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Universal Dependencies - Hindi - HDTB

LanguageHindi
ProjectHDTB
Corpus Partdev
AnnotationBhat, Riyaz Ahmad; Zeman, Daniel

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s-2 मल्‍लों की राजधानी होने के कारण प्राचीनकाल में इस स्‍थान का अत्‍यंत महत्‍व था
s-3 बौद्ध धर्मावलंबियों के अनुसार लुंबनी, बोधगया और सारनाथ के साथ ही इस स्‍थान का विशद् महत्‍व है
s-4 हिंदू राजाओं के काल में चीन से ह्वेन सांग, फाह्यान और इत्‍सिंग ने अपने यात्रा वृत्तांत में इस स्‍थान के गौरव का वर्णन किया है
s-5 कुशीनगर का सबसे ज्‍यादा महत्‍व बौद्ध तीर्थ के रूप में है
s-6 1876 में यह स्‍थान एक बार फिर प्रकाश में आया, जब तत्‍कालीन पुरातत्‍ववेत्‍ता लॉर्ड कर्निंघम ने महापरिनिर्वाण मूर्ति की खोज की
s-7 आइए करें सैर -
s-8 कुशीनगर की सीमा में प्रवेश करते ही भव्‍य प्रवेशद्वार आपका स्वागत करता है
s-9 इसके बाद आम तौर पर पर्यटकों की निगाह महापरिनिर्वाण मंदिर की ओर पड़ती है
s-10 कुशीनगर का महत्‍व महापरिनिर्वाण मंदिर से है
s-11 इस मंदिर का स्‍थापत्‍य अजंता की गुफाओं से प्रेरित है
s-12 मंदिर के डाट हूबहू अजंता की गुफाओं के डाट की तरह हैं
s-13 यह मंदिर उसी स्‍थान पर बनाया गया है, जहाँ से यह मूर्ति निकाली गई थी
s-14 मंदिर के पूर्व हिस्‍से में एक स्‍तूप है
s-15 यहाँ पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्‍कार किया गया था
s-16 मूर्ति भी अजंता के भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है
s-17 वैसे मूर्ति का काल अजंता से पूर्व का है
s-18 इस मंदिर के आसपास कई विहार (जहाँ बौद्ध भिक्षु रहा करते थे) और चैत्‍य (जहाँ भिक्षु पूजा करते थे या ध्‍यान लगाते थे) भग्‍नावशेष और खंडहर मौजूद हैं जो अशोककालीन बताए जाते हैं
s-19 मंदिर परिसर से लगा काफी बड़ा सा पार्क है, जहाँ पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है
s-20 वैसे इस पूरे परिसर में अलौकिक शांति का वातावरण है
s-21 महापरिनिर्वाण मंदिर से कुछ दूर आगे माथा कुँवर का मंदिर है
s-22 इसके स्‍थानीय लोगों में भगवान विष्‍णु के अवतार होने की मान्‍यता भी प्रचलित है
s-23 इस मूर्ति के भी करीब पाँच सौ वर्ष पुराना होने का प्रमाण मिलता है
s-24 माथा कुँवर की मूर्ति काले पत्‍थर से बनी है
s-25 इसकी ऊँचाई करीब तीन मीटर है
s-26 मूर्ति भगवान बुद्ध के बोधि प्राप्‍त करने से पूर्व की ध्‍यान मुद्रा में है
s-27 यहाँ बुद्ध चिरनिद्रा में हैं -
s-28 भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद 16 महाजनपदों में उनकी अस्‍थियों और भस्‍म को बाँट दिया गया
s-29 इन सभी स्‍थानों पर इन भस्‍मों और अस्‍थियों के ऊपर स्‍तूप बनाए गए
s-30 कुशीनगर में मौजूद रामाभार का स्‍तूप इन्‍हीं में से एक है
s-31 करीब 50 फुट ऊँचे इस स्‍तूप को मुकुट बंधन विहार कहा जाता है
s-32 हालाँकि स्‍थानीय वाशिंदों में यह रामाभार स्‍तूप के नाम से ही आज भी जाना जाता है
s-33 महापरिनिर्वाण मंदिर के उत्तर में मौजूद जापानी मंदिर अपने विशिष्‍ट वास्‍तु के लिए प्रसिद्ध है
s-34 अर्द्धगोलाकर इस मंदिर में भगवान बुद्ध की अष्‍टधातु की मूर्ति है
s-35 मंदिर सुबह 10 से शाम 4 बजे तक दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है
s-36 मंदिर के चार बड़े - बड़े द्वार हैं, जो सभी दिशाओं की ओर बनाए गए हैं
s-37 इस मंदिर की देखरेख जापान की एक संस्‍था की ओर से की जाती है
s-38 जापानी मंदिर के ठीक सामने संग्रहालय है
s-39 इसमें बुद्धकालीन वस्‍तुएं, धातुएं, कुशीनगर में खुदाई के दौरान पाई गई मूर्ति, सिक्‍के, बर्तन आदि रखे गए हैं
s-40 इसके साथ ही मथुरा और गांधार शैली की दुर्लभ मूर्तियाँ भी यहाँ देखने को मिलेंगी
s-41 मंदिर में थाई शैली की भगवान बुद्ध की अष्‍टधातु की मूर्ति है
s-42 मंदिर का वास्‍तु थाईलैंड के मंदिरों जैसा ही है
s-43 इसकी संरक्षिका थाईलैंड की राजकुमारी हैं
s-44 मंदिर के शीर्ष पर सोने की परत लगाई गई है
s-45 वाट थाई मंदिर -
s-46 वर्तमान में सबसे आकर्षण का केंद्र यहाँ पर हाल ही में निर्मित वाट थाई मंदिर है
s-47 मंदिर का निर्माण थाईलैंड सरकार के सौजन्‍य से किया गया है
s-48 सफेद पत्‍थरों से बने इस मंदिर के दो तल हैं
s-49 इस मंदिर में थाई शैली की भगवान बुद्ध की अष्‍टधातु की मूर्ति है
s-50 मंदिर का वास्‍तु थाईलैंड के मंदिरों जैसा ही है
s-51 इसकी संरक्षिका थाईलैंड की राजकुमारी हैं
s-52 मंदिर के शीर्ष पर सोने की परत लगाई गई है
s-53 पौधों का विशेष आकार भी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है
s-54 मंदिर परिसर में मौजूद चैत्‍य सभी के आकर्षण का केंद्र बन जाता है
s-55 लोग बरबस इस सोने की परत चढ़े चैत्‍य के साथ फोटो खींचना चाहते हैं
s-56 कुशीनगर के विस्‍तार के साथ ही यहाँ पर सबसे अधिक बनाए गए मंदिरों में से एक चीनी मंदिर है
s-57 मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्ति अपने पूरे स्‍वरूप में चीनी लगती है
s-58 इसकी दीवारों पर जातक कथाओं से संबंधित पेंटिंग अत्‍यंत ही आकर्षक है
s-59 मंदिर के बाहर सुंदर फव्वारा है
s-60 महापरिनिर्वाण मंदिर से पहले बीच तालाब में बना भगवान बुद्ध का मंदिर और इसके सामने बना विशाल पगोडा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है
s-61 जल मंदिर तक जाने के लिए तालाब के ऊपर पुल का निर्माण किया गया है
s-62 इसमें कछुओं और बतख के साथ ही मछलियों को अठखेलियाँ करते देखना बहुत अच्‍छा लगता है
s-63 ठीक सामने मौजूद पगोडा के ऊपर बँधी घंटियाँ सुरम्‍य और शांत वातावरण में जब बजती हैं तो लगता है कि ये सभी दिशाओं में अहिंसा और प्रेम का संदेश दे रहीं हों
s-64 जलमंदिर के सामने भगवान शिव को समर्पित बिरला मंदिर मौजूद है
s-65 दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर में शिव की ध्‍यान मुद्रा में सफेद संगमरमर की मूर्ति है
s-66 इसके बगल में ही बिरला धर्मशाला है
s-67 कैसे पहुँचें?
s-68 कुशीनगर गोरखपुर से 52 किलोमीटर की दूरी पर नेशनल हाईवे नं 28 पर स्‍थित है
s-69 यहाँ पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्‍टेशन गोरखपुर रेलवे जंक्‍शन है
s-70 गोरखपुर से हर घंटे कुशीनगर (कसया) के लिए बसें मिलती रहती हैं
s-71 गोरखपुर से देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों के लिए ट्रेन की सुविधा उपलब्‍ध है
s-72 इसके साथ ही गोरखपुर से दिल्‍ली, मुंबई और कोलकाता के लिए हवाई सुविधा भी उपलब्‍ध है
s-73 दिल्‍ली और लखनऊ से पर्यटन विभाग की ओर से भी विदेशी और घरेलू पर्यटकों के लिए वाहन और रहने की व्‍यवस्‍था की जाती है
s-74 कहाँ ठहरें?
s-75 कुशीनगर में सैलानियों के ठहरने के लिए हर श्रेणी के आरामदायक होटल मौजूद हैं
s-76 यहाँ लोटस, निक्‍को होटल, होटल रेसीडेंसी और पथिक निवास में ठहरने के लिए बेहतर होगा कि पहले से बुकिंग करवा ली जाए
s-77 इनमें से पथिक निवास उत्तरप्रदेश पर्यटन विकास निगम की ओर से संचालित होता है
s-78 वहीं धर्मशालाओं में भी साल भर भीड़ रहती है
s-79 इसमें बिरला धर्मशाला और बुद्ध धर्मशाला प्रमुख हैं
s-80 इसके अलावा अलग - अलग देशों के मंदिरों की धर्मशाला भी हैं
s-81 बौद्ध भिक्षुओं के लिए कुछ मंदिरों में विहार की व्‍यवस्‍था है
s-82 युग - युगांतर से उत्तराखंड भारतीयों के लिए आध्यात्मिक शरणस्थल और शांति प्रदाता रहा है
s-83 प्रागैतिहासिक काल से ऋषि - मुनियों और साधक, परिव्राजकों को यह आकर्षित करता रहा है
s-84 हिमालय प्रकृति का महामंदिर है
s-85 यहाँ केदारनाथ तीर्थ उत्तराखंड का महत्वपूर्ण स्थल है
s-86 यहाँ जाते समय पैरों के नीचे यत्र - तत्र हिम राशि खिसकती दिखाई पड़ती है
s-87 बर्फ के पास ही अत्यंत मादक सुगंध वाले सिरंगा पुष्पकुंज मिलने लगते हैं
s-88 इनके समाप्त होने पर हरी बुग्याल 'दूब' मिलती है
s-89 इसके पश्चात केदारनाथ का हिमनद और उससे निकलने वाली मंदाकिनी अपने में असंख्य पाषाण खंडों को फोड़कर निकले झरनों और फव्वारों के जल को समेटे उद्दाम गति से प्रवाहित होती दिखाई देती है
s-90 इन सबके ऊपर केदारनाथ का 6 हजार 940 मीटर ऊँचा हिमशिखर ऐसा दिखाई देता है, मानो स्वर्ग में रहने वाले देवताओं का मृत्युलोक को झाँकने का यह झरोखा हो
s-91 ऋषिकेश से केदारनाथ की दूरी 223 किमी है, जिसमें अंतिम दस किमी का अंश जो गौरीकुंड से केदारनाथ है वह पैदल, घोड़े या पालकी से जाना पड़ता है
s-92 यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवाँ पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है
s-93 ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं
s-94 मंदिर लगभग 6 फुट ऊँचे चबूतरे पर बना है
s-95 मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं, जहाँ से होकर प्रदक्षिणा होती है
s-96 अर्धा, जो चौकोर है, अंदर से पोली है और अपेक्षाकृत नवीन बनी है
s-97 सभा मंडप विशाल एवं भव्य है
s-98 उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है
s-99 गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियाँ हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं
s-100 मंदिर के पीछे पत्थरों के ढेर के पास भगवान ईशान का मंदिर है
s-101 इस ढेर के पीछे शंकराचार्य का समाधि स्थल है

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