम कंपनियां ही नहीं , रीयल इस्टेट से लेकर देश के खनिज संपदा को लूटने में लगी कंपनियों के भी प्रचार में यही क्रिक्रेटर सर्वोपरी हैं । अगले मुकाबलों में जब टीम इंडिया मैदान पर होगी तो हर खिलाडी की जर्सी को गौर से देखियेगा । हर जर्सी पर दो कंपनियों के स्टीकर का मतलब महज बाजार को ढोना भर नहीं है बल्कि इसकी एवज में मिलने वाली रकम भी विश्वकप जीतने के बाद मिलने वाली रकम से भी कई गुना ज्यादा है । तो पहली बात तो यह तय हो गयी कि क्रिक्रेट विश्वकप में जीत का उस रकम से कुछ भी लेना देना नहीं है जो विश्वकप के साथ मिलेगी । तब जीत किसलिये । जाहिर है क्रिक्रेट एक खेल है तो खिलाडी को मान्यता जीत से ही मिलती है । लेकिन देश के भीतर 20 - 20 के आईपीएल के धंधे ने तो इस मान्यता की भी बोली लगा दी , जहां खिलाडी की जिन्दगी में चकाचौंघ और पांच सितारा समाज में घूमने - फिरने की ऐंठ खेल से ज्यादा उस पावर पर आ टिकी जहां खिलाड़ी मशीन में बदल गया । और तीन से चार ओवर में चौके - छक्के मार कर झटके में लाखो के वारे - न्यारे कर ले जाये । उसके बाद मनमोहनोमिक्स के चुनिंदा कारपोरेट के साथ गलबहिया डालकर खिलाड़ियों का खिलाड़ी बन जाये । तो विश्वकप में जीत की भूख टीम इंडिया में जगेगी कैसे । जाहिर है यहां सवाल देश के उन करोड़ों लोगों के जोश - उत्साह और उमंग का होगा , जिनकी रगों में क्रिक्रेट देश भक्ति के आसरे दौड़ता है और जीत का मलतब दुनिया को अपने पैरो तले देखने की चाहत होती है । यानी जिस 80 करोड़ आम जनता के हक को अपनी हथेली पर समेटकर चकाचौंध की व्यवस्था में राजनेता - कारपोरेट और नौकरशाह का कॉकटेल देश के राजस्व को ही लूट रहे हैं , उनके लिये वही क्रिक्रेट खिलाड़ी जीतना चाहेंगे , जो लूट की पूंजी में खुद बाजार बनकर खिलाड़ी बने हुये हैं । असल में देश के सामने सबसे बड़ा संकट यही है कि जो व्यवस्था देश को आगे बढाने के नाम पर अपनायी जा रही है , वह चंद हाथों में सिमटी हुई है और पहली बार देश की ही कीमत अलग अलग तरीके से हर वह लगा रहा है जिससे उसे विश्वबाजार में मुनाफा मिल सके । मामला सिर्फ टेलिकाम के 2जी स्पेक्ट्रम या इसरो के एस बैंड का नहीं है । सवाल आदिवासी बहुल इलाको की खनिज - संपदा के खनन का भी है और खेती की जमीन पर कुकुरमुत्ते की तरह उगते उघोगो का भी है । सवाल गांव के गांव खत्म कर शहरीकरण के नाम पर सड़क से लेकर पांच सितारा हवाईअड्डो के विस्तार का भी है और पर्यावरण ताक पर रखकर रईसी के लिये लवासा सरीखे शहर को बसाने का भी है । और इस उभरते भारत की गांरटी लिये अगर क्रिक्रेटर ही आमजन की भवनाओं को अपनी कमाई तले जगाने लगे तो सवाल वाकई देश की असल धड़कन का होगा । क्या वाकई देश के हालात इस सच को स्वीकारने के लिये तैयार है कि कल तक जो विदेशी निवेश देश की मजबूत होती अर्थव्यवस्था का प्रतीक था , आज उसमें हवाला और मनी - लॉड्रिंग का खेल क्यों नजर आ रहा है । कल तक जो कारपोरेट सरकारी लाइसेंस के जरीये देश का विकास करता हुआ दिखता था आज वह देश के राजस्व को लूटने वाला क्यों लग रहा है । कल तक जो नौकरशाह जिस किसी भी मंत्रालय में कारपोरेट की योजनाओ की फाइल पर मंत्रीजी के संकेत मात्र से " ओके " लिखकर विकास की दौड में अपनी रिपोर्टकार्ड में " ए " ग्रेड पा लेता था । अब वहीं नौकरशाह नियम - कायदो का सवाल उठाकर उसी कारपोरेट के नीचे से रेड कारपेट खिंचने को तैयार है क्योकि भ्रष्टाचार पर सीबीआई से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक की नजर है । तो क्या खुली बाजार अर्थव्यव्स्था की हवा के दौर में देश की सत्ता भी अब विकास की परिभाषा बदलने के लिये तैयार है । अगर हां तो फिर नयी परिभाषा तले विश्वकप खेलने के लिये तैयार टीम इंडिया को परखना होगा । जिसके पास न तो 1983 के खिलाड़ियों की तरह क्रिक्रेट जीने का जरीया नहीं कमाने का जरीया है । उस वक्त नंगे पांव हर मैच - दर - मैच क्रिकेटर खुद को चैपियन बनाने में लगे थे यानी टीम इंडिया विकसित होने की दिशा में थी । लेकिन 2011 में टीम इंडिया खेल शुरु होने से पहले ही ना सिर्फ खुद को चैंपियन माने हुये हैं बल्कि जिन्दगी से आगे हर चकाचौंघ को अपनी हथेली पर चमकते हुये देखने का नशा है । हालांकि टीम इंडिया की जीत को लेकर करोड़ों आमजन के नशे में अब भी तिरंगे के लहराने और देश का माथा उंचा रखना ही है । लेकिन पहली बार देश के हालात में सियासत का खेल ज्यादा रोंमाच भरा है और सरकार - विपक्ष के साथ साथ जनता भी अब महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर 20 - 20 खेलने के मूड में आक्रामक है । ऐसे में 50 50 ओवर का वन - डे विश्वकप कितना रोमांच पैदा कर पायेगा यह देखना भी देश को पहली बार समझने जैसा ही होगा । इसलिये सट्टेबाजों पर ना जाइये जो 5 हजार करोड से ज्यादा की रकम जीत हार पर लगाकर भारत को चैंपियन बता रहा है । बल्कि दुआ मनाईये कि वाकई इस बार खेल से खिलाड़ी निकले । न कि भ्रष्ट व्यवस्था में पैसो की जमीन पर खिलाड़ियों के खिलाडी !
ओ यार ! जिसका आर्डर पहले दोगे , वो ही तो पहले आयेगी ।
सोवियत संघ में आए संकट के बाद " बुद्धिवादी " मार्क्सवादियों के बीच धर्म की भूमिका को लेकर एक गंभीर बहस छिड़ी । अब उनका जोर धर्म के दूसरे पहलू पर है - यानी धर्म की प्रगतिशील भूमिका अब इनके लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गई है । दुर्भाग्य की बात है कि इस बार भी मार्क्सवादियों ने धर्म के सिर्फ आधे - अधूरे यथार्थ को ही पकड़ा ।
अरविंद अडिगा उपन्यास के बारे में कहते हैं , " मैं अपने आसपास के भारत में आए बदलाव को दिखाना चाह रहा था . मास्टरजी और शाह इस बदलते भारत के प्रतिनिधि पात्र हैं , एक परिवर्तन चाहता है और दूसरा इसका विरोध करता है . "
तेरे बगैर जहाँ में कोई कमी सी थी , भटक रही थी जवानी अँधेरी राहों में , सुकून दिल को मिला आके तेरी बाहों में , मैं एक खोई हुई मौज हूँ तू साहिल है ।
बढ़िया चित्र | दिल्ली में भी यमुना पर छट पूजा हुई है लेकिन हम वहां होने वाले जाम से निजात पाने के लिए आज काम बीच में ही छोड़कर चले आये | आपकी तरह फोटो आदि लेना भूल ही गए | हाँ अब सोमवार को ऑफिस में बिहारी बंधुओं से छट माता का प्रशाद खाने को जरुर मिल जायेगा | जय हो छट माता की |
निष्क्रिय कौन - बस यही समझना बाकी है - वोट न देने वाला या वोट पाकर चुन लिए जाने वाला ? दोनों ही निष्क्रिय है | यदि वोट पाने वाला निष्क्रिय है तो अगली बार सक्रीय वोट देने वाला उसे बदल भी सकता है , सक्रीय होने के लिए बाध्य भी कर सकता है |
यहाँ तो पहले ही सारी उर्जा ब्लॉग में सटा चुके हैं . अब क्या मैनेज करें ? बस कुंद बैठे टिपिया रहे हैं ताकि कुछ तो ये कांटा कांटे को निकाले .
१ . वास्तविक स्थापना प्रक्रिया को समझने के लिए इस वीडियो को देखें : २ . वूबी के जरिये लिनक्स स्थापित करने के लिए आपको विन्डोज़ में रहते हुए उबुन्टू की सीडी , सीडी ड्राइव में लगानी है फिर माई कंप्यूटर से सीडी ड्राइव खोलकर वूबी को क्रियान्वित करना है | इससे आपके सामने यह विंडो आ जाएगी :
आज भी नारी अपने समस्त अधिकारों से वंचित है इसके लिए सारे नियम - क़ानून कानूनी किताब में दफन है , जिसका वो इसका कोई लाभ नहीं उठा पा रही है . इसी वजह से वैधानिक अधिकार की सत्यता इसके लिए आज भी ज़मीं असमान का अंतर है . आज भी 90 फीसदी महिलाओं का दायरा घर - परिवार रिश्ते - नाते तक सीमित हैं और वो चाहकर भी अपने बंधनों से मुक्त नहीं हो पा रही है . हर पल एक नए कटघरे में खड़ी रहती है . काश नारी अपने स्वरुप को जान शर्म - हया आसमान का दर्पण छोड़ सच्चे आसमान के नीचे खड़ी हो खुलकर पूरी सांस ले सके तथा समाज को अपना योगदान दे सके , यही मेरी अंतर इच्छा है .
बहुत बहुत बधाई समीर जी ! इतनी ख़ुशी की खबर बाँटने का शुक्रिया .
आजकल टाटा की नयी कार नेनो ( Tata Nano ) ने धूम मचायी हुई है जहाँ सब वाहवाही कर रहे हैं वहीं हमारे , नई दुनिया के कार्टूनिस्ट कीर्तिश भट्ट ने ढूँढ निकाले हैं इस कार के १० साइड इफेक्टस । चूँकि ये कार्टून आपने आप में ही बहुत कुछ कहते हैं मुझे कुछ समझाने की जरूरत नही , आप [ . . . ]
लोकपाल से परेशानी सिर्फ लालू और काँगर्ेस को ही क्यों है
हमारा देश हिन्दुस्तान महादेव जी की मूर्ति है । हिन्दुस्तान के नक्शे को यदि उल्टा पकड़े , तो उसका आकार शिवलिंग के जैसा मालूम होगा । उत्तर का हिमालय उसकी बुनियाद है , और दक्षिण की ओर का कन्याकुमारी का हिस्सा उसका शिखर है । गुजरात के नक्शे को जरा - सा घुमायें और पूर्व के हिस्से को नीचे की ओर तथा सौराष्ट्र का छोर - ओखा मंडल - ऊपर की ओर ले जायं तो यह भी शिवलिंग के जैसा ही मालूम होगा । हमारे यहां पहाड़ों के जितने भी शिखर है , सब शिवलिंग ही है । कैलाश के शिखर का आकार भी शिवलिंग के समान ही है । इन पहाड़ों के जंगलों से जब कोई नदी निकलती है , तब कवि लोग यह कहे बिना नहीं रहते कि ' यह तो शिवजी की जटाओं से गंगा जी निकली है ! ' चंद लोग पहाड़ों से आने वाले पानी के प्रवाह को अप्सरा कहते हैं और चंद लोग पर्वत की इन तमाम लड़कियों को पार्वती कहते हैं । ऐसी ही अप्सरा जैसी एक नदी के बारे में आज मुझे कुछ कहना है । महादेव के पहाड़ के समीप मेकल या मेखल पर्वत की तलहटी में अमरकंटक नामक एक तालाब है । वहां से नर्मदा का उद्गम हुआ है । जो अच्छा घास उगाकर गौओं की संख्या में वृद्धि करती है , उस नदी को गो - दा कहते हैं । यश देने वाली को यशोदा और जो अपने प्रवाह तथा तट की सुन्दरता के द्वारा ' नर्म ' याने आनन्द देती है , वह है नर्म - दा । इसके किनारे घूमते - घामते जिसको बहुत ही आनन्द मिला , ऐसे किसी ऋषि ने इस नदी को यह नाम दिया होगा । उसे मेखल - कन्या या मेखला भी कहते हैं । जिस प्रकार हिमालय का पहाड़ तिब्बत और चीन को हिन्दुस्तान से अलग करता है ; उसी प्रकार हमारी यह नर्मदा नदी उत्तर भारत अथवा हिन्दुस्तान और दक्षिण भारत या दक्खन के बीच आठ सौ मील की एक चमकती , नाचती , दौड़ती सजीव रेखा खींचती है । और कहीं इसको कोई मिटा न दे , इस खयाल से भगवान ने इस नदी के उत्तर की ओर विंध्य तथा दक्षिण की ओर सतपुड़ा के लंबे - लंबे पहाड़ो को नियुक्त किया है । ऐसे समर्थ भाइयों की रक्षा के बीच नर्मदा दौड़ती कूदती अनेक प्रांतों को पार करती हुई भृगुकच्छ यानी भड़ौंच के समीप समुद्र से जा मिलती है । अमरकंटक के पास नर्मदा का उद्गम समुद्र की सतह से करीब पांच हजार फुट की ऊंचाई पर होता है । अब आठ सौ मिल में पांच हजार फुट उतरना कोई आसान काम नहीं है ; इसलिए नर्मदा जगह - जगह छोटी - बड़ी छलांगें मारती है । इसी पर से हमारे कवि - पूर्वजों ने नर्मदा को दूसरा नाम दिया ' रेवा ' । ' रेव् ' धातु का अर्थ है कूदना । जो नदी कदम - कदम पर छलागें मारती है , वह नौका - नयन के लिए यानी किश्तियों के द्वारा दूर तक की यात्रा करने के लिए काम की नहीं । समुद्र से जो जहाज आता है , वह नर्मदा में मुश्किल से तीस - पैंतीस मील अंदर आ - जा सकता है । वर्षा ऋतु के अंत में ज्यादा से ज्यादा पचास - मील तक पहुंचता है । जिस नदी के उत्तर की ओर दक्षिण की ओर दो पहाड़ खड़े है , उसका पानी भला नहर खोदकर दूर तक कैसे लाया जा सकता है ? अतः नर्मदा जिस प्रकार नाव खेने के लिए बहुत काम की नहीं है , उसी प्रकार खेतों की सिंचाई के लिए भी विशेष काम की नहीं है । फिर भी इस नदी की सेवा दूसरी दृष्टि से कम नहीं है । उसके पानी में विचरने वाले मगर और मछलियों की , उसके तट पर चरने वाले ढोरों और किसानों की , और दूसरे तरह - तरह के पशुओं की तथा उसके आकाश में कलरव करने वाले पक्षियों की वह माता है । भारतवासियों ने अपनी सारी भक्ति भले गंगा पर उंडेल दी हो ; पर हमारे लोगों ने नर्मदा के किनारे कदम - कदम पर जितने मंदिर खड़े किये हैं , उतने अन्य किसी नदी के किनारे नहीं किये होंगे । पुराणकारों ने गंगा , यमुना , गोदावरी , कावेरी , गोमती , सरस्वती आदि नदियों के स्नान - पान का और उनके किनारे किए हुए दान के माहात्म्य का वर्णन भले चाहे जितना किया हो , किन्तु इन नदियों की प्रदक्षिणा करने की बात किसी भक्त ने नहीं सोची । जब कि नर्मदा के भक्तों ने कवियों को ही सूझने वाले नियम बनाकर सारी नर्मदा की परिक्रमा या ' परिकम्मा ' करने का प्रकार चलाया है । नर्मदा के उद्गम से प्रारंभ करके दक्षिण - तट पर चलते हुए सागर - संगम तक जाइये ; वहां से नाव में बैठकर उत्तर के तट पर जाइये और वहां से फिर पैदल चलते हुए अमरकंटक तक जाइये एक परिक्रमा पूरी होगी । नियम बस इतना ही है कि ' परिकम्मा ' के दरम्यान नदी के प्रवाह को कहीं भी लांघना नहीं चाहिये , न प्रवाह से बहुत दूर ही जाना चाहिये । हमेशा नदी के दर्शन होने चाहिये । पानी केवल नर्मदा का ही पीना चाहिये । अपने पास धन - दौलत रखकर ऐश - आराम में यात्रा नहीं करनी चाहिये । नर्मदा के किनारे जंगलों में बसने वाले आदिम निवासियों के मन में यात्रियों की धन - दौलत के प्रति विशेष आकर्षण होता है । आपके पास यदि अधिक कपड़े , बर्तन या पैसे होंगे , तो वे आपको इस बोझ से अवश्य मुक्त कर देंगे । हमारे लोगों को ऐसे अकिंचन और भूखे भाइयों का पुलिस के द्वारा इलाज करने की बात कभी सूझी ही नहीं । और आदिम निवासी भाई भी मानते आये हैं कि यात्रियों पर उनका यह हक है । जंगलों में लूटे गये यात्री जब जंगल से बाहर आते हैं ; तब दानी लोग यात्रियों को नये कपड़े और सीधा देते हैं । श्रद्धालु लोग सब नियमों का पालन करके - खास तौर पर ब्रह्मचर्य का आग्रह रखकर नर्मदा की परिक्रमा धीरे - धीरे तीन साल में पूरी करते हैं । चौमासे में वे दो तीन माह कहीं रहकर साधु - संतों के सत्संग से जीवन का रहस्य समझने का आग्रह रखते हैं । ऐसी परिक्रमा के दो प्रकार होते हैं । उनमें कठिन प्रकार है , उसमें सागर के पास भी नर्मदा को लांघा नहीं जा सकता । उद्गम से मुख तक जाने के बाद फिर उसी रास्ते से उद्गम तक लौटना तथा उत्तर के तट से सागर तक जाना और फिर उसी रास्ते उद्गम तक लौटना । यह परिक्रमा इस प्रकार दूनी होती है । इसका नाम है जलेरी । मौज और आराम को छोड़कर तपस्यापूर्वक एक ही नदी का ध्यान करना , उसके किनारे के मंदिरों के दर्शन करना , आसपास रहने वाले संत - महात्माओं के वचनों को श्रवण - भक्ति से सुनना , और प्रकृति की सुन्दरता तथा भव्यता का सेवन करते हुए जीवन के तीन साल बिताना कोई मामूली प्रवृत्ति नहीं है । इसमें कठोरता है , तपस्या है , बहादुरी है ; अंतर्मुख होकर आत्म - चिंतन करने की और गरीबों के साथ एकरूप होने की भावना है ; प्रकृतिमय बनने की दीक्षा है ; और प्रकृति के द्वारा प्रकृति में विराजमान भगवान के दर्शन करने की साधना है । और इस नदी के किनारे की समृद्धि मामूली नहीं है । असंख्य युगों से उच्च कोटि के संत - महंत , वेदांती , संयासी और ईश्वर की लीला देखकर गदगद होने वाले भक्त अपना - अपना इतिहास इस नदी के किनारे बोते आये हैं । अपने खानदान की शान रखनेवाले और प्रजा की रक्षा के लिए जान कुर्बान करने वाले क्षत्रिय वीरों ने अपने पराक्रम इस नदी के किनारे आजमाये हैं । अनेक राजाओं ने अपनी राजधानी की रक्षा करने के हेतु से नर्मदा के किनारे छोटे - बड़े किले बनवाये हैं । और भगवान के लिए उपासकों ने धार्मिक कला की समृद्धि का मानो संग्रहालय तैयार करने के लिए जगह - जगह मंदिर खड़े किए हैं । हरेक मंदिर अपनी कला के द्वारा आपके मन को खींचकर अंत में अपने शिखर की उंगली ऊपर दिखाकर अनंत आकाश में प्रकट होने वाले मेघश्याम का ध्यान करने के लिए प्रेरित करता है । जिस प्रकार ' अजान ' की आवाज सुनकर खुदापरस्तों को नमाज का स्मरण होता है , उसी प्रकार दूर - दूर से दिखाई देनेवाली मंदिरों की शिखररूपी चमकती ऊंगलियां हमें स्रोत गाने के लिए प्रेरित करती हैं । और नर्मदा के किनारे शिवजी या विष्णु का , रामचंद्र या कृष्णचंद्र का , जगत्पति या जगदंबा का स्रोत शुरू करने से पहले नर्मदाष्टक से प्रारंभ करना होता है - ' सबिंदुसिंधु सुस्खलत् तरंगभंग - रंजितम् ' । इस प्रकार जब पंचचामर के लघु - गुरु अक्षर नर्मदा के प्रवाह का अनुकरण करते हैं , तब भक्त लोग मस्ती में आकर कहते हैं , ' हे माता ! तेरे पवित्र जल का दूर से दर्शन करके ही इस संसार की समस्त बाधाएं दूर हो गयीं - ' गतं तदैव मे भयं त्वदम्बु वीक्षितं यदा ' । और अंत में भक्तिलीन होकर वे नमस्कार करते हैं - ' त्वदीय पाद - पंकज नमामि देवि ! नर्मदे ! ' । हमें यह भूलना नहीं चाहिये कि जिस प्रकार नर्मदा हमारी और हमारी प्राचीन संस्कृति की माता है , उसी प्रकार वह हमारे भाई आदिम निवासी लोगों की भी माता है । इन लोगों ने नर्मदा के दोनों किनारों पर हजारों साल तक राज्य किया था , कई किले भी बनवाये थे और अपनी एक विशाल आरण्यक संस्कृति भी विकसित की थी । मुझे हमेशा लगा है कि हिन्दुस्तान का इतिहास प्रांतों के अनुसार या राज्यों के अनुसार लिखने के बजाय यदि नदियों के अनुसार लिखा गया होता , तो उसमें प्रजा - जीवन प्रकृति के साथ ओत - प्रोत हो गया होता और हरेक प्रदेश का पुरुषार्थी वैभव नदी के उद्गम से लेकर मुख तक फैला हुआ दिखाई देता । जिस प्रकार हम सिन्धु के किनारे के घोड़ों को सैंधव कहते हैं , भीमा के किनारे का पोषण पाकर पुष्ट हुए भीमथड़ी के टट्टुओं की तारीफ करते हैं , कृष्णा की घाटी के गाय - बैलों को विशेष रूप से चाहते हैं , उसी प्रकार पुराने समय में हरेक नदी के किनारे पर विकसित हुई संस्कृति अलग - अलग नामों से पहचानी जाती थी । इसमें भी नर्मदा नदी भारतीय संस्कृति के दो मुख्य विभागों की सीमा रेखा मानी जाती थी । रेवा के उत्तर की ओर की पंचगौड़ों की विचार - प्रधान संस्कृति और रेवा के दक्षिण की ओर की द्रविड़ों की आचार - प्रधान संस्कृति मुख्य मानी जाती थी । विक्रम संवत् का काल - मान और शालिवाहन शक का काल - मान , दोनों नर्मदा के किनारे सुनाई देते हैं और बदलते हैं । मैंने कहा तो सही कि नर्मदा उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत के बीच एक रेखा खींचने का काम करती है ; किन्तु उसके साथ मुकाबला करने वाली दूसरी भी एक नदी है । नर्मदा ने मध्य हिन्दुस्तान से पश्चिम किनारे तक सीमा - रेखा खींची है । गोदावरी ने यों मानकर कि यह ठिक नहीं हुआ , पश्चिम के पहाड़ सह्याद्रि से लेकर पूर्व - सागर तक अपनी एक तिरछी रेखा खींची है । अतः उत्तर की ओर के ब्राह्मण संकल्प बोलते समय कहेंगे - " रेवायाः उत्तरे तीरे ; " और पैठण के अभिमानी हम दक्षिण के ब्राह्मण कहेंगे - " गोदावर्याः दक्षिणे तीरे । " जिस नदी के किनारे शालिवाहन या शातवाहन राजाओं ने मिट्टी में से मानव बनाकर उनकी फौज के द्वारा यवनों को परास्त किया उस गोदावरी को संकल्प में स्थान न मिले , यह भला कैसे हो सकता है ? नर्मदा नदी की ' परिकम्मा ' तो मैंने नहीं की है । अमरकंटक तक जाकर उसके उद्गम के दर्शन करने का मेरा संकल्प बहुत पुराना है । पिछले वर्ष विन्ध्यप्रदेश की राजधानी रीवा तक हम गये भी थे । किन्तु अमरकंटक नहीं जा सके । नर्मदा के दर्शन तो जगह - जगह किये हैं । किन्तु उसके विशेष काव्य का अनुभव किया जबलपुर के पास भेड़ाघाट में । भेड़ाघाट में नाव में बैठकर संगमरमर की नीली - पीली शिलाओं के बीच से जब हम जल विहार करते हैं , तब यही मालूम होता है मानो योगविद्या में प्रवेश करके मानवचित्त के गूढ़ रहस्यों को हम खोल रहे हैं । इसमें भी जब हम बंदरकूद के पास पहुंचते हैं , और पुराने सरदार यहां घोडों को इशारा करके उस पार तक कूद जाते थे आदि बाते सुनते हैं , तब मानों मध्यकाल का इतिहास फिर से सजीव हो उठता है । इस गूढ़ स्थान के इस माहात्म्य को पहचान कर ही किसी योगविद्या की उपासक ने समीप की टेकरी पर चौंसठ योगिनियों का मंदिर बनवाया होगा और उनके चक्र के बीच नंदी पर विराजित शिव - पार्वती की स्थापना की होगी । इन योगिनियों की मूर्तियां देखकर भारतीय स्थापत्य के सामने मस्तक नत हो जाता है और ऐसी मूर्तियों को खंडित करने वालों की धर्मांधता के प्रति ग्लानि पैदा होती है । मगर हमें तो खंडित मूर्तियों को देखने की आदत सदियों से पड़ी हुई है ! ! धुआंधार प्रकृति का एक स्वतंत्र काव्य है । पानी को यदि जीवन कहें तो अधः पात के कारण खंड - खंड होने के बाद भी जो अनायास पूर्वरूप धारण करता है । और शांति के साथ आगे बहता है , वह सचमुच जीवनतम कहा जायेगा । चौमासे में जब सारा प्रदेश जलमग्न हो जाता है , तब वहां न तो होती है ' धार ' और न होता है उसमें से निकलने वाला ठंडी भाप के जैसा ' धुआं ' चौमासे के बाद ही धुआंधार की मस्ती देख लीजिये । प्रपात की ओर टकटकी लगाकर ध्यान करना मुझे पसन्द नही है , क्योंकि प्रपात एक नशीली वस्तु है । इस प्रपात में जब धोबीघाट पर के साबुन के पानी के जैसी आकृतियां दिखाई देती हैं और आसपास ठंडी भाप के बादल खेल खेलते हैं , तब जितना देखते हैं उतनी चित्तवृत्ति अस्वस्थ होती जाती है । यह दृश्य मन भरकर देखने के बाद लौटते समय लगता है , मानों जीवन के किसी कठिन प्रसंग में से हम बाहर आये हैं और इतने अनुभव के बाद पहले के जैसे नहीं रहे हैं । इटारसी - होशंगाबाद के समीप की नर्मदा बिलकुल अलग ही प्रकार की है । वहां के पत्थर जमीन में तिरछे गड़े हुए हैं । किस भूकंप के कारण इन पत्थरों के स्तर ऐसे विषम हो गये हैं , कोई नहीं बता सकता । नर्मदा के किनारे भगवान की आकृति धारण करके बैठे हुए पाषाण भी इस विषय में कुछ नहीं बता सकते । और वही नर्मदा जब शिरोवेष्टन के साफे के समान लंबे किन्तु कम चौड़े भड़ौंच के किनारे को धो डालती है और अंकलेश्वर के खलासियों को खेलाती है , तब वह बिलकुल निराली ही मालूम होती है । कबीर वड़ के पास अपनी गोद में एक टापू की परवरिश करने का आनंद जिसे एक बार मिला , वह सागर - संगम के समय भी इसी तरह के एक या अनेक टापू - बच्चों की परवरिश करें , तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? कबीर वड़ हिन्तुस्तान के अनेक आश्चर्यों में से एक है । लाखों लोग जिसकी छाया में बैठ सकते हैं और बड़ी - बड़ी फौजें जिसकी छाया में पड़ाव डाल सकती हैं , ऐसा एक वट - वृक्ष नर्मदा के प्रवाह के बीचों - बीच एक टापू में पुराण पुरुष की तरह अनंतकाल की प्रतीक्षा कर रहा है । जब बाढ़ आती है , तब उसमें टापू का एकाध हिस्सा बह जाता है , और उसके साथ इस वट - वृक्ष की अनेक शाखाएं तथा उन पर से लटकने वाली जड़ें भी बह जाती हैं । अब तक कबीरवड़ के ऐसे बंटवारे कितनी बार हुए , इतिहास के पास इसकी नोंध नहीं है । नदी बहती जाती है । , और बड़की नई - नई पत्तियां फूटती जाती हैं ! सनातन काल वृद्ध भी है और बालक भी हैं । वह त्रिकालज्ञानी भी है । और विस्मरणशील भी है । इस काल - भगवान का और कालातीत परमात्मा का अखंड ध्यान करने वाले ऋषि - मुनि और संत - महात्मा जिसके किनारे युग - युग से बसते आये हैं , वह आर्य अनार्य सबकी माता नर्मदा भूत - भविष्य - वर्तमान के मानवों का कल्याण करे । जय नर्मदा , तेरी जय हो ! अगस्त 1955
इसकी 21 गांठ से हो जाएगा सब मंगल ही मंगल
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इसे अमृत ही कह सकते हैं क्योंकि इसे पीने से आयुष्य बढ सकता है . हालाँकि इसका परीक्षण इंसानों पर किया जाना बाकी है परंतु एक कोषीय यीस्ट और चूहों पर किया गया परीक्षण सफल रहा है .
वैसे बता दूँ कि इस लेख में किस किस का उल्लेख है . इसमें उल्लेख है यमुनानगर के श्रीश जी का , रतलाम के रवि जी का , जालन्धर के गोपाल अग्रवाल का , नागपुर के संतोष मिश्रा का , कोल्हापुर के नवीन तिवारी का . [ मैने रवि जी और श्रीश जी के अलावा बांकी महानुभावों का चिट्ठा नहीं देखा है . यदि आपको मालूम हो तो टिप्पणी द्वारा बतायें ताकि लिंक दिया जा सके . . पल्लवी जी ने अपने ई - पत्र में बताया है कि बांकी के चिट्ठाकार हिन्दी के नहीं वरन अंग्रेजी के हैं ] . लेख में छ्पी रवि जी की फोटो बहुत अच्छी थी वो क्या कहते ना झक्कास . वैसे रवि जी ने इसका श्रेय अपनी पत्नी रेखा जी को दिया है . अब उनकी अच्छी फोटो में रेखा जी का हाथ कैसे है ये तो नहीं मालूम पर हाँ यदि कभी हमारी कोई खराब फोटो ( जाहिर है खराब ही होगी ) छपे तो ( वैसे संभावना कम ही है ) हम भी कहेंगे कि इसमें हमारी पत्नी का ना सिर्फ हाथ है वरन और भी बहुत कुछ है . . आखिर उन्होने ही तो खिला पिला के इतना मोटा किया है कि अब तो आइने में भी पूरा मुँह नहीं समाता खैर ये तो विषयातंर हो रहा है . लेख पर आते हैं .
सर्किट : भाई लाख टके की एक बात बोलेगा . परमीशन है ?
उसे ब्यास नदी का पौराणिक नाम याद आता है - विपाषा ! तटों के बंधों में भी पाशमुक्त है नदी . . . क्योंकि उसमें प्रवाह है . . . वह किसी की कुछ नहीं लगती , इसीलिए सबकी है . . . हर अंजुरी को उसने अपनी रवानी से पानी दिया है और हर घटना से विरक्त - मुक्त हो आगे निकल गई है ।
शेयर ? ! हमने तो कभी हाथ नहीं लगाया । कब्भी नहीं छुआ । बाई गाड की कसम ! : )
कुछ बड़ी साईज़ की मुसीबतें , बतौर निशानी , अक्सर बालों में फंसाने वाली चिमटी भी बिस्तर के साईड टेबल पर या बाथरुम के आईने के सामने वाली प्लेट पर छोड़ दी जाती हैं . इस निशानी की मुझे बड़ी तलाश रहती है . नये जमाने की लड़कियाँ तो अब वो चिमटी लगाती नहीं , अब तो प्लास्टिक और प्लेट वाली चुटपुट फैशनेबल हेयरक्लिपस का जमाना आ गया मगर कान खोदने एवं कुरेदने के लिए उससे मुफ़ीद औजार मुझे आज तक दुनिया में कोई नजर नहीं आया . चाहें लाख ईयर बड से सफाई कर लो , मगर एक आँख बंद कर कान कुरेदने का जो नैसर्गिक आनन्द उस चिमटी से है वो इन ईयर बडस में कहाँ ?
वर्ष 1980 की शुरुआत में भारतीय राजनीति में एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटना घटी । 23 जून , 1980 को इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र संजय गांधी की नई दिल्ली में एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई । इसके पश्चात् सत्तारूढ़ दल में संजय के बड़े भाई राजीव , जो उस समय इंडियन एयरलाइंस में पायलट थे , को पार्टी में शामिल करने के लिए अभियान चलाया गया । उन्हें पार्टी का नेतृत्व देने की बात उठी । दो वर्षों से भी कम समय में उन्हें कांग्रेस पार्टी का महासचिव बना दिया गया । इस कदम ने स्पष्ट कर दिया था कि इंदिरा गांधी वंशवादी उत्तराधिकारी चाहती हैं ।
एक और बात - ये छत्तीसगढ़ी ब्लॉगर क्या खाते हैं कि इनमें इतनी ऊर्जा है ? मैं सर्वश्री पंकज , संजीत और संजीव की बात कर रहा हूं ? कल पहले दोनो की पोस्टें एक के बाद एक देखीं तो विचार मन में आया । इनकी पोस्टों में जबरदस्त डीटेल्स होती हैं । बहुत विशद सामग्री । इन्हीं के इलाके के हमारे इलाहाबाद के मण्डल रेल प्रबंधक जी हैं - दीपक दवे । बहुत काम करते हैं । पता नहीं सोते कब हैं ।
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