s-2
| राहे - राहे रासलीला , खेते - खेते वृंदावन …… ई फागुन के महीना , ई खेत , ई खरिहान , ई कटिया , ई धूप , ई बसंती चोली , ई गुलाबी चुनरी , मस्त चाल …… अजी , धनिया से के कहल कि अब चुनरी रँगा ल । |
s-3
| “ तबे नू एह आ अइसन कलम के जादूगरी पर चकित होत डॉ. रामप्रवेश शास्त्री के लिखे के पड़ल – ” । |
s-4
| विवेकी राय जी के चुनरी के रंग , बिनावट , कारीगरी के जवन भी संज्ञा अच्छा लागे , दिहला में कवनो हरज ना बा , लेकिन अइसन कला के पटतर दिहल कठिन होला । |
s-5
| जवन नित नया बा , ओके पुरान बटखरा से वजन कइले अतने लाभ हो सकेला कि पता चलि जाई कि हमरा जानकारी के कसौटी में कतना पर ई अधिका उतरल बा । |
s-6
| “ अनिल कुमार आंजनेय एह कृति के भोजपुरी अंचल के दरपन बतावत कहले रहलीं - ” के कहल चुनरी रँगा ल ’ भोजपुरी अंचल के दर्पण ह । |
s-7
| जेके भोजपुरी जिनिगी में , अंचल में गहराई तक पइठे के बा , ओके ई समीक्ष्य पुस्तक पढ़ल बहुते आवश्यक बा । |
s-8
| ई पुस्तक के गहरे पैठ अंतर्दृष्टि के साक्षी ह । |
s-9
| “ आंजनेय जी के एह कहनाम से सहमति जतावत चंद्रशेखर तिवारी लिखले बाड़न - ” एह संग्रह के पढ़िके ई कहल जा सकेला कि डॉ. विवेकी राय जी अउरी साहित्यकारन खानी कागद की लेखी ना कहिके महात्मा कबीर का तरह ‘ आँखिन के देखी ’ कहले बाड़न , जवना से उनकर निबंध पाठक पर आपन एगो विशिष्ट छाप छोड़े में सफल भइल बाड़न स । |
s-10
| एह पुस्तक के प्रकाशन निश्चित रूप से भोजपुरी साहित्य के ललित निबंधन का इतिहास में एगो महत्वपूर्ण घटना ह । |
s-11
| “ अपना भाषाई कौशल , व्यंगात्मकता आ रचनात्मक दक्षता के बदउलत राय साहब के निबंध एह विधा के विकास - समृद्धि के दिसाईं मील के पाथर साबित भइलन स । |
s-12
| एह संबंध में डॉ. जया पाण्डेय के साफ - साफ विचार बा - ” विवेकी राय जी के कुल्हि निबंध शुरू से आखिर ले व्यक्ति - व्यंजकता का रंग में रँगाइल बाड़े सन । |
s-13
| कतहीं - |
s-14
| कतहीं प्रगीतात्मक काव्य के आनंद आवता । |
s-15
| दोसर विशेषता बा लेखक के व्यंग्य - विनोद के प्रवृत्ति । |
s-16
| कवनो भाषा के गद्य साहित्य जतने समृद्ध होई , ऊ भाषा ओतने विकसित मान जाले । |
s-17
| विवेकी राय के तमाम निबंध विकासमान बोली के भाषा के प्रौढ़ता प्रदान कइलन स । |
s-18
| “ विवेकी राय के हिन्दी - भोजपुरी के कृतित्वे - भर आंचलिक ना रहे , उहाँ के शख्सियतो एड़ी से चोटी ले आंचलिकता से लैस रहे - सहनशीलता आ जीवट से लबालब भइल । |
s-19
| तबे नू , अढ़ाई दशक पहिले हृदयाघात के हरु पटे त विजयी भइलीं । |
s-20
| सतरह साल पहिले जब पक्षाघात के शिकार दहिना अलँग कहला में ना रहल , त बायाँ हाथ से लिखे के सिलसिला शुरू कऽ दिहलीं । |
s-21
| बाकिर एह बेर उहाँ के मउवत के चुनौती कबूल ना कऽ पवलीं आ बाबा विश्वनाथ के नगरी काशी के अस्पताल में गंगा मइया के गोदी में आखिरी साँस लिहलीं । |
s-22
| अतिशय सज्जनता आ साधुता के प्रतिमूर्ति , गँवई जिनिगी के अद्भुत चितेरा , गँवई गंध गुलाब ’ से साहित्य - वाटिका के गमगमावे वाला ‘ मनबोध मास्टर ’ के हमार अशेष प्रणामांजलि ! |
s-23
| आजु स्टाफ रूम में इंस्पेक्शन के बात एक - एक क के उघरत रहे । |
s-24
| हमरा प्राचार्य डॉ. संजय सिंह ‘ सेंगर ’ जी याद आ गइल रहीं आ हम भावुक हो गइल रहीं । |
s-25
| 5 जनवरी के उहाँ से खड़े - खड़े भइल आधा घंटा के बतकही के एक - एक शब्द हमरा याद रहे । |
s-26
| हमार कलिग लोग के भी आँखि भरि आइल । |
s-27
| भइल ई रहे कि सेंगर जी का विद्यालय के एगो सब - स्टाफ के दूनो किडनी फेल हो गइल । |
s-28
| ओकरा तीन गो लइकी रही सन आ एकहूँ के अभी बियाह ना भइल रहे । |
s-29
| ओह गरीब परिवार के कमाई के साधन बस ईहे नोकरी रहे । |
s-30
| घर - परिवार आ नाता - रिश्ता में केहूँ अइसन ना मिलल जेकर किडनी मैच करो । |
s-31
| धीरे - धीरे एह परिवार के आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गइल । |
s-32
| सेंगर जी के ब्लड ग्रुप मैच करत रहे । |
s-33
| ऊ बिना घरे केहू के बतवले चुपचाप आपन किडनी ओह आदमी के दान क दिहले । |
s-34
| अतने ना ओकराके तीन बोतल खूनो दिहले । |
s-35
| ई राज घरे तब खुलल जब उनुका सङ के पढ़ल एगो डॉक्टर घरे आइल आ बचपनवाला स्टाइल में मुक्का - मुक्की शुरू कइलस । |
s-36
| जसहीं जगह पर छुआइल कि ओकरा मुँह से निकलल - आरे तोर किडनी ? |
s-37
| आ फेरु त हंगामा शुरू । |
s-38
| पत्नी के मनावे में तीन दिन लागल । |
s-39
| आजु ओह आदमी के मए लइकी बियहा के ससुरा चलि गइली सन आ ऊहो सामान्य जीवन जी रहल बा । |
s-40
| सेंगर जी त एकदम फिटफाट रहीं । |
s-41
| बिना कवनो लोभ के केहूँ चुपचाप अइसे मदद करे त ओकरा के का कहल जाउ ? |
s-42
| साधारन आदमी त नाहिंए कहाई ऊ । |
s-43
| ओह स्टाफ के एगो दमाद जवन बेंगलुरु में इंजीनियर बाटे , फ्लाइट से कोलकाता खाली उहाँसे मिले खाती आइल रहे । |
s-44
| कालिदास सर अपना एगो मित्र के अनुभव शेयर कइलीं । |
s-45
| ऊ जापान गइल रहन । |
s-46
| एक दिन ट्रेन में जवन बैग लेके बइठल रहन ओकर एक ओर के थोरे सिलाई टूटल रहे । |
s-47
| एगो जापानी नागरिक के ओ पर नजर चलि गइल रहे । |
s-48
| ऊ जब देखलसि कि ई ओने नइखन देखत त अपना बैग में से निडिलवाला मशीन निकललसि आ उनुकर आँखि बचावत बेगवा सी दिहलसि । |
s-49
| अभी इनकर ध्यान ओह पर जाइत कि ओकरा पहिलहीं ओकर स्टेशन आ गइल आ बिना कुछ बतवले चुपचाप उतरि गइल । |
s-50
| जहाँ का बच्चा - बच्चा में एह तरह के नैतिक मूल्य भरल गइल बा ओह देश के तरक्की भला कइसे रुकी ? |
s-51
| सुनील सिन्हा के स्तंभ शुक के सुनील सिन्हा जी के भेजल “ भोजपुरी पंचायत ” के कई गो पहिले के अंक मिलल । |
s-52
| हम दू महीना पहिले आग्रह कइले रहीं खास करके उहेंवाला स्तंभ पढ़े खातिर । |
s-53
| उहाँके स्तंभ “ आत्म - विश्वास ” हम बहुत चाव से पढ़ींले । |
s-54
| ओकर एक - एक बात जइसे हमरा मन का गहराई में उतरत जाला , काहेंकि एह प्रक्रिया में हमार पूरा विश्वास बाटे । |
s-55
| एकरा पीछा ईहो एगो कारन हो सकेला कि दू साल पहिले हम गोवा जाके लीडरशिप के ट्रेनिंग लेले रहीं । |
s-56
| अबहिंयो याद बा जब हमनीके मए साथी का मुँह से ईहे निकलल रहे कि कम से कम एक हप्ता अउर ट्रेनिंग के अवधि बढ़ि गइल रहित । |
s-57
| रोज सात घंटा के पढाई होखे । |
s-58
| बीच में खाली एक घंटा के ब्रेक । |
s-59
| पढाई हमनी के अतना भावल कि ओह दौरान केहूँ के मोबाइल ऑन ना रहत रहे , ढेर से ढेर साइलेंट मोड में आ टॉयलेट जाए के त केहूँ नाँवे ना लेइ , डर रहे कि कुछ छूटि जाई । |
s-60
| हमनी के अतना विश्वास हो गइल रहे कि कवनो विद्यार्थी के आसानी से पटरी पर ले आइल जा सकता , संसार के कवनो रोग से बिना दवा खइले छुटकारा पावल जा सकता , ढंग से काउंसिलिंग क दिहल जाव त केहू आत्महत्या ना करी कबो । |
s-61
| हमरा एह बात पर सभ विश्वास ना कर पाई , ई हम जानतानी बाकिर हमरा विश्वास में आजुओ कवनो कमी नइखे आइल । |
s-62
| फेरु फगुआ बदनाम होई । |
s-63
| फगुआ जइसे - जइसे नगिचात जाता , हमार साँस फूलल जाता । |
s-64
| फेरु फगुआ बदनाम होई । |
s-65
| रंग में हई गड़बड़ी होले त मिठाई हइसे बनतारी सन आजु - काल्हु । |
s-66
| अब फूहर गाना बाजे शुरू हो जाई । |
s-67
| हमरा आजु तक ना बुझाइल कि हमनी का खाली टिप्पणिए देबे खातिर पैदा भइल बानी जा कि कुछु करबो करबि जा । |
s-68
| बाजारू रंग लगवला के बहुत नुकसान बा आ महङा रंग जे कीन सकता , ऊ दू चुटकी अबीरे से काम चला लेला भा छी - मानुख में ओकर होली निकलि जाले । |
s-69
| त लोग रंग खेलल छोड़ि देसु ? |
s-70
| रंगे से त होली हटे आ किसिम किसिम का रंगे से त जिनिगी बनेले । |
s-71
| फेरु प्रिंट से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक के मन - मिजाज एक हप्ता पहिलहीं से सत्यानाशी भाषणबाजी से काहें रङा जाला ? |
s-72
| अतने बा त तथाकथित बुद्धिजीवी लोग के दुअरा - दुअरा जाके लोगन के ज्ञान चक्षु खोलेके चाहीं । |
s-73
| खाली मुँह के खुजली मिटवला से कुछु ना बदली , थोरे टाइम त निकालहीं के परी आ नवका पीढ़ी के फेसो करेके परी । |
s-74
| लेखको लोग सवाल का घेरा में ई नीमन ना कहाई कि लेखको लोग अब सवाल का घेरा में आवे लगलन । |
s-75
| ई का भइल कि जब देश में सब ठीकठाक बा त केहूँ के अनकस बरे लागता आ तनिक चिंताजनक भइला पर बिल्कुल मौन माने सभ नीमन चल रहल बा । |
s-76
| जेकर गतिविधि राष्ट्रीय सुरक्षा का खिलाफ बाइ , ओकरा सङे बानी अपने सभ आ जेकरा के देश थू - थू कर रहल बा ओकरा बाहबाही में राउर कलम कवनो कोर - कसर नइखे छोड़त । |
s-77
| अउर त अउर , जेकरा अनुशासनहीनता के दुष्प्रभाव देश भर के छात्रन पर पड़ रहल बा ओकरा के महिमामंडित करे में रउरा तनिको आहस ना लागे । |
s-78
| बताईं ईहे लेखक के धर्म हटे ? |
s-79
| रउरा एही स्वाभिमान के सम्मान होखेके चाहीं ? |
s-80
| ई सभ जानता कि तरह-तरह के तर्क बनाम गलथेथई से कुछ बने ना , बिगड़बे करेला । |
s-81
| हमरा खयाल से हमनी सभ लेखकन के राजनीति आ गोलबंदी से अलगे रहेके चाहीं । |
s-82
| आजुओ लेखक लोगन पर से लोगन के भरोसा नइखे हटल । |
s-83
| तथाकथित अश्लीलता एह घरी भोजपुरी के बहुत बिचित्र स्थिति हो गइल बा । |
s-84
| जेकरे मन आवता ऊ अश्लील कहि देता भा दागदार बता देता । |
s-85
| एह विषय पर ना चाहते हुए भी हमहूँ लिखलीं आ परिचर्चो आयोजित कइलीं । |
s-86
| सोचलीं कि सत्य का ग्यान भइला का बाद ई कुल्हि बंद हो जाई बाकिर काहेंके ? |
s-87
| कुछ लोग त बाकायदा झंडा उठाके चल देले बाड़न बिना ई जनले कि अश्लीलता के पैमाना का होई ? |
s-88
| भोजपुरी बीर आ बहादुर लोगन के भाषा हटे । |
s-89
| गारी - |
s-90
| गलौज आ शृंगारिक हँसी - मजाक भोजपुरी के सुभाव हटे आ ई सभ भोजपुरिया के ताकत ह । |
s-91
| सुनतानी कि कहीं - कहीं सरकारी फरमानो जारी होखे लागल बा आउर कुछ लोग त कानूने बनवावे पर आमादा हो गइल बाड़न । |
s-92
| कहीं अइसन मत होखे कि एंटीबायोटिक का प्रयोग से ऊहो बैक्टीरिया मरि जा सन जवन हमनीके शरीर का सहज सुभाव के रक्षा करेलन स । |
s-93
| एही विषय पर बक्सर में एक बेर मनोज चौबे जी से बात होत रहे । |
s-94
| उहाँका कहलीं कि आजु - काल्हु एकर झंडा उठाके जेतना लोग चल रहल बा ओहमें ऊहो लोग शामिल बा जे एह समस्या का मूल में बा । |
s-95
| ओह तथाकथित साफ - सुथरा गायक लोग से भी पूछल जाएके चाहीं कि भोजपुरी गायकी में “ चोली - साया ” लेके के आइल । |
s-96
| हमार माथा ठनकल । |
s-97
| त ईहो अपना के निउज में बनवले राखेके एगो जरिया हो गइल बा ? |
s-98
| फुहरकम केहूँ के नीक ना लागे , कवनो जुग में नइखे लागल त हमरा काहें लागी , बाकिर एक बेरि हिंदियो गीतन पर त ध्यान दीहल जाव , जवन घर - घर में लइका - लइकी सुनतारे सन । |
s-99
| हम जानतानी कि ओहिजा रउरा अबस बानी , राउर कवनो कंट्रोल नइखे । |
s-100
| ढेर से ढेर रउँआ एगो सेफ कमेंट मारबि - “ पता ना आजु - काल्हु के लइका का सुनतारे सन , हमनी का बेर त भिखारी ठाकुर के बिदेशिया आ महेंदर मिसिर के पुरबी के कवनो जोड़े ना रहे ( भोजपुरी के बात करबि तब ) नाहीं त रफी , मुकेश , लता आदि के नाँव लेबि आ आँखि बचाइबि । |
s-101
| हमरा बुझाता कि जिम्मेदार पत्र - पत्रिकन के एकरा पर अभी दू - चार बेरि अउर जमिके काम करेके चाहीं । |