s-101
| हमरा बुझाता कि जिम्मेदार पत्र - पत्रिकन के एकरा पर अभी दू - चार बेरि अउर जमिके काम करेके चाहीं । |
s-102
| जरूरी ईहो बा कि जवन काम हो रहल बा ओकरा के कम से कम झंडावाला लोग जरूर पढ़सु । |
s-103
| आम नागरिक के भी चाहीं कि उनुका आस - पास शृंगार रस का नाम पर केहूँ ऑडियो - वीडियो के ब्लू फिलिम चलावत होखे , भा ठेंठ भोजपुरी का नाँव पर गारी - गलौज के यथार्थ परोसत होखे , त ओकरा पर सभका सङे मिलिके लगाम लगावेके चाहीं । |
s-104
| एह तरह के आचरण संस्कृति के विषय होला आ नैतिकता के परिसीमन आ नियंत्रण परिवारे आ समाज से शुरू होला । |
s-105
| अगर कवनो समाज के खतम करे के होखे त ओकरा नाभि प चोट करे के चाहीं । |
s-106
| आ समाज के नाभि ओकरा भासा , ओकरा परम्परा , ओकरा संस्कार , ओकरा उत्सवन में होला । |
s-107
| कई बेर ई चोट ओह समाज के भलाई का नाम प लगावल जाला , ओकरा के सुधारे सभ्य बनावे खाति कइल जाला । |
s-108
| भोजपुरियो का साथे अरसा से अइसने खुरचाली हो रहल बा । |
s-109
| आम आदमी के भासा भोजपुरी के अपना के पढ़ल - लिखल - सभ्य माने वाला कुछ लोग अपना खुरचाली में श्लील बनावे प लागल बा । |
s-110
| ओहु लोग के मालूम बा कि श्लील होखते भोजपुरी के नींव हिल जाई । |
s-111
| आम आदमी एकरा से दूर जाए लगीहें आ अपना के सभ्य - श्लील बतावे वाला लोग के तब मनसा पूरन हो जाई । |
s-112
| ई लोग त भोजपुरी का नाम प कई गो संस्थो चलावेला जवना के हर काम हिन्दी में होखेला । |
s-113
| आ जवन भासा आपन सवालो दोसरा भासा में उठावल करी ओकर आवाज केहु काहे आ कइसे सुनी । |
s-114
| भोजपुरी अगर आजु जिन्दा बिया त आम आदमी का चलते । |
s-115
| बाकि बकरी के माई कहिया ले खरजिउतिया मनाई । |
s-116
| आजु ना त काल्हु ओकरा कटाहीं के बा । |
s-117
| रउरो सभे सोचत होखब कि काल्हु फगुआ बा आ ई बतंगड़ा कवन राग उठा लिहलसि । |
s-118
| हर हप्ता एगो खम्भा खड़ा कइल आसान ना होखे । |
s-119
| कई बेर ओकरा मजबूरन खुरपी का बिआह में हँसुआ के गीत उठावे पड़ जाला । |
s-120
| चारो तरफ आजु चुनाव परिणाम के चरचा चलत बा । |
s-121
| एह प अगर कवनो अटकर पचीसा लगाईं त ओकरा गलत होखे के पूरा अनेसा रही । |
s-122
| कहले बा बड़ बड़ जने दहाइल जासु , गदहा थाहे कतना पानी । |
s-123
| अब जवन होखे के बा तवन काल्हु सामने आइए जाई । |
s-124
| बाकि हमरा हर हाल में एह लेख के आजु पठा देबे के बा ना त सम्पादक जी लुकारी भाँजे लगीहें । |
s-125
| समहुत जहिया जरी तहिया जरी , बाकि हम त आजुए झँउसि जाइब । |
s-126
| एक बेर मन भइल कि फगुए प लिख मारीं । |
s-127
| बाकि फगुआ लउके त पहिले । |
s-128
| तीन दिन बादे फगुआ बा आ कतहीं ना त फगुआ के गाजन बाजन सुनाता ना केहु का देह प रंग अबीर लउकत बा । |
s-129
| पिया परदेस , देवर घरे लईका , सूतल भसुर के जगाईं कइसे का उहा पोह में पड़ल बिरहिनी परेशान बिया कि पिया नाहीं अइले अबकी फगुनवो में । |
s-130
| भाग दौड़ भरल जिनिगी में रोजी रोटी कमाए परदेसे गइल पिया बलमा के तिकवते ओकर फगुआ बीते जात बा । |
s-131
| आ हम खोजत बानी अपना लइकाईं का दिन के उमंग उल्लास से भरल फगुआ । |
s-132
| जब राहे पेड़ा निकलत हमेशा चौकन्ना रहे के पड़त रहुवे कि केनियो से रंग पानी भेंटा मत जाए । |
s-133
| बाकि हिन्दू परब तेवहारन प सेकूलर हमला ई हाल क दिहले बा कि रंग - अबीर , कादो - पानी वाला फगुआ से साम्प्रदायिक बवाल मत हो जाए एह डरे रंग डाले के परम्परे भुलाइल जात बा । |
s-134
| गीत - |
s-135
| गवनई , फगुआ - चइतो बिसरल जात बा काहे कि कुछ लोग भोजपुरी के अश्लीलता खतम कइल चाहत बा । |
s-136
| संवैधानिक मान्यता ला परेशान लोग ई नइखे सोचत कि भासा बचल रही तबे मान्यता के फायदा बा । |
s-137
| ना त अकादमीओ के काम दोसरे भासा में करे के पड़ी । |
s-138
| हम त हिन्दी से लाख नाराजगी का बादो कुछ हिन्दी वालन के आभारी बानी जे हिन्दी का अखबार में भोजपुरी के खम्भा उठावे के जगहा दे देत बा । |
s-139
| ना त भोजपुरिया इलाका के हिन्दी साहित्यकार तनिको ना चाहसु कि भोजपुरी के ओकर हक मिल जाव । |
s-140
| महामहिम राष्ट्रपति जी , राउर बतिया हमरा से बरदाश्त नइखे होखत । |
s-141
| अब रउए बता दीं कि हम कहाँ जाईं । |
s-142
| कोच्चि मे 2 मार्च के दीहल राउर उद्बोधन हमरा सोझा बा । |
s-143
| एहमें राउर कहना बा कि अपना देश में असहिष्णु लोग ला कवनो जगहा ना होखे के चाहीं । |
s-144
| मीडिया में राउर भाषण जवना तरह से पेश कइल गइल ओहसे हमरा पहिले लागल कि मीडिया ओकरा के अपना हिसाब से पेश कइले बा । |
s-145
| त हम राउर आधिकारिक भाषण पढ़नी आ साँच कहीं त राउर भाषणो हमरा पचल ना । |
s-146
| एह हालत में रउरे बताईं कि हम कहाँ जाईं । |
s-147
| रउरा कहले बानी कि हिन्दुस्तान पुरातन काल से बरदाश्ती रहल बा आ हर तरह के बाति , विचार , संस्कारन के जगहा देत आइल बा । |
s-148
| आ ई परम्परा बरकरार रहे के चाहीं । |
s-149
| बोले भा अभिव्यक्ति के आजादी सबले खास मौलिक अधिकार हवे हमहन के संविधान के । |
s-150
| आगे कहले बानी कि भारत हमेशा से शिक्षा के क्षेत्र में विश्व नेता रहल बा । |
s-151
| नालन्दा आ तक्षशिला विश्व विद्यालयन के नामो लिहले बानी रउआ । |
s-152
| रउरा संबोधन के एक हिस्सा से हमहु सहमत बानी काहे कि ई ऐतिहासिक सच्चाई ह । |
s-153
| “ तबे नू एह आ अइसन कलम के जादूगरी पर चकित होत डॉ. रामप्रवेश शास्त्री के लिखे के पड़ल ” । |
s-154
| विवेकी राय जी के चुनरी के रंग , बिनावट , कारीगरी के जवन भी संज्ञा अच्छा लागे , दिहला में कवनो हरज ना बा , लेकिन अइसन कला के पटतर दिहल कठिन होला । |
s-155
| जवन नित नया बा , ओके पुरान बटखरा से वजन कइले अतने लाभ हो सकेला कि पता चलि जाई कि हमरा जानकारी के कसौटी में कतना पर ई अधिका उतरल बा । |
s-156
| “ अनिल कुमार आंजनेय एह कृति के भोजपुरी अंचल के दरपन बतावत कहले रहलीं - ” के कहल चुनरी रँगा ल ’ भोजपुरी अंचल के दर्पण ह । |
s-157
| जेके भोजपुरी जिनिगी में , अंचल में गहराई तक पइठे के बा , ओके ई समीक्ष्य पुस्तक पढ़ल बहुते आवश्यक बा । |
s-158
| ई पुस्तक के गहरे पैठ अंतर्दृष्टि के साक्षी ह । |
s-159
| “ आंजनेय जी के एह कहनाम से सहमति जतावत चंद्रशेखर तिवारी लिखले बाड़न - ” एह संग्रह के पढ़िके ई कहल जा सकेला कि डॉ. विवेकी राय जी अउरी साहित्यकारन खानी कागद की लेखी ना कहिके महात्मा कबीर का तरह ‘ आँखिन के देखी ’ कहले बाड़न , जवना से उनकर निबंध पाठक पर आपन एगो विशिष्ट छाप छोड़े में सफल भइल बाड़न स । |
s-160
| एह पुस्तक के प्रकाशन निश्चित रूप से भोजपुरी साहित्य के ललित निबंधन का इतिहास में एगो महत्वपूर्ण घटना ह । |
s-161
| “ अपना भाषाई कौशल , व्यंगात्मकता आ रचनात्मक दक्षता के बदउलत राय साहब के निबंध एह विधा के विकास - समृद्धि के दिसाईं मील के पाथर साबित भइलन स । |
s-162
| एह संबंध में डॉ. जया पाण्डेय के साफ - साफ विचार बा - ” विवेकी राय जी के कुल्हि निबंध शुरू से आखिर ले व्यक्ति - व्यंजकता का रंग में रँगाइल बाड़े सन । |
s-163
| कतहीं - |
s-164
| कतहीं प्रगीतात्मक काव्य के आनंद आवता । |
s-165
| दोसर विशेषता बा लेखक के व्यंग्य - विनोद के प्रवृत्ति । |
s-166
| कवनो भाषा के गद्य साहित्य जतने समृद्ध होई , ऊ भाषा ओतने विकसित मान जाले । |
s-167
| विवेकी राय के तमाम निबंध विकासमान बोली के भाषा के प्रौढ़ता प्रदान कइलन स । |
s-168
| “ विवेकी राय के हिन्दी - भोजपुरी के कृतित्वे - भर आंचलिक ना रहे , उहाँ के शख्सियतो एड़ी से चोटी ले आंचलिकता से लैस रहे - सहनशीलता आ जीवट से लबालब भइल । |
s-169
| तबे नू , अढ़ाई दशक पहिले हृदयाघात के हरु पटे त विजयी भइलीं । |
s-170
| सतरह साल पहिले जब पक्षाघात के शिकार दहिना अलँग कहला में ना रहल , त बायाँ हाथ से लिखे के सिलसिला शुरू कऽ दिहलीं । |
s-171
| बाकिर एह बेर उहाँ के मउवत के चुनौती कबूल ना कऽ पवलीं आ बाबा विश्वनाथ के नगरी काशी के अस्पताल में गंगा मइया के गोदी में आखिरी साँस लिहलीं । |
s-172
| अतिशय सज्जनता आ साधुता के प्रतिमूर्ति , गँवई जिनिगी के अद्भुत चितेरा , गँवई गंध गुलाब ’ से साहित्य - वाटिका के गमगमावे वाला ‘ मनबोध मास्टर ’ के हमार अशेष प्रणामांजलि ! |
s-173
| आजु स्टाफ रूम में इंस्पेक्शन के बात एक - एक क के उघरत रहे । |
s-174
| हमरा प्राचार्य डॉ. संजय सिंह ‘ सेंगर ’ जी याद आ गइल रहीं आ हम भावुक हो गइल रहीं । |
s-175
| 5 जनवरी के उहाँ से खड़े - खड़े भइल आधा घंटा के बतकही के एक - एक शब्द हमरा याद रहे । |
s-176
| हमार कलिग लोग के भी आँखि भरि आइल । |
s-177
| भइल ई रहे कि सेंगर जी का विद्यालय के एगो सब - स्टाफ के दूनो किडनी फेल हो गइल । |
s-178
| ओकरा तीन गो लइकी रही सन आ एकहूँ के अभी बियाह ना भइल रहे । |
s-179
| ओह गरीब परिवार के कमाई के साधन बस ईहे नोकरी रहे । |
s-180
| घर - परिवार आ नाता - रिश्ता में केहूँ अइसन ना मिलल जेकर किडनी मैच करो । |
s-181
| धीरे - धीरे एह परिवार के आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गइल । |
s-182
| सेंगर जी के ब्लड ग्रुप मैच करत रहे । |
s-183
| ऊ बिना घरे केहू के बतवले चुपचाप आपन किडनी ओह आदमी के दान क दिहले । |
s-184
| अतने ना ओकराके तीन बोतल खूनो दिहले । |
s-185
| ई राज घरे तब खुलल जब उनुका सङ के पढ़ल एगो डॉक्टर घरे आइल आ बचपनवाला स्टाइल में मुक्का - मुक्की शुरू कइलस । |
s-186
| जसहीं जगह पर छुआइल कि ओकरा मुँह से निकलल - आरे तोर किडनी ? |
s-187
| आ फेरु त हंगामा शुरू । |
s-188
| पत्नी के मनावे में तीन दिन लागल । |
s-189
| आजु ओह आदमी के मए लइकी बियहा के ससुरा चलि गइली सन आ ऊहो सामान्य जीवन जी रहल बा । |
s-190
| सेंगर जी त एकदम फिटफाट रहीं । |
s-191
| बिना कवनो लोभ के केहूँ चुपचाप अइसे मदद करे त ओकरा के का कहल जाउ ? |
s-192
| साधारन आदमी त नाहिंए कहाई ऊ । |
s-193
| ओह स्टाफ के एगो दमाद जवन बेंगलुरु में इंजीनियर बाटे , फ्लाइट से कोलकाता खाली उहाँसे मिले खाती आइल रहे । |
s-194
| कालिदास सर अपना एगो मित्र के अनुभव शेयर कइलीं । |
s-195
| ऊ जापान गइल रहन । |
s-196
| एक दिन ट्रेन में जवन बैग लेके बइठल रहन ओकर एक ओर के थोरे सिलाई टूटल रहे । |
s-197
| एगो जापानी नागरिक के ओ पर नजर चलि गइल रहे । |
s-198
| ऊ जब देखलसि कि ई ओने नइखन देखत त अपना बैग में से निडिलवाला मशीन निकललसि आ उनुकर आँखि बचावत बेगवा सी दिहलसि । |
s-199
| अभी इनकर ध्यान ओह पर जाइत कि ओकरा पहिलहीं ओकर स्टेशन आ गइल आ बिना कुछ बतवले चुपचाप उतरि गइल । |
s-200
| जहाँ का बच्चा - बच्चा में एह तरह के नैतिक मूल्य भरल गइल बा ओह देश के तरक्की भला कइसे रुकी ? |