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Universal Dependencies - Bhojpuri - BHTB

LanguageBhojpuri
ProjectBHTB
Corpus Parttest
AnnotationOjha, Atul Kr.; Zeman, Daniel

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s-102 जरूरी ईहो बा कि जवन काम हो रहल बा ओकरा के कम से कम झंडावाला लोग जरूर पढ़सु
s-103 आम नागरिक के भी चाहीं कि उनुका आस - पास शृंगार रस का नाम पर केहूँ ऑडियो - वीडियो के ब्लू फिलिम चलावत होखे , भा ठेंठ भोजपुरी का नाँव पर गारी - गलौज के यथार्थ परोसत होखे , ओकरा पर सभका सङे मिलिके लगाम लगावेके चाहीं
s-104 एह तरह के आचरण संस्कृति के विषय होला नैतिकता के परिसीमन नियंत्रण परिवारे समाज से शुरू होला
s-105 अगर कवनो समाज के खतम करे के होखे ओकरा नाभि चोट करे के चाहीं
s-106 समाज के नाभि ओकरा भासा , ओकरा परम्परा , ओकरा संस्कार , ओकरा उत्सवन में होला
s-107 कई बेर चोट ओह समाज के भलाई का नाम लगावल जाला , ओकरा के सुधारे सभ्य बनावे खाति कइल जाला
s-108 भोजपुरियो का साथे अरसा से अइसने खुरचाली हो रहल बा
s-109 आम आदमी के भासा भोजपुरी के अपना के पढ़ल - लिखल - सभ्य माने वाला कुछ लोग अपना खुरचाली में श्लील बनावे लागल बा
s-110 ओहु लोग के मालूम बा कि श्लील होखते भोजपुरी के नींव हिल जाई
s-111 आम आदमी एकरा से दूर जाए लगीहें अपना के सभ्य - श्लील बतावे वाला लोग के तब मनसा पूरन हो जाई
s-112 लोग भोजपुरी का नाम कई गो संस्थो चलावेला जवना के हर काम हिन्दी में होखेला
s-113 जवन भासा आपन सवालो दोसरा भासा में उठावल करी ओकर आवाज केहु काहे कइसे सुनी
s-114 भोजपुरी अगर आजु जिन्दा बिया आम आदमी का चलते
s-115 बाकि बकरी के माई कहिया ले खरजिउतिया मनाई
s-116 आजु ना काल्हु ओकरा कटाहीं के बा
s-117 रउरो सभे सोचत होखब कि काल्हु फगुआ बा बतंगड़ा कवन राग उठा लिहलसि
s-118 हर हप्ता एगो खम्भा खड़ा कइल आसान ना होखे
s-119 कई बेर ओकरा मजबूरन खुरपी का बिआह में हँसुआ के गीत उठावे पड़ जाला
s-120 चारो तरफ आजु चुनाव परिणाम के चरचा चलत बा
s-121 एह अगर कवनो अटकर पचीसा लगाईं ओकरा गलत होखे के पूरा अनेसा रही
s-122 कहले बा बड़ बड़ जने दहाइल जासु , गदहा थाहे कतना पानी
s-123 अब जवन होखे के बा तवन काल्हु सामने आइए जाई
s-124 बाकि हमरा हर हाल में एह लेख के आजु पठा देबे के बा ना सम्पादक जी लुकारी भाँजे लगीहें
s-125 समहुत जहिया जरी तहिया जरी , बाकि हम आजुए झँउसि जाइब
s-126 एक बेर मन भइल कि फगुए लिख मारीं
s-127 बाकि फगुआ लउके पहिले
s-128 तीन दिन बादे फगुआ बा कतहीं ना फगुआ के गाजन बाजन सुनाता ना केहु का देह रंग अबीर लउकत बा
s-129 पिया परदेस , देवर घरे लईका , सूतल भसुर के जगाईं कइसे का उहा पोह में पड़ल बिरहिनी परेशान बिया कि पिया नाहीं अइले अबकी फगुनवो में
s-130 भाग दौड़ भरल जिनिगी में रोजी रोटी कमाए परदेसे गइल पिया बलमा के तिकवते ओकर फगुआ बीते जात बा
s-131 हम खोजत बानी अपना लइकाईं का दिन के उमंग उल्लास से भरल फगुआ
s-132 जब राहे पेड़ा निकलत हमेशा चौकन्ना रहे के पड़त रहुवे कि केनियो से रंग पानी भेंटा मत जाए
s-133 बाकि हिन्दू परब तेवहारन सेकूलर हमला हाल दिहले बा कि रंग - अबीर , कादो - पानी वाला फगुआ से साम्प्रदायिक बवाल मत हो जाए एह डरे रंग डाले के परम्परे भुलाइल जात बा
s-134 गीत -
s-135 गवनई , फगुआ - चइतो बिसरल जात बा काहे कि कुछ लोग भोजपुरी के अश्लीलता खतम कइल चाहत बा
s-136 संवैधानिक मान्यता ला परेशान लोग नइखे सोचत कि भासा बचल रही तबे मान्यता के फायदा बा
s-137 ना अकादमीओ के काम दोसरे भासा में करे के पड़ी
s-138 हम हिन्दी से लाख नाराजगी का बादो कुछ हिन्दी वालन के आभारी बानी जे हिन्दी का अखबार में भोजपुरी के खम्भा उठावे के जगहा दे देत बा
s-139 ना भोजपुरिया इलाका के हिन्दी साहित्यकार तनिको ना चाहसु कि भोजपुरी के ओकर हक मिल जाव
s-140 महामहिम राष्ट्रपति जी , राउर बतिया हमरा से बरदाश्त नइखे होखत
s-141 अब रउए बता दीं कि हम कहाँ जाईं
s-142 कोच्चि मे 2 मार्च के दीहल राउर उद्बोधन हमरा सोझा बा
s-143 एहमें राउर कहना बा कि अपना देश में असहिष्णु लोग ला कवनो जगहा ना होखे के चाहीं
s-144 मीडिया में राउर भाषण जवना तरह से पेश कइल गइल ओहसे हमरा पहिले लागल कि मीडिया ओकरा के अपना हिसाब से पेश कइले बा
s-145 हम राउर आधिकारिक भाषण पढ़नी साँच कहीं राउर भाषणो हमरा पचल ना
s-146 एह हालत में रउरे बताईं कि हम कहाँ जाईं
s-147 रउरा कहले बानी कि हिन्दुस्तान पुरातन काल से बरदाश्ती रहल बा हर तरह के बाति , विचार , संस्कारन के जगहा देत आइल बा
s-148 परम्परा बरकरार रहे के चाहीं
s-149 बोले भा अभिव्यक्ति के आजादी सबले खास मौलिक अधिकार हवे हमहन के संविधान के
s-150 आगे कहले बानी कि भारत हमेशा से शिक्षा के क्षेत्र में विश्व नेता रहल बा
s-151 नालन्दा तक्षशिला विश्व विद्यालयन के नामो लिहले बानी रउआ
s-152 रउरा संबोधन के एक हिस्सा से हमहु सहमत बानी काहे कि ऐतिहासिक सच्चाई
s-153 तबे नू एह अइसन कलम के जादूगरी पर चकित होत डॉ. रामप्रवेश शास्त्री के लिखे के पड़ल
s-154 विवेकी राय जी के चुनरी के रंग , बिनावट , कारीगरी के जवन भी संज्ञा अच्छा लागे , दिहला में कवनो हरज ना बा , लेकिन अइसन कला के पटतर दिहल कठिन होला
s-155 जवन नित नया बा , ओके पुरान बटखरा से वजन कइले अतने लाभ हो सकेला कि पता चलि जाई कि हमरा जानकारी के कसौटी में कतना पर अधिका उतरल बा
s-156 अनिल कुमार आंजनेय एह कृति के भोजपुरी अंचल के दरपन बतावत कहले रहलीं - के कहल चुनरी रँगा भोजपुरी अंचल के दर्पण
s-157 जेके भोजपुरी जिनिगी में , अंचल में गहराई तक पइठे के बा , ओके समीक्ष्य पुस्तक पढ़ल बहुते आवश्यक बा
s-158 पुस्तक के गहरे पैठ अंतर्दृष्टि के साक्षी
s-159 आंजनेय जी के एह कहनाम से सहमति जतावत चंद्रशेखर तिवारी लिखले बाड़न - एह संग्रह के पढ़िके कहल जा सकेला कि डॉ. विवेकी राय जी अउरी साहित्यकारन खानी कागद की लेखी ना कहिके महात्मा कबीर का तरह आँखिन के देखी कहले बाड़न , जवना से उनकर निबंध पाठक पर आपन एगो विशिष्ट छाप छोड़े में सफल भइल बाड़न
s-160 एह पुस्तक के प्रकाशन निश्चित रूप से भोजपुरी साहित्य के ललित निबंधन का इतिहास में एगो महत्वपूर्ण घटना
s-161 अपना भाषाई कौशल , व्यंगात्मकता रचनात्मक दक्षता के बदउलत राय साहब के निबंध एह विधा के विकास - समृद्धि के दिसाईं मील के पाथर साबित भइलन
s-162 एह संबंध में डॉ. जया पाण्डेय के साफ - साफ विचार बा - विवेकी राय जी के कुल्हि निबंध शुरू से आखिर ले व्यक्ति - व्यंजकता का रंग में रँगाइल बाड़े सन
s-163 कतहीं -
s-164 कतहीं प्रगीतात्मक काव्य के आनंद आवता
s-165 दोसर विशेषता बा लेखक के व्यंग्य - विनोद के प्रवृत्ति
s-166 कवनो भाषा के गद्य साहित्य जतने समृद्ध होई , भाषा ओतने विकसित मान जाले
s-167 विवेकी राय के तमाम निबंध विकासमान बोली के भाषा के प्रौढ़ता प्रदान कइलन
s-168 विवेकी राय के हिन्दी - भोजपुरी के कृतित्वे - भर आंचलिक ना रहे , उहाँ के शख्सियतो एड़ी से चोटी ले आंचलिकता से लैस रहे - सहनशीलता जीवट से लबालब भइल
s-169 तबे नू , अढ़ाई दशक पहिले हृदयाघात के हरु पटे विजयी भइलीं
s-170 सतरह साल पहिले जब पक्षाघात के शिकार दहिना अलँग कहला में ना रहल , बायाँ हाथ से लिखे के सिलसिला शुरू कऽ दिहलीं
s-171 बाकिर एह बेर उहाँ के मउवत के चुनौती कबूल ना कऽ पवलीं बाबा विश्वनाथ के नगरी काशी के अस्पताल में गंगा मइया के गोदी में आखिरी साँस लिहलीं
s-172 अतिशय सज्जनता साधुता के प्रतिमूर्ति , गँवई जिनिगी के अद्भुत चितेरा , गँवई गंध गुलाब से साहित्य - वाटिका के गमगमावे वाला मनबोध मास्टर के हमार अशेष प्रणामांजलि !
s-173 आजु स्टाफ रूम में इंस्पेक्शन के बात एक - एक के उघरत रहे
s-174 हमरा प्राचार्य डॉ. संजय सिंह सेंगर जी याद गइल रहीं हम भावुक हो गइल रहीं
s-175 5 जनवरी के उहाँ से खड़े - खड़े भइल आधा घंटा के बतकही के एक - एक शब्द हमरा याद रहे
s-176 हमार कलिग लोग के भी आँखि भरि आइल
s-177 भइल रहे कि सेंगर जी का विद्यालय के एगो सब - स्टाफ के दूनो किडनी फेल हो गइल
s-178 ओकरा तीन गो लइकी रही सन एकहूँ के अभी बियाह ना भइल रहे
s-179 ओह गरीब परिवार के कमाई के साधन बस ईहे नोकरी रहे
s-180 घर - परिवार नाता - रिश्ता में केहूँ अइसन ना मिलल जेकर किडनी मैच करो
s-181 धीरे - धीरे एह परिवार के आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गइल
s-182 सेंगर जी के ब्लड ग्रुप मैच करत रहे
s-183 बिना घरे केहू के बतवले चुपचाप आपन किडनी ओह आदमी के दान दिहले
s-184 अतने ना ओकराके तीन बोतल खूनो दिहले
s-185 राज घरे तब खुलल जब उनुका सङ के पढ़ल एगो डॉक्टर घरे आइल बचपनवाला स्टाइल में मुक्का - मुक्की शुरू कइलस
s-186 जसहीं जगह पर छुआइल कि ओकरा मुँह से निकलल - आरे तोर किडनी ?
s-187 फेरु हंगामा शुरू
s-188 पत्नी के मनावे में तीन दिन लागल
s-189 आजु ओह आदमी के मए लइकी बियहा के ससुरा चलि गइली सन ऊहो सामान्य जीवन जी रहल बा
s-190 सेंगर जी एकदम फिटफाट रहीं
s-191 बिना कवनो लोभ के केहूँ चुपचाप अइसे मदद करे ओकरा के का कहल जाउ ?
s-192 साधारन आदमी नाहिंए कहाई
s-193 ओह स्टाफ के एगो दमाद जवन बेंगलुरु में इंजीनियर बाटे , फ्लाइट से कोलकाता खाली उहाँसे मिले खाती आइल रहे
s-194 कालिदास सर अपना एगो मित्र के अनुभव शेयर कइलीं
s-195 जापान गइल रहन
s-196 एक दिन ट्रेन में जवन बैग लेके बइठल रहन ओकर एक ओर के थोरे सिलाई टूटल रहे
s-197 एगो जापानी नागरिक के पर नजर चलि गइल रहे
s-198 जब देखलसि कि ओने नइखन देखत अपना बैग में से निडिलवाला मशीन निकललसि उनुकर आँखि बचावत बेगवा सी दिहलसि
s-199 अभी इनकर ध्यान ओह पर जाइत कि ओकरा पहिलहीं ओकर स्टेशन गइल बिना कुछ बतवले चुपचाप उतरि गइल
s-200 जहाँ का बच्चा - बच्चा में एह तरह के नैतिक मूल्य भरल गइल बा ओह देश के तरक्की भला कइसे रुकी ?
s-201 सुनील सिन्हा के स्तंभ शुक के सुनील सिन्हा जी के भेजल भोजपुरी पंचायत के कई गो पहिले के अंक मिलल

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